बेंचमार्क सूचकांकों ने तीन महीने तक लगातार गिरावट के बाद बढ़त का पैटर्न दोहराया है। जुलाई में निफ्टी 8.7 फीसदी चढ़ा जबकि इससे पिछले तीन महीने में इसने लगातार नुकसान दर्ज किया।
पिछली बार लगातार तीन महीने तक गिरावट जनवरी-मार्च 2020 में देखने को मिली थी जब कोविड महामारी व लॉकडाउन को लेकर अनिश्चितता से निवेशक परेशान हुए थे। लेकिन अप्रैल 2022 में सेंसेक्स 14.4 फीसदी चढ़ गया। वास्तव में 2008, 2011 और 2012 में भी ऐसा ही देखने को मिला था।
साल 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान बाजारों में सितंबर व नवंबर 2008 के बीच गिरावट आई थी और दिसंबर में यह 7.4 फीसदी उछल गया था। हालांकि निफ्टी पिछले दो दशक में लगातार चार महीने की गिरावट से रूबरू नहीं हुआ है।
हालांकि अक्टूबर 2015 और फरवरी 2016 के बीच सेंसेक्स लगातार चार महीने तक टूटा था। दिसंबर 2015 में यह मामूली गिरा, वहीं निफ्टी में मामूली बढ़त दर्ज हुई।
बाजार में हालिया सुधार तब आया जब बेंचमार्क सूचकांक मध्य जून में 13 महीने के अपने-अपने निचले स्तर पर चले गए थे। लेकिन सेंसेक्स व निफ्टी करीब-करीब मंदी के बाजार की ओर फिसल गए थे, जिसकी वजह विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की तरफ से की गई लगातार बिकवाली रही। केंद्रीय बैंकों के सख्त रुख और मूल्यांकन से एफपीआई की बिकवाली हुई और 2022 की पहली छमाही के दौरान शेयरों में नुकसान रहा।
यूरोप में भूराजनीतिक तनाव और चीन में कोविड के बढ़ते मामलों से जिंस की कीमतों में अवरोध पैदा हुआ और इससे महंगाई में खासी बढ़ोतरी हुई। रुपये में गिरावट से भी एफपीआई की तरफ से कुछ बिकवाली हुई। रुपये में गिरावट से विदेशी निवेशकों के रिटर्न पर काफी असर होता है।
जिंसों की नरम कीमतों और अब महंगाई के नीचे आने की उम्मीद से हालांकि जुलाई में एफपीआई की बिकवाली रुक गई।
इक्विनॉमिक्स के संस्थापक जी चोकालिंगम ने कहा, बाजारों का मानना है कि महंगाई का सर्वोच्च स्तर आ चुका है। जहां तक फेड की ब्याज बढ़ोतरी की बात है, हम 3.75-4 फीसदी बेंचमार्क ब्याज दरों के मध्य में है, जिसकी योजना फेड ने बनाई है। निवेशकों का मानना है कि बुरे दिन पीछे छूटने वाले हैं। जीडीपी के अनुमान में कटौती के बावजूद भारत की आर्थिक रफ्तार सही दिशा में है।
बाजार के प्रतिभागियों ने कहा कि तीन महीने की गिरावट और एक महीने की उछाल मंदी के बाजार की विशिष्टता होती है। बाजार में हुई बढ़ोतरी का श्रेय मूल्यांकन के अनूकूल होने को दिया जा सकता है।
चोकालिंगम ने कहा, दो या तीन महीने की गिरावट के बाद बाजार के कई सेगमेंट में मूल्यांकन आकर्षक हो जाता है। इस बार भी तेल की कीमतें नरम हैं और अन्य जिंसों की भी, जिसने महंगाई के मोर्चे पर कुछ सहजता उपलब्ध कराई है।
हालांकि जुलाई में तेज उछाल के बाद मूल्यांकन को लेकर सहजता अब शायद नहीं रह सकती है।
क्रेडिट सुइस वेल्थ मैनेजमेंट के प्रमुख (भारत इक्विटी रिसर्च) जितेंद्र गोहिल ने कहा, पिछले महीने भारतीय बाजार में काफी सुधार हुआ और ज्यादातर इक्विटी बाजारों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया। इसके परिणामस्वरूप भारत का पीई मूल्यांकन प्रीमियम समकक्षों के मुकाबले एक बार फिर बढ़ा। हम उम्मीद करते हैं कि भारत का सापेक्षिक मूल्यांकन ऊपर बना रहेगा, जिसे आर्थिक फंडामेंटल में सुधार व सापेक्षिक आकर्षण से सहारा मिलेगा। हालांकि अहम केंद्रीय बैंकों की तरफ से आक्रामकता के साथ सख्ती के बीच भूराजनीतिक जोखिम व मंदी का डर अहम अवरोध है, जो अल्पावधि में काफी उतारचढ़ाव ला सकता है। इस पृष्ठभूमि में कुछ सतर्कता व जोखिम प्रबंधन जरूरी है क्योंकि भारत का मूल्यांकन प्रीमियम अभी भी उच्चस्तर पर है।
अनिश्चित माहौल को देखते हुए उन्हें रक्षात्मक क्षेत्र मसलन वित्तीय, स्वास्थ्य सेवा, ऑटो व एफएमसीजी पसंद हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि बाजार मौजूदा स्तर पर एकीकृत हो सकता है। चोकालिंगम ने कहा, यूक्रेन का युद्ध अभी भी चल रहा है और जिंसों की कीमत पर असर जारी है। साथ ही अमेरिकी फेडरल रिजर्व की तरफ से बैलेंस शीट में कमी लाने की योजना उभरते बाजारों की मुद्राओं को कमजोर कर सकती है। साथ ही एफपीआई की खरीदारी पर दबाव दिख सकता है।