भारत की तरह कनाडा ने भी वर्ष 2011 तक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग मानदंड (आईएफआरएस) अपनाने का निर्णय लिया है।
हाल के एक सर्वे -आईएफआरएस के लिए कनाडा की तैयारी, सीएफईआरएफ कार्यकारी शोध रिपोर्ट , जो कि फाइनेंशियल एक्जीक्यूटिव इंटरनेशनल कनाडा (एफईआई कनाडा) के शोध संगठन द्वारा कराया गया है, में इस बात का खुलासा किया गया है कि कनाडा के बड़े वित्तीय कार्यकारी इस बात को मानते हैं कि आईएफआरएस के लिए उनके कर्मचारी तैयार नही हैं।
विनिर्माण, रिटेल और वितरण उद्योग तो इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं है। इस शोध में यह बात खुलकर सामने आई है कि कुछ वरिष्ठ वित्तीय कार्यकारी ही इस बात को लेकर सचेत हैं कि आईएफआरएस और कनाडा के जीएएपी में मूल अंतर क्या है, बहुत सारे ने तो अपनी ऑडिट कमिटी को इसका संक्षेप भी बताया है और कुछ ने इस परिवर्तन की लागत का भी आकलन किया है, लेकिन बहुसंख्यक इस तंत्र को कैसे नियंत्रित किया जाए इसको लेकर उधेड़बुन की स्थिति में हैं।
भारत की भी स्थिति इससे अलग नहीं है। आईएफआरएस को अपनाना एक दुष्कर काम है। कंपनियों को भारतीय जीएएपी से आईएफआरएस की तरफ मुड़ने से पहले एक संरचित तरीका बना लेना चाहिए। जो टीम इस काम को अंजाम दे रही हो उसे भारतीय जीएएपी और आईएफआरएस दोनों के बारे में अच्छी जानकारी होनी चाहिए।
इस नई सूचना तकनीक आधारित शिल्प के जरिये रिपोर्टिंग करने से पहले उस टीम को सूचना तकनीक (आईटी) की सारी क्षमताओं का पूरा ज्ञान होना चाहिए। एकाउंटिंग कर्मचारी को इसके लिए समुचित प्रशिक्षण की दरकार है। आईएफआरएस को आत्मसात करने से पहले हरेक कंपनियों को एक विस्तृत योजना को अंजाम देना चाहिए।
कनाडा के मामले में देखें तो कनाडा प्रतिभूति प्रशासक (सीएसए) ने मई 2008 में अपने कर्मचारियों के लिए एक बुलेटिन जारी किया जिसमें कंपनियों के लिए यह निर्देश था कि 2011 तक आईएफआरएस को कार्यान्वित करने के लिए प्रबंधन वाद विवाद और व्याख्या (एमडी ऐंड ए) की योजनाओं को कैसे बंद किया जाए। एमडी ऐंड ए की अंतरिम और वार्षिक वित्तीय रिपोर्ट 2008 के शुरुआत में ही आती है।
इन सब चीजों के बावजूद आईएफआरएस को अपनाने वाली हर कंपनियों, जो 2011 या उससे पहले इसे लागू करने की सोच रहे हैं, को इसकी स्थिति की मूलभूत रिपोर्ट और इसे बदलने में लगने वाले समयावधि की गणना कर देनी चाहिए। इसके लिए एमडी ऐंड ए के वित्तीय वर्ष का अंत जो 31 दिसंबर 2008 है से आईएफआरएस की शुरुआत जो 1 जनवरी 2011 होगी तक की पूरी गणना हो जानी चाहिए।
आईएफआरएस की योजना को क्रियान्वित करने के लिए जिन मूलभूत कारकों पर विचार करना होगा वे हैं, एकाउंटिंग नीति, आईएफआरएस के तहत आने वाली नीतियां और उसके क्रियान्वयन का निर्णय और इसके अंत: अवलोकन के लिए योग्य लक्ष्य आधार, सूचना तकनीक और डाटा तंत्र, वित्तीय रिपोर्टिंग पर आंतरिक नियंत्रण, डिस्क्लोजर नियंत्रण और प्रक्रिया सहित निवेशकों से संबंध और बाह्य संचार योजना, वित्तीय रिपोर्टिंग में विशिष्टता सहित प्रशिक्षण जरुरतें, व्यापारिक गतिविधियां जैसे मुद्रा और हेज गतिविधि के साथ ऐसी भी बातें जो जीएएपी मानक में वर्णित हैं यथा ऋण शर्तें, पूंजी की जरूरतें और रियायत की व्यवस्था आदि पर ध्यान देना अत्यंत जरुरी है।
नोटिफिकेशन में तीन सालों की एमडी ऐंड ए की अंतरिम और वार्षिक वित्तीय रिपोर्ट का पूर्ण विवरण है। कनाडा नियामक के द्वारा इस तरह का निर्णय लिया जाना बेशक भारतीय नियामकों को भी एक रास्ता दिखाता है। इसके अंतर्गत किसी संक्रमित योजना को आम करना और उसके आंकड़ों को निरंतर करने के लिए कंपनियों पर दबाव बनाना इस आईएफआरएस को लागू करने की दिशा में एक आवश्यक और ठोस कदम है।
बहुत सारे मामले में भारतीय जीएएपी और आईएफआरएस के द्वारा एकाउंटिंग की गणना करने में कोई ज्यादा फर्क नहीं होता। इन दोनों की क्रियान्वयन प्रक्रिया और कार्यान्वित करने की जरुरतों में कोई अंतर हो सकता है। वैसे भी यह अंतर अलग कंपनियों के लिए अलग होगा। इसलिए हर कंपनी को चाहिए कि वे वर्तमान एकाउंटिंग नीति और आईएफआरएस की एकाउंटिंग नीति की समीक्षा अपनी जरुरतों के आधार पर करे।
कंपनियों को चाहिए कि वे लाभ और हानि के आधार पर इसके अंतर की समीक्षा करे और अंतरिम नियंत्रण तंत्र की आवश्यकताओं के मुताबिक आंकड़ों के एकीकरण की रक्षा करें। एकाउंटिंग की इस नई नीति के क्रियान्वयन और इसकी प्रभावी समीक्षा के लिए कंपनियों को अपने ऑडिटर्स की पूरी मदद लेनी चाहिए। वैसे कुछ लोग इस बात का आरोप लगा सकते हैं कि इससे ऑडिटर्स पर निर्भरता बढ़ जाएगी। लेकिन मैं सोचता हूं कि यह कोई बहुत बडा मुद्दा नहीं है।
इस नई नीति के क्रियान्वयन के लिए प्रबंधन और ऑडिटर्स को आपस में सहमति बनानी चाहिए। इसी तरह से संक्रमण काल में किसी प्रकार की समस्याओं से निजात पाया जा सकता है। यह प्रक्रिया अभी से शुरु हो जानी चाहिए। भारतीय जीएएपी से आईएफआरएस में परिवर्तन करने के लिए बहुत सारी कंपनियां कंसल्टेंट की भी नियुक्ति कर सकते हैं। इस बात को यहां स्वीकार करना चाहिए कि इस प्रक्रिया में लागत लाभ का व्यापार मौजूद है।