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सूचीबद्धता खत्म करने के लिए एफऐंडओ नियमों में हुआ बदलाव

आरबीबी प्रक्रिया के तहत सूचीबद्धता खत्म करने की प्रक्रिया तब सफल मानी जाती है जब ऑफर के बाद प्रवर्तक या अधिग्रहणकर्ता की उक्त इकाई में 90 फीसदी हिस्सेदारी हो जाती है।

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खुशबू तिवारी   
समी मोडक   
Last Updated- June 27, 2024 | 10:49 PM IST

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने निवेश एवं हो​ल्डिंग कंपनियों की सूचीबद्धता खत्म करने के नियमों में ढील दी है जिससे प्रवर्तकों को अपनी निजी कंपनियों पर उचित अधिकार मिलेगा। इसके साथ ही नियामक ने वायदा एवं विकल्प खंड में शेयरों को शामिल करने और हटाने के लिए पात्रता मानदंड में भी संशोधन किया है । इससे इस सेगमेंट में खरीदे-बेचे जाने वाले शेयरों की तरलता सुनि​श्चित होगी।

सोशल मीडिया पर शेयरों के बारे में भ्रामक और पक्षपातपूर्ण सलाह देने वाले वित्तीय इन्फ्लुएंसरों (फिनफ्लुएंसर) पर सख्ती दिखाई है और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से गारंटीशुदा रिटर्न की सिफारिश या वादा करने वाले व्य​क्ति या विनियमित इकाइयों को प्रतिबं​धित कर दिया है। हालांकि नियामक ने निवेशक जागरूकता के लिए काम करने वाले वित्तीय इन्फ्लुएंसरों वाली वित्तीय इकाइयों को अनुमित दी है लेकिन किसी तरह की सलाह देने से मना कर दिया है।

रिवर्स बुक बि​ल्डिंग (RBB) प्रक्रिया के साथ स्वै​च्छिक तौर पर सूचीबद्धता खत्म करने के लिए सेबी ने तय मूल्य प्रक्रिया पेश की है जिसमें प्रवर्तक ‘उचित मूल्य’ से कम से कम 15 फीसदी प्रीमियम पर लोगों से सभी शेयर की पुनर्खरीद कर सकते हैं। इसके साथ ही सेबी ने काउंटर ऑफर प्रणाली के तहत सार्वजनिक शेयरधारिता की सीमा को 90 फीसदी से घटाकर 75 फीसदी कर दिया है।

आरबीबी प्रक्रिया के तहत सूचीबद्धता खत्म करने की प्रक्रिया तब सफल मानी जाती है जब ऑफर के बाद प्रवर्तक या अधिग्रहणकर्ता की उक्त इकाई में 90 फीसदी हिस्सेदारी हो जाती है। आरआरबी की प्रक्रिया को काफी सख्त माना गया था क्योंकि सूचीबद्धता खत्म करते समय कीमत कई बार काफी ज्यादा हो जाती है, जिससे यह सफल नहीं हो पाता है।

सेबी की चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच ने कहा कि जैसे-जैसे भारत का बाजार परिपक्व हो रहा है, ऐसे में यदि कंपनियां चाहती हैं तो उन्हें निजी क्षेत्र में जाने की अनुमति देना अनिवार्य होना चाहिए। यह होटल कैर्लिफोर्निया की तरह नहीं होना चाहिए, जहां आप किसी भी समय चेक इन कर सकते हैं लेकिन उसे कभी छोड़ नहीं सकते।

सेबी ने वायदा एवं विकल्प खंड (F&O) में शेयरों के चयन के लिए मात्रात्मक मानदंडों जैसे मीडियन क्वार्टर सिगमा ऑर्डर साइज, मार्केट वाइड पोजीशन लिमिट और एवरेज डेली डिलिवरी वैल्यू में संशोधन किए हैं।

सेबी (SEBI) के अधिकारियों ने कहा कि अगर नई शर्तें लागू हुईं तो एफऐंडओ खंड में शेयरों की संख्या थोड़ी बढ़ जाएगी, जो फिलहाल 182 है। अधिकारियों ने कहा कि लगभग दो दर्जन शेयर हटाए या जोड़े जा सकते हैं।

बुच ने यह भी कहा कि एफऐंडओ कारोबार से जुड़ी चिंता दूर करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित की गई है। उन्होंने कहा कि इस खंड को लेकर कई तरह की चिंता सामने आई है, मसलन डेरिवेटिव खंड में कारोबार करने के लिए भारी उधारी ली जा रही है।

बुच ने कहा कि यह भी चिंता जताई जा रही है कि देश के लोगों की बचत का एक बड़ा हिस्सा बाजार में झोंका जा रहा है। उन्होंने कहा कि इससे किसी को फायदा नहीं होगा। सेबी बोर्ड ने जिन निर्णयों पर हामी भरी उनमें विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के लिए यूनिवर्सिटी फंडों और यूनिवर्सिटी संबंधी एंडोमेंट को अतिरिक्त खुलासे की शर्त से मुक्त रखना है। सेबी ने डेट प्रतिभूतियों और गैर-परिवर्तनीय भुनाने योग्य तरजीही शेयरों के लिए सार्वजनिक निर्गम की प्रक्रिया भी आसान कर दी।

First Published : June 27, 2024 | 10:37 PM IST