वैश्विक वित्तीय संकट ने पूरे आर्थिक जगत को बुरी तरह झकझोर रखकर रख दिया है। जाहिर है कि पूंजी बाजार में पांव पसार चुकी मंदी की मार भारत पर भी जबरदस्त तरीके से पड़ी है।
माना जा रहा है कि इस मंदी के बाद भारतीय पूंजी बाजार को अपनी रंगत में लौटने और पुरानी पटरी पर वापस आने में कुछ तिमाही का वक्त तो लग ही सकता है।
यह बात दीगर है कि खस्ता हालत के बाद भी इक्विटी में निवेश इस समय एक बेहतर विकल्प के रूप में नजर आ रहा है।
शेयर बाजार की मौजूदा हालत और आर्थिक जगत के अन्य तमाम पहलुओं पर एनम डायरेक्ट के अध्यक्ष वल्लभ भंसाली के साथ बिजनेस स्टैंडर्ड की बातचीत के प्रमुख अंश:
क्या इस नए साल में आर्थिक संकट और ज्यादा गहराएगा?
जहां तक मेरा मानना है, इस साल की पहली छमाही कॉर्पोरेट जगत के लिए निराशाजनक ही होगा। पहली दो तिमाही में कारोबार जहां फीका रहेगा, वहीं साल की दूसरी छमाही से बेहतर उम्मीदें की जा सकती हैं।
पहली छमाही में कारोबार मंद रहने के बावजूद दूसरी छमाही में कारोबार में सुधार की गुंजाइश बन रही है। आनेवाले समय में ब्याज दरों में कमी, कमोडिटी की घटती कीमतें, सरकार द्वारा घोषित सहायता राशि के सही हकदारों तक पहुंचने से हमें बाजार पटरी पर आने की उम्मीद है। इसी साल आम चुनाव भी होने हैं।
नई सरकार देश की बागडोर संभालेगी, जिसके बाद आर्थिक हालात और भी बेहतर होने की कमोबेश सभी को उम्मीद है। जैसे ही उपभोक्ताओं और निवेशकों का विश्वास लौटेगा, वैसे ही भारतीय बाजार में पूंजी निवेश की मात्रा में तेजी आती जाएगी। वर्ष 2009 एक सकारात्मक संदेश के साथ समाप्त होगा, इस बात की उम्मीद की जा सकती है।
आनेवाले समय में भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने क्या चुनौतियां आ सकती हैं?
देश के आर्थिक विकास में जो चीजें सबसे ज्यादा मुश्किलें पैदा करेंगी वे होंगी कर्ज देने के लिए पूंजी और इक्विटी पूंजी की पर्याप्त मात्रा न होना। वैश्विक आर्थिक संकट के बाद लोगों की निवेश करने में दिलचस्पी कम हुई है।
इससे मांग पर बहुत ही प्रतिकूल असर पड़ेगा। अन्य बाधाओं में बढ़ती बेरोजगारी, लोगों की खर्च करने लायक आमदनी में कमी और बचत की दरों में तेजी से आ रही कमी प्रमुख होंगी। जाहिर है, इन पर नजर रखने की जरूरत है।
एक अन्य महत्वपूर्ण कारक जो देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत ज्यादा असर डाल सकता है,वह है आम चुनाव के नतीजे। चुनाव परिणाम इसलिए मायने रखते हैं,
क्योंकि अगर एक कमजोर गठबंधन सत्ता में आता है तो इससे देश की आर्थिक विकास दर पर बुरा असर पड़ेगा। एक कमजोर सरकार देश में विकास की योजनाएं लागू करने में किसी भी तरह से कामयाब नहीं हो सकती।
आप वर्ष 2009 में नए निवेश करने का इरादा बना चुके हैं?
हां, हम तो निवेश करेंगे क्योंकि निवेश के लिहाज से यह वक्त बहुत ही माकूल है।?मंदी या वित्तीय संकट है, इससे हमें इनकार नहीं है, लेकिन मेरा खयाल है कि परिसंपत्तियां, खासकर इक्विटी निवेश के लिए एक बेहतर अवसर मुहैया कराएगी।
इसलिए इक्विटी आपको निवेश के लिहाज से खासा फायदा दे सकती हैं। जिन भारतीय कंपनियों के पास अभी नकदी का भंडार है, वे अंतरराष्ट्रीय स्तर की तमाम कंपनियों में निवेश करने के मामले में सोचविचार कर सकती हैं।
मौजूदा समय कारोबार में विविधता लाने और अपने आप को विदेशी बाजार में स्थापित करने के लिहाज से उपयुक्त समय है।
आपकी कंपनी कर्मचारियों की भर्ती करेगी या फिर की छंटनी की राह पर चलेगी?
कर्मचारियों की भर्ती करना भी एक तरह का निवेश ही है और जैसा कि मैंने पहले कहा है कि अगर मुझे बेहतर कीमत मिलती है तो फिर हम वर्ष 2009 में निवेश करेंगे।
एक और जहां हम अपने मौजूदा कर्मचारियों की प्रतिभा नई तकनीक से विकसित करते रहेंगे वहीं हम कुछ लोगों की छंटनी करने से भी परहेज नहीं करेंगे।
नए साल में शेयर बाजार को किस स्तर पर देखते हैं?
वैश्विक आर्थिक संकट और इस कारण निवेशकों के मन में पैदा हुई अविश्वास की भावना के चसते विश्व के पूंजी बाजार मुश्किल दौर से गुजर रहें हैं। वैश्विक स्तर पर निवेशकों का वित्तीय प्रणाली में फिर से विश्वास पैदा होने में सामान्य से ज्यादा का समय लग सकता है।
भारत में लोग नए तरीकों के क्रियान्वयन को लेकर कम आक्रामक हैं और साथ ही हमारे पास एक मजबूत नियामक प्रणाली है। इस लिहाज से हम बहुत ही सुरक्षित हैं। मुझे लगता है कि शेयर बाजर को सुधरने में अभी कुछ तिमाही और लग सकती हैं।