भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के पूर्णकालिक सदस्य अनंत नारायण ने कहा कि वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ) की ओर से किए गए निवेश का लगभग 1 लाख करोड़ रुपया या पांचवां हिस्सा निवेश के पीछे की मंशा के लिहाज से सवालों के घेर में है और नियमों से बचने की वजह से जांच के दायरे में है।
एआईएफ रियल एस्टेट, स्टार्टअप, गैर-सूचीबद्ध कंपनियों और सूचीबद्ध क्षेत्र में डेरिवेटिव सहित विभिन्न परिसंपत्तियों में निवेश करते हैं। सितंबर तक उद्योग में उनकी कुल निवेश प्रतिबद्धताएं 12 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गई थीं जबकि कुल निवेश लगभग 4.5 लाख करोड़ रुपये है। चूंकि निवेश किस्तों में किया जाता है, इसलिए प्रतिबद्धताएं निवेश से अधिक होती हैं। जुटाई गई कुल राशि 5 लाख करोड़ रुपये से अधिक है।
सेबी के अधिकारी ने कहा, ‘हमने ऐसे मामले देखे हैं जिनमें मौजूदा वित्तीय क्षेत्र के नियमों को दरकिनार करने के लिए फंड बनाए गए हैं। 4.5 लाख करोड़ रुपये के निवेश में से लगभग 1 लाख करोड़ रुपये का निवेश नियामकीय से बचने के लिहाज से संदिग्ध रहा है। यह कोई छोटा आंकड़ा नहीं है।’
इन मामलों में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए), दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) और एफपीआई और फेमा से संबंधित नियमों का उल्लंघन शामिल है। बाजार नियामक ने ऐसे मामलों पर अंकुश लगाने के लिए आचरण संहिता लागू की है। पिछले वर्ष नियामक ने एआईएफ के जरिए हुए कई नियमों के उल्लंघन पर चिंता जताई थी। इसके बाद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने ऋणों की
एवरग्रीनिंग पर अंकुश लगाने के लिए प्रतिबंध लगा दिए थे। उस समय नियामक ने अनुमान लगाया था कि करीब 30,000 करोड़ रुपये के मामलों में नियमों का उल्लंघन है।