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लिक्विड व डेट फंडों से निकल रहीं कंपनियां

Last Updated- December 07, 2022 | 11:48 PM IST

तरलता की कमी और वित्तीय संकट के बाद पैदा हुए अविश्वास और भय के वातावरण के कारण कंपनियां लिक्विड और डेट फंडों से तेजी से अपना निवेश घटा रही हैं।


बैंकों द्वारा करोबारी ऋण प्रदान करने में कडाई बरतने और 60 दिन के बाद लेटर्स ऑफ क्रेडिट में कोई छूट नहीं देने से कॉर्पोरेट जगत पूंजी की कमी से निपटने केलिए म्युचुअल फंड के लिक्विड और डेट फंडों से अपना निवेश कम कर रहा है। रिडेम्पशन का एक और कारण पोर्टफोलियो की गुणवत्ता से जुडा हुआ है क्योंकि डेट फंड के गैर-लिक्विड फंड में और  पास-थ्रू-सर्टिफि केट (पास-थ्रू-सर्टिफिकेट)और फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान( एफएमपी)के रियल सेक्टर में एक्सपोजर में डिफॉल्ट का खतरा बहुत ज्यादा बढ ग़या है।

इस बाबत मिरेई एसेट मैंनेजमेंट फंड के फिक्स्ड इनकम प्रभाग के प्रमुख मूर्ति नागराजन ने कहा कि डेट फंडों में कुछ संख्या में रिडेम्शन देखने को मिला है। उन्होंने आगे कहा कि पीटीएस पोर्टफोलियो गैरतरलता वाले हैं और निवेशक वहां पर निवेश को नहीं रखना चाहते हैं।

इसी बाबत एक फंड प्रबंधक ने कहा कि लोग यह कहते हुए नजर आ रहें हैं म्युचुअल फंड में पैसा निवेश करने से बेहतर अपने पास कैश रखना ज्यादा फायदेमंद है। गौरतलब है कि अमेरिका की तरह भारत में भी बैंकों ने अपने खुदरे ऋण के कुछ हिस्सों को पास-थ्रू वेहिकिल के लिए सेक्योरिटाइज किया है जोकि म्युचुअल फंछों को पीटीएस जारी करती है।

उदाहरण केलिए 1,000 करोड़ लोन बुक वाला कोई बैंक अपने एक हिस्से या यूं कहें कि 100 करोड क़ो सेक्योरिटाइज करता है जिसके कि परिणामस्वरूप बैंक को अपने लोन बुक में बढ़ोतरी और कैपिटल एडिक्वेसी नर्ॉम्स की आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद मिलती है। एक फंड प्रबंधक ने बताया कि म्युचुअल फंडों को पीटीएस 200 आधार अंकों का रिटर्न देती है जोकि सीडी बैंक इश्यू से अधिक है।

ऑरिजिनेटिंग बैंक रेटिंग की चाह में में के्रडिट रेटिंग एजेंसी के पास जाते हैं और रेटिंग एजेंसी ऐसे ऋण जिसमें डिफॉल्ट की संख्या अधिक संभावना अधिक रहती है और जिसके लिए ऑरिजिनेटर गारंटी देता है, पर विचार करती है। इसी गारंटी पर आधारित ऐजेंसी रेटिंग प्रदान करती है जो इस तरह के सेक्योरिटीज पर संभावित अन्य रेटिंग से अधिक होती है।

मुंबई स्थित एक सीएफओ ने कहा कि बाजार की परिस्थितियों में काफी बदलाव आ गए हैं और एसे ऋणों पर डिफॉल्ट की दर काफी अधिक हो गई है। उन्होंने आगे कहा कि ये इंस्ट्रूमेंट सूचीबद्ध्द नहीं हैं। इसलिए इनका वैल्यूएशन  मुश्किल है।

एक  फंड विश्लेषक ने कहा कि भय और अविश्वास केवातावरण गहरा रहा है। आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल के निलेश शाह ने कहा कि हमारे पास 50 तरह के एफएमपी हैं। पिछले दस सालों के हमारे एफएमपी के इतिहास में किसी तरह के डिफॉल्ट की कोई घटना नहीं हुई है।

विश्लेषकों का मानना है कि फंड निवेशकों द्वारा किए जा रहें रिडेम्पशन केदबाव को सामना अपने व्यवसायिक कागजातों और डिपॉजिट संबंधी प्रमाणपत्रों को कुछ बैंकों को बेचकर कर रहें हैं जिनका मानना है कि अभी चीजों को सुधरने में दो से तीन दिन लग जाएंगे लेकिन ऐसा होने की स्थिति में सरकारी हस्तक्षेप जरूरी है।

First Published - October 13, 2008 | 11:21 PM IST

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