FDI Outflow: विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय इक्विटी बाजार से इस महीने अब तक 3.5 अरब डॉलर की निकासी की है। यह बिकवाली चुनाव के कारण हो रहे उतार-चढ़ाव और भारत से निवेश निकालकर चीन ले जाने की पृष्ठभूमि में हुई है। चीन में शेयर आधी कीमतों पर उपलब्ध हैं। अगर बिकवाली का दबाव ऐसा ही बना रहा तो जनवरी 2023 के बाद विदेशी निवेशकों की यह सबसे बड़ी निकासी होगी।
कारोबारी लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार की जीत के अंतर और इस कारण नीतिगत निरंतरता पर इसके असर को लेकर आशंकित होते जा रहे हैं। बाजार के उतार-चढ़ाव इंडिया का पैमाना वीआईएक्स इंडेक्स इस महीने बढ़कर 20.6 फीसदी पर पहुंच गया। चुनाव की शुरुआत से यह सूचकांक अब तक 47 फीसदी चढ़ा है।
एमयूएफजे ने एक नोट में कहा कि अगर भाजपा कुछ सीटें गंवाती है और बहुमत बरकरार रखती है तो विदेशी मुद्रा और जोखिम वाली परिसंपत्तियों पर घबराहट में इसकी थोड़ी प्रतिक्रिया हो सकती है। इसके उलट अगर भाजपा 2019 के मुकाबले ज्यादा सीटें जीतती है तो इससे वह जमीन, श्रम और कृषि के क्षेत्र में और ज्यादा ढांचागत सुधार के लिए सक्षम बनेगी और बाजार इसे ज्यादा सकारात्मकता नजरिए से देखेगा। ऐसे में नतीजों के बाद रुपये व जोखिम वाली परिसंपत्तियों में तेजी संभव है।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व की दर कटौती में अनिश्चितता ने भी निवेशकों की घबराहट बढ़ाई है। इस कारण भी कुछ निवेशक उभरते बाजारों से अपनी रकम निकालने पर विचार कर रहे हैं, खास तौर से अगर अमेरिका में डॉलर वाले निवेश में उच्च दरें मिलती हों। हालांकि दरों में कटौती पर दांव अमेरिका में महंगाई के ताजा आंकड़ों के बाद फिर बढ़ गया है।
अल्फानीति फिनटेक के सह-संस्थापक यू आर भट्ट ने कहा कि मई से पहले अमेरिका की स्थिति वहां ब्याज कटौती की संभावना काफी ज्यादा हो गई थी लेकिन मई में ब्याज दरों में कटौती टल गई। इसका निवेश पर अहम असर पड़ा है। लंबी अवधि तक ब्याज दरों को लेकर परिदृश्य जितना ऊंचा रहेगा, एफपीआई का निवेश तेजी के साथ वापस नहीं आएगा।
विश्लेषकों ने कहा कि निवेशक 4 जून के नतीजों से पहले अपने हाथ में कुछ रकम रखना चाहते हैं। शुरू के चरणों में मतदान के कम प्रतिशत को कुछ हलकों में सत्ताधारी पार्टी और गठबंधन के हक में लहर नहीं होना माना गया। इन्वेस्टेक के नोट में कहा गया है कि हमारी राय में इस चुनाव में लहर नहीं है जहां वर्चस्व वाला कोई एक ही मसला या थीम जो मतदाताओं के सेंटिमेंट पर असर डाल रहा हो।
विश्लेषकों ने कहा कि अनिश्चितताओं ने चीन के शेयरों को भारतीय इक्विटी के महंगे मूल्यांकन के मुकाबले ज्यादा आकर्षक बना दिया है। हालिया गिरावट के बावजूद निफ्टी अपने 10 साल के औसत 23.2 के मुकाबले 22 पीई पर ट्रेड कर रहा है।
भट्ट ने कहा, चीन में शेयर काफी गिरे हैं और कुछ फंड मानते हैं कि काफी गिरावट आ चुकी है और वे कुछ रकम निवेश कर रहे हैं लेकिन आश्वस्त नहीं हैं कि यह तेजी कब तक जारी रहेगी। शांघाई कम्पोजिट इंडेक्स फरवरी के अपने 2024 के निचले स्तर से 15 फीसदी उछला है। यह इंडेक्स 12 महीने आगे के पीई 14.6 गुने पर उपलब्ध है।
मार्च में एफपीआई ने चीन की इक्विटी में करीब 5 अरब डॉलर निवेश किए। चीन एफपीआई के आंकड़े देरी से जारी करता है। इसलिए ताजा आंकड़े नहीं हैं। बाजार के प्रतिभागियों का मानना है कि विदेशी फंड तभी बड़े पैमाने पर आएंगे जब नई सरकार अपना पहला पूर्ण बजट पेश कर देगी।
भट्ट ने कहा कि अगर सत्ताधारी पार्टी बेहतर प्रदर्शन करती है तो उल्लास का कुछ माहौल रहेगा। लेकिन नई सरकार का पहला बजट हमेशा से ही बाजारों के लिए और कराधान के लिहाज से खराब रहता है। ऐसे में बाजारों में बजट प्रस्तावों तक गिरावट जारी रह सकती है लेकिन तब तक वैश्विक स्थिति ठीक हो जाएगी और हम उसके बाद कुछ निवेश की उम्मीद कर सकते हैं।