इस महीने अब तक विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की बिकवाली किसी एक महीने के लिहाज से सर्वाधिक रही है और यह मार्च 2020 के स्तर को भी पार कर गई है। हालांकि बिकवाली की तीव्रता की तुलना अगर विदेशी निवेशकों की ऐसेट अंडर कस्टडी (एयूसी) से करें तो यह महज पांचवीं सबसे खराब है।
एयूसी उनके शेयरों का मूल्य है। 22 अक्टूबर तक एफपीआई बिकवाली 65,758 करोड़ रुपये रही, जो 78 लाख करोड़ रुपये की एफपीआई एयूसी का 0.84 प्रतिशत और भारत के 474 लाख करोड़ रुपये के बाजार पूंजीकरण का 0.14 प्रतिशत है। तुलना करें तो मार्च 2020 में एफपीआई बिकवाली 58,632 करोड़ रुपये थी जो उनकी एयूसी का 2 प्रतिशत और तब भारत के बाजार पूंजीकरण का 0.4 प्रतिशत थी।
उस समय बिकवाली की तीव्र गति के कारण बाजार में 23 प्रतिशत की गिरावट आई थी। इस बार सूचकांक 5 प्रतिशत से ज्यादा नीचे आ गए हैं। हालांकि यह मार्च 2020 की गिरावट का एक अंश मात्र है। लेकिन फिर भी यह काफी अधिक है तथा बड़ी मात्रा में एफपीआई बिकवाली के पिछले कई दौर से ज्यादा है। यदि घरेलू संस्थानों द्वारा
83,000 करोड़ रुपये का मजबूत निवेश नहीं किया होता तो इस महीने भी गिरावट और अधिक हो सकती थी।