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Mutual Fund: ये 2 नंबर बताएंगे आपका फायदा या नुकसान! निवेश से पहले Alpha और Beta के बारे में जरूर जानें

Alpha and Beta in Mutual Funds: म्यूचुअल फंड चुनते समय केवल रिटर्न नहीं, बल्कि अल्फा और बीटा जैसे रेशियो को समझना भी जरूरी है।

Last Updated- June 17, 2025 | 12:42 PM IST
Mutual Fund

जब भी कोई निवेशक म्युचुअल फंड चुनता है, तो वह अक्सर केवल रिटर्न को देखकर फैसला करता है। लेकिन किसी भी फंड के सही आकलन के लिए रिटर्न के साथ-साथ यह जानना भी जरूरी होता है कि वह फंड बाजार के उतार-चढ़ाव में किस तरह से प्रतिक्रिया करता है और उसके पीछे फंड मैनेजर का योगदान क्या है। इन्हीं बातों को समझने में अल्फा (Alpha) और बीटा (Beta) जैसे इंडिकेटर मदद करते हैं।

Alpha: क्या होता है अल्फा?

Alpha यह दिखाता है कि फंड मैनेजर ने बेंचमार्क इंडेक्स की तुलना में कितना बेहतर या खराब प्रदर्शन किया है। अगर किसी फंड का अल्फा शून्य (0) है, तो इसका मतलब है कि फंड ने बेंचमार्क के बराबर रिटर्न दिया। अगर अल्फा सकारात्मक है, तो फंड ने बेंचमार्क से ज़्यादा रिटर्न कमाया है, जो फंड मैनेजर की कुशलता को दर्शाता है। वहीं, अगर अल्फा नकारात्मक है, तो इसका मतलब है कि फंड ने उम्मीद से कम प्रदर्शन किया।

उदाहरण के तौर पर, अगर बेंचमार्क इंडेक्स ने 8% रिटर्न दिया और फंड ने 10%, तो अल्फा होगा 2। इससे यह साबित होता है कि फंड मैनेजर ने अतिरिक्त मुनाफा दिलवाया।

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Beta: क्या होता है बीटा?

Beta यह बताता है कि फंड का मूल्य बाजार में आने वाले उतार-चढ़ाव से कितना प्रभावित होता है। बीटा का आधार मान 1 होता है। अगर किसी फंड का बीटा 1 है, तो इसका अर्थ है कि वह फंड बाजार के उतार-चढ़ाव के साथ उसी अनुपात में ऊपर-नीचे होता है। बीटा अगर 1 से अधिक हो तो फंड में ज्यादा उतार-चढ़ाव (वोलाटिलिटी) होता है और बीटा अगर 1 से कम हो तो फंड कम अस्थिर होता है।

मान लीजिए किसी फंड का बीटा 0.7 है, तो यह बाजार के मुकाबले 30% कम अस्थिर है, यानी इस फंड में जोखिम कम है। यह जानकारी निवेशकों को उनके रिस्क प्रोफाइल के मुताबिक सही फंड चुनने में मदद करती है।

Alpha और Beta क्यों होते हैं ज़रूरी?

निवेश करते समय यह जानना जरूरी है कि कोई फंड अतीत में किस तरह प्रदर्शन कर चुका है और बाजार की अस्थिरता के समय उसने कैसा बर्ताव किया। अल्फा यह दर्शाता है कि फंड मैनेजर ने बेंचमार्क के मुकाबले कितना अधिक या कम मुनाफा कमाया। दूसरी ओर, बीटा यह दिखाता है कि बाजार की हलचल का असर फंड पर कितना पड़ा।

अगर किसी निवेशक की जोखिम लेने की क्षमता कम है, तो वह ऐसे फंड को पसंद करेगा जिसका बीटा कम हो। वहीं, हाई रिटर्न की चाह रखने वाले निवेशक अधिक बीटा वाले फंड चुन सकते हैं। इसी तरह, एक मजबूत अल्फा यह संकेत देता है कि फंड मैनेजर ने बाजार से बेहतर प्रदर्शन किया है, जो निवेशकों के लिए सकारात्मक संकेत है।

कैसे होती है Alpha और Beta की कैलकुलेशन?

अल्फा की कैलकुलेशन इस फॉर्मूले से की जाती है:
(End Price + DPS – Start Price) / Start Price
जहां DPS का मतलब होता है – Distribution per Share.

इसके अलावा, CAPM (Capital Asset Pricing Model) के ज़रिए भी अल्फा निकाला जा सकता है। अगर किसी फंड का अनुमानित रिटर्न (CAPM) 5% था लेकिन फंड ने 8% कमाया, तो अल्फा होगा 3%, यानी 3% एक्स्ट्रा रिटर्न।

बीटा की कैलकुलेशन दो मुख्य बातों पर आधारित होती है – कोवेरिएंस (Covariance) और वेरिएंस (Variance)। कोवेरिएंस बताता है कि दो निवेश एक-दूसरे के मुकाबले कैसे मूव करते हैं, जबकि वेरिएंस किसी फंड के औसत मूल्य से ऊपर-नीचे होने के ट्रेंड को दिखाता है। बीटा का फॉर्मूला होता है – Covariance / Market Variance।

दूसरे ज़रूरी रेशियो जो प्रदर्शन को मापते हैं

अल्फा और बीटा के अलावा भी कुछ अन्य रेशियो होते हैं जो फंड के परफॉर्मेंस को समझने में मदद करते हैं। स्टैंडर्ड डिविएशन यह बताता है कि फंड का रिटर्न कितनी बार और कितने प्रतिशत ऊपर-नीचे हुआ है। शार्प रेशियो यह मापता है कि जोखिम के अनुपात में फंड ने कितना रिटर्न दिया। P/E रेशियो बताता है कि निवेशकों को एक यूनिट के लिए कितना भुगतान करना पड़ रहा है और वह कितना कमा रहा है। वहीं, R-Square यह दर्शाता है कि फंड का प्रदर्शन बेंचमार्क से कितना मेल खाता है।

सोर्स: मिराए एसेट म्युचुअल फंड, ग्रो और कोटक एमएफ ब्लॉग

(डिस्क्लेमर: यह डीटेल सिर्फ जानकारी के लिए है। यहां किसी भी तरह से निवेश की सलाह नहीं है। म्युचुअल फंड में निवेश बाजार के जोखिमों के अधीन है। निवेश संबंधी फैसला करने से पहले अपने एडवाइजर से परामर्श कर लें।)

First Published - June 17, 2025 | 12:42 PM IST

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