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Brokerage Opinion: जापानी मुद्रा व अमेरिकी मंदी का खतरा

अमेरिकी फेडरल रिजर्व की दर कटौती में देरी, बैंक ऑफ जापान के कदम, और अन्य भूराजनीतिक कारणों से निवेशक सतर्क, लेकिन भारतीय बाजार की स्थिति मजबूत

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पुनीत वाधवा   
Last Updated- August 06, 2024 | 11:06 PM IST

वैश्विक वित्तीय बाजारों में पिछले कुछ दिनों में उतार-चढ़ाव बना हुआ है। इसका कारण अमेरिका में मंदी की आशंका के साथ-साथ यह चिंता भी है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने दरें घटाने में बहुत ज्यादा देर कर दी है। इसके अलावा, बैंक ऑफ जापान (बीओजे) के दरों में वृद्धि करने से भी निवेशकों में घबराहट हो गई और येन कैरी ट्रेड सौदे निपटाए गए।

बढ़ता भूराजनीतिक तनाव भी वैश्विक वित्तीय बाजारों के लिए एक बड़ी परेशानी की कारण है। हालांकि कई ब्रोकर मध्यावधि से दीर्घावधि परिदृश्य के लिहाज से इक्विटी को लेकर आशान्वित बने हुए हैं लेकिन अल्पावधि अनिश्चितता को लेकर सतर्कता बरत रहे हैं। उनका मानना है कि भारत मजबूत बुनियादी आधार की वजह से अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में है।

विश्लेषकों के अनुसार हालांकि मूल्यांकन चिंताजनक हैं, लेकिन निवेशक दीर्घावधि नजरिये से अच्छी गुणवत्ता के शेयर खरीदने के लिए बाजार में गिरावट का इस्तेमाल कर सकते हैं। आनंद राठी में मुख्य अर्थशास्त्री एवं कार्यकारी निदेशक सुजन हाजरा ने राज सिंह और कैताव सिंह के साथ मिलकर तैयार रिपोर्ट में कहा है, ‘भारत के कैरी ट्रेड एक्सपोजर की पूरी तरह बिकवाली का लंबी अवधि में भारतीय शेयर बाजार पर ज्यादा प्रभाव होने की संभावना नहीं है। भारतीय शेयर बाजार में किसी भी अल्पावधि गिरावट को शेयरों में निवेश बढ़ाने के अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए।’

मौजूदा वैश्विक घटनाक्रम पर प्रमुख ब्रोकरों की राय इस प्रकार हैः

जेफरीज

ब्याज दर कटौती अमेरिकी इक्विटी के लिए सकारात्मक साबित नहीं भी हो सकती है। हमारी नजर में वह एशियाई और उभरते देशों के शेयर बाजारों के लिए ज्यादा सकारात्मक हो सकती है। फेड की दर कटौती और डॉलर के कमजोर होने से उनके केंद्रीय बैंकों के पास घरेलू स्तर पर राहत देने के लिए अधिक गुंजाइश होगी।

जापान जैसे देशों की तुलना में भारतीय शेयर बाजार अमेरिका में मंदी और उससे जुड़ी वॉल स्ट्रीट की बिकवाली के आगे ज्यादा मजबूत हैं। ऐसा मुख्य रूप से इसलिए कि भारत का शेयर बाजार घरेलू पूंजी पर केंद्रित है जबकि जापान में इससे विपरीत स्थिति है।

एचएसबीसी

अमेरिका में वृद्धि से जुड़ी चिंताएं ताइवान जैसे निर्यात-केंद्रित बाजारों के लिए नकारात्मक और भारत, इंडोनेशिया तथा मुख्य चीन जैसे घरेलू-केंद्रित बाजारों के लिए सकारात्मक हैं। हम मुख्य चीन पर ओवरवेट बने हुए हैं लेकिन मानते हैं कि वहां इक्विटी के लिए अल्पावधि उत्प्रेरक नहीं हैं। हम महंगे मूल्यांकन के बावजूद भारत को भी पसंद कर करते हैं। हम ताईवान पर ‘अंडरवेट’ हैं।

यूबीएस

भारत और इंडोनेशिया पिछले तीन वर्षों में जापान से विदेशी इक्विटी निवेश के बड़े लाभार्थी रहे हैं और लगता है कि इनमें सबसे ज्यादा जोखिम उलटफेर का है। हाल में उभरे कई वैश्विक जोखिमों में हम चीन को अपेक्षाकृत रक्षात्मक मानते हैं, क्योंकि वहां के कई बड़े जोखिमों का असर पहले ही दिख चुका है।

सूचकांक भारांक के आधार पर एमएससीआई पोलैंड, थाईलैंड और मेक्सिको की प्रमुख वृद्धि अमेरिकी हलचल के प्रति अधिक संवेदनशील होती है जबकि चीन में सबसे कम संवेदनशीलता है। कोरिया, दक्षिण अफ्रीका के बाजार अतीत में अमेरिकी वास्तविक दर में गिरावट के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील रहे हैं।

नोमुरा

रोजगार के कमजोर आंकड़ों के बाद हमें इस साल तीन बार 25 आधार अंक की फेड दर कटौती की उम्मीद है। पहले 25 आधार अंक की दो दर कटौती का अनुमान जताया गया था। बाजार में पहले ही इसका असर दिख चुका है। अमेरिकी 2 वर्षीय और 10 वर्षीय यील्ड में बड़ी गिरावट आई, डॉलर सूचकांक में कमजोरी आई, इक्विटी दबाव के अलावा वित्तीय स्थिति में सख्ती देखी गई।

एशिया में इंडोनेशिया, कोरिया और फिलीपींस फेड और विदेशी मुद्रा संबंधित जोखिमों के लिहाज से ज्यादा नाजुक बने हुए हैं। अन्य एशियाई केंद्रीय बैंक – आरबीआई, बैंक ऑफ ताईवान फेड से कम प्रभावित और घरेलू कारकों से ज्यादा प्रभावित हैं।

कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज

मौजूदा नकारात्मक खबरों का गैर-संस्थागत निवेशकों का भरोसा डगमगाने के लिए पर्याप्त हो भी सकती हैं और नहीं भी। बाजार सूचकांक ऐतिहासिक मल्टीपल और बॉन्ड यील्ड के नजरिये से अच्छे दिख सकते हैं, लेकिन कई गैर-वित्तीय निफ्टी-50 घटक इस समय अपने स्वयं के रिकॉर्ड की तुलना में महंगे मल्टीपल पर कारोबार कर रहे हैं।

First Published : August 6, 2024 | 10:27 PM IST