बाजार में भारी गिरावट से 1 अरब डॉलर या इससे अधिक बाजार पूंजीकरण (एमकैप) वाली कंपनियों की संख्या काफी घट गई है। बीते पांच महीनों में अरब डॉलर एमकैप वाली कंपनियों की संख्या में करीब 20 फीसदी की कमी आई है। पिछले साल 26 सितंबर को जब बाजार सर्वकालिक उच्चतम स्तर पर था तब अरब डॉलर एमकैप की जमात में 618 कंपनियां शामिल थीं। मगर अब ऐसी कंपनियों की संख्या घटकर 500 रह गई है।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की निरंतर बिकवाली से बाजार पूंजीकरण में 1 लाख करोड़ डॉलर से ज्यादा की गिरावट के कारण ऐसा हुआ है। बाजार पूंजीकरण के लिहाज से शीर्ष पर काबिज कंपनियों के बाजार पूंजीकरण में ज्यादा कमी आई है। 100 अरब डॉलर या इससे अधिक एमकैप वाली कंपनियों की संख्या 5 से घटकर 4 रह गई है।
इसी तरह 10 अरब डॉलर से 100 अरब डॉलर तक एमकैप वाली कंपनियों की संख्या में 28 फीसदी की कमी आई है और उनकी संख्या 122 से घटकर 87 रह गई। 1 अरब डॉलर एमकैप की जमात से बाहर होने वाली कंपनियों में एनएचपीसी, गोदरेज प्रॉपर्टीज, ऑयल इंडिया, टॉरंट पावर और मैरिको शामिल हैं।
1 अरब डॉलर से 10 अरब डॉलर एमकैप वाली कंपनियों की संख्या 16 फीसदी घटी हैं। रेमंड्स, टीटीके प्रेस्टीज, इडलवाइस फाइनैंशियल सर्विसेज, किर्लोस्कर ऑयल इंजन्स और इंजीनियर्स इंडिया का बाजार पूंजीकरण अरब डॉलर से कम रह गया है।
शेयरों का मूल्यांकन ऊंचा रहने, कंपनियों के मुनाफे में नरमी और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की लगातार बिकवाली से शेयर बाजार में गिरावट देखी जा रही है।
इक्विनॉमिक्स के संस्थापक चोकालिंगम जी ने कहा, ‘शेयर बाजार पिछले कुछ दिनों से जारी गिरावट और सूचीबद्ध कंपनियों का कुल बाजार पूंजीकरण घटने से अरब डॉलर एमकैप वाली कंपनियों की संख्या घटी है। हालांकि बाजार पूंजीकरण में गिरावट तेज और अचानक हुई है। जिन कंपनियों की आय वृद्धि और प्राइस-टु-अर्निंग मल्टीपल में ज्यादा अंतर है, उन पर सबसे अधिक मार पड़ी है। जब बाजार में तेजी होती है तो कुछ शेयरों को लाभ होता है। गिरावट के समय निवेशक इन शेयरों को बेचने के बजाए बनाए रखना चाहते हैं। हालांकि अच्छे शेयर भी चौतरफा बिकवाली के दबाव से अछूते नहीं रहते हैं।’
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक अपना निवेश भारत से निकालकर चीन के बाजार में लगा रहे हैं। चीन की सरकार ने अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए प्रोत्साहन उपाय किए हैं जिसका असर वहां के शेयर बाजार पर भी दिख रहा है, जो निवेशकों को लुभा रहा है।
इसके अलावा अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से व्यापार नीति में बदलाव से अमेरिका में बॉन्ड यील्ड बढ़ा है और डॉलर में भी मजबूती आई है। इन सब वजहों से विदेशी निवेशक भारत जैसे उभरते बाजारों से अपना निवेश घटा रहे हैं। ट्रंप द्वारा दूसरे देशों के उत्पादों पर शुल्क लगाए जाने से निवेशक और अधिक घबरा गए तथा जोखिम वाली परिसंपत्तियों से बाहर निकलने के कारण बिकवाली बढ़ गई।
निफ्टी 26 सितंबर, 2024 के अपने सर्वकालिक उच्चतम स्तर से 15.8 फीसदी टूट चुका है और कुल बाजार पूंजीकरण 93 लाख करोड़ रुपये घट गया है। जिन शेयरों के दाम घटे हैं उनमें सुधार कंपनी के फंटामेंटल और बाजार में व्यापक तेजी पर निर्भर करेगा। स्वतंत्र इक्विटी विश्लेषक अंबरीश बलिगा ने कहा, ‘तेजी के दौर में कंपनियों के मुनाफे की उम्मीदें आसमान छू रही थीं मगर नतीजे अनुकूल नहीं रहने से शेयरों में भारी गिरावट आई है। कंपनियों की कमाई उम्मीद से बेहतर रहने, ब्याज दरों में कटौती, वृहद आर्थिक संकेतकों में सुधार या व्यापार नीति में स्थिरता के बाद ही बाजार में सुधार की उम्मीद है। यह निवेशकों के लिए अपने पोर्टफोलियो की समीक्षा करने और खराब प्रदर्शन करने वालों शेयरों को निकालने का सही समय है।’ उन्होंने कहा कि बाजार में जब सुधार होगा तो गुणवत्ता वाले शेयर अपने नुकसान की भरपाई कर लेंगे।