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विदेशी निवेशकों ने अप्रैल में की 1 अरब डॉलर की निकासी

Last Updated- December 12, 2022 | 5:42 AM IST

वित्त वर्ष 2021 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार में रिकॉर्ड निवेश किया था जिसके दम पर बाजार में जबरदस्त तेजी आई थी। लेकिन अब अमेरिका में बॉन्ड प्रतिफल बढऩे और भारत में कोरोना संकट गहराने से विदेशी निवेशक (एफपीआई) अपना निवेश निकाल रहे हैं।
इस महीने एफपीआई ने इक्विटी बाजार से अब तक करीब 1.09 अरब डॉलर की निकासी की है। अगर निकासी की रफ्तार ऐसी ही बनी रही तो अप्रैल में मार्च 2020 के बाद किसी महीने में सर्वाधिक विदेशी निवेश की निकासी होगी।
पिछले 12 महीनों में घरेलू शेयर बाजार में केवल दो महीने ऐसे रहे अप्रैल 2020 (53.5 करोड़ डॉलर) और सितंबर 2020 (76.7 करोड़ डॉलर) जब मासिक स्तर पर शुद्घ निकासी की गई।
फरवरी के मध्य से अमेरिका में बॉन्ड प्रतिफल बढऩे और डॉलर के मजबूत होने से अधिकतर उभरते बाजारों में पूंजी निवेश में काफी उथल-पुथल देखा जा रा है। हाल के हफ्तों में अमेरिकी ट्रेजरी का प्रतिफल स्थिर हुआ है और डॉलर में तेजी भी थोड़ी थमी है। इससे उभरते बाजारों की मुद्राओं और बॉन्ड पर दबाव थोड़ा कम हुआ है। हालांकि भारत में कोविड-19 के बढ़ते मामलों से स्थिति थोड़ी अलग है और विदेशी निवेशक लगातार बिकवाली कर रहे हैं।
आंकड़ों से पता चलता है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक पिछले छह कारोबारी सत्रों से शुद्घ बिकवाल बने हुए हैं। कोविड के दैनिक मामलों में इजाफे से भारत की अर्थव्यवस्था एवं कंपनियों की आय में सुधार को लेकर चिंता बढ़ी है। इससे भी विदेशी निवेशक बिकवाली कर रहे हैं।
विदेशी निवेशकों की बिकवाली से शेयर बाजार के प्रदर्शन पर भी असर पड़ा है। बेंचमार्क सूचकांक 15 फरवरी के अपने सर्वकालिक उच्च स्तर से 8.1 फीसदी नीचे आ चुका है, वहीं डॉलर के मुकाबले रुपया करीब 4 फीसदी नरम हुआ है।
अमेरिकी डॉलर में नरमी की आशंका के बीच 2021 की पहली तिमाही में एफपीआई ने 56,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश किया था। लेकिन अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मजबूत सुधार विकासशील बाजारों में वृद्घि की धीमी रफ्तार से उभरते बाजारों की मुद्राओं की तुलना में डॉलर फिर से मजबूत हो गया। इसकी वजह से उभरते बाजारों में आगे बढ़ाने वाले कुछ सौदा का निपटान करना पड़ा।
विशेषज्ञों का मानना है कि निकट भविष्य में विदेशी निवेश के बाजार से निकलने का दबाव बना रहेगा। कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के मुख्य कार्याधिकारी और सह-प्रमुख प्रतीक गुप्ता ने कहा, ‘अगले कुछ महीनों में अमेरिकी में आर्थिक सुधार की मजबूती और बॉन्ड प्रतिफल बढऩे से डॉलर के अपेक्षाकृत बेहतर रहने की उम्मीद है। इससे विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के निवेश में कुछ बाधा आ सकती है।’
इस महीने की शुरुआत में रुपया डॉलर के मुकाबले 75.06 पर था जो जुलाई 2020 के बाद इसका सबसे निचला बंद स्तर था। हालांकि रुपये में कुछ स्थिरता देखी जा रही थी लेकिन बाद में इसमें गिरावट बढ़ सकती है।
आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस में फिक्स्ड इनकम के प्रमुख अरुण श्रीनिवासन ने कहा, ‘अप्रैल में भारतीय रउुपया का प्रदशर्न सभी एशियाई मुद्राओं की तुलना में सबसे कमजोर रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक के पास रुपये को सहारा देने के लिए बाजार में हस्तक्षेप करने की काफी सीमित गुंजाइश होगी। हमारा मानना है कि इस साल रुपये पर दबाव बना रहेगा और आगे मौजूदा स्तर से इसमें और गिरावट आ सकती है।’
आईएफए ग्लोबल के प्रबंध निदेशक अभिषेक गोयनका को अंदेशा है कि साल के अंत तक रुपया 77 से 77.50 तक फिसल सकता है।

First Published - April 20, 2021 | 11:07 PM IST

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