बाजार नियामक सेबी ने डीलिस्टिंग नियमन में अहम बदलाव किया है। इससे प्रवर्तकों को तय कीमत (फिक्स्ड प्राइस) ढांचे के जरिये अपनी कंपनियों को निजी बनाने के लिए बेहतर मौके मिलेंगे। नियामक ने इन्वेस्टमेंट होल्डिंग कंपनियों की डिलिस्टिंग यानी सूचीबद्धता खत्म करने के लिए भी नए नियम जारी किए हैं।
अभी रिवर्स बुक बिल्डिंग प्रक्रिया मौजूद है। इसके अलावा सेबी ने तय कीमत प्रक्रिया भी लागू की है जहां प्रवर्तक आम निवेशकों से सारे शेयरों की पुनर्खरीद की पेशकश उसकी उचित कीमत से कम से कम 15 फीसदी प्रीमियम पर कर सकते हैं।
25 सितंबर को जारी अधिसूचना के मुताबिक अगर अधिग्रहणकर्ता ने फिक्स्ड प्राइस की प्रक्रिया के जरिये डीलिस्टिंग का प्रस्ताव किया है तो उसे तय डीलिस्टिंग कीमत मुहैया करानी होगी जो नियमन 19ए के हिसाब से तय फ्लोर प्राइस से कम से कम 15 फीसदी ज्यादा होना चाहिए। साथ ही, अधिग्रहणकर्ता फिक्स्ड प्राइस प्रक्रिया से डीलिस्ट कराने के पात्र तभी होंगे जब कंपनी के शेयरों में लगातार कारोबार हो रहा हो।
सिरिल अमरचंद मंगलदास में पार्टनर गौतम गंडोत्रा ने कहा कि नई व्यवस्था मौजूदा प्रवर्तकों को अपनी कंपनियों की फ्लोर प्राइस से 15 फीसदी प्रीमियम पर सूचीबद्धता खत्म कराने का विकल्प देती है। यह पहले से मौजूद बिडिंग रूट (बोली के विकल्प) के अतिरिक्त है। अगर हम नई या पुराने व्यवस्था में से किसी का इस्तेमाल करते हैं तो हमें देखना होगा कि आम शेयरधारक क्या स्वीकार करेंगे।
सेबी ने रिवर्स बुक बिल्डिंग प्रक्रिया या फिक्स्ड प्राइस प्रक्रिया के जरिये डीलिस्ट किए जाने वाले इक्विटी शेयरों की फ्लोर प्राइस की गणना के मानक निर्धारित किए हैं। रिवर्स बुक बिल्डिंग के ढांचे को बहुत सख्त माना जाता है क्योंकि इस प्रक्रिया से खोजी गई कीमत अक्सर बहुत ज्यादा होती है।
नए नियम 25 सितंबर से लागू हो गए हैं लेकिन अगले 2 महीने तक पुराने नियम भी लागू रहेंगे। साथ ही सेबी ने काउंटर ऑफर व्यवस्था के लिए 90 फीसदी शेयरधारकों की सीमा को घटाकर 75 फीसदी कर दिया है।
कारोबारी सुगमता के लिए बाजार नियामक सेबी ने यूनिफाइड डिस्टिल्ड फाइल फॉर्मेट (यूडीआईएफएफ) लागू किया है। यह ट्रेडिंग मेंबर, क्लियरिंग मेंबर और डिपॉजिटरी भागीदारों के लिए रिपोर्टिंग की मानकीकृत व्यवस्था है।
पहले इन इकाइयों को 200 प्रोप्राइटरी रिपोर्ट फॉर्मेट रोजाना अपने-अपने मार्केट इन्फ्रास्ट्रक्चर इंस्टिट्यूशंस के पास फाइल करने होते थे। हालांकि सेबी की पहल से यह संख्या घटकर महज 23 फॉर्मेट रह जाएगी जो अंतरराष्ट्रीय आईएसओ मानक के मुताबिक है। इस पहल से परिचालन खर्च कम होने से पांच साल में 200 करोड़ रुपये से ज्यादा की अनुमानित बचत होगी। सेबी ने एक विज्ञप्ति में यह जानकारी दी।