Categories: कानून

जमा न हुए कर को निर्यातकों को लौटाने का पक्षधर है मंत्रालय

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 6:41 PM IST

वाणिज्य मंत्रालय ने 13वें वित्त आयोग से एक ऐसी योजना तैयार करने की मांग की है, जिसके तहत निर्यातकों को ऐसी कर राशि लौटाई जा सके जिसे  राज्य सरकारें जमा नहीं कराती हैं।

इस तरह के करों के रिफंड के मुद्दे पर उदासीन दिखाई दे रही है। इसलिए वाणिज्य मंत्रालय ने आग्रह किया है कि केंद्र इन करों या शुल्कों  को उन निर्यातकों को रिफंड करें और उन राशि को डिवॉल्यूशन फॉर्मूला के तहत राज्य से बतौर बकाया वसूल करे।

वाणिज्य मंत्रालय ने एक दस्तावेज वित्त आयोग को प्रेषित किया है, जिसमें अप्रेषित राज्य करों के रिफंड के संबंध में कई तरह की बातें सुझाई गई है।
वाणिज्य मंत्रालय ने यह भी सुझाव दिया है कि आयोग या तो सीधे राज्य सरकार को यह दिशा-निर्देश दें कि समाज सेवाओं से जुड़ी गतिविधियों में संबद्ध राज्यों के श्रम को ही लगाया जाए या 4000 करोड़ रुपये की लागत से इसके लिए मंत्रालय में एक उपयुक्त प्रस्ताव की व्यवस्था करे।

इसमें एक अतिरिक्त सुझाव यह भी दिया गया है कि राज्य सरकार को इन फंडों का इस्तेमाल बुनियादी ढांचों को मजबूत बनाने और उसके विकास में किया जाना चाहिए।

वाणिज्य मंत्रालय इस बात से परेशान है कि यद्यपि सैद्धांतिक तौर पर सामग्रियों और सेवाओं का निर्यात होना चाहिए, लेकिन उस पर किसी प्रकार के कर की व्यवस्था नहीं होनी चाहिए।

इस बात की चर्चा विश्व व्यापार संघ की बैठक में भी कई बार दोहराई जा चुकी है और संघ ने इस माफी की बात भी स्वीकार कर ली है। इस कर माफी के अंतर्गत केवल वे ही शुल्क शामिल नहीं किए गए हैं, जो केंद्र के द्वारा आरोपित होते हैं, बल्कि  राज्य सरकारों द्वारा लगाए गए शुल्कों को भी समाहित किया गया है।

लेकिन राज्य सरकारों द्वारा लिए जाने वाले इन करों को रिफंड करने की कोई बात नहीं चल रही है। इस पूरी कर संरचना को लेकर एक दस्तावेज तैयार किया गया है, जिसमें एक मोटे तौर पर यह अनुमान लगाया गया है कि निर्यात पर इस प्रकार की छूट 3.01 प्रतिशत, जो कि 2.74 प्रतिशत (बिजली उपकरण पर लगाए जाने वाले कर),  पेट्रोलियम उत्पादों पर लग रहा बिक्री कर और केंद्रीय बिक्री कर 2 प्रतिशत की दर से और चुंगी, मंडी कर, टर्नओवर कर, प्रवेश कर आदि के मद में 0.75 प्रतिशत आदि को शामिल कर के किया गया है।

भारत में निर्यात की विकास दर 23 प्रतिशत है और यहां का मकर्डाज निर्यात का टर्नओवर 2010 तक 234 अरब डॉलर होने का अनुमान है और वित्त आयोग की टर्मिनल अवार्ड वर्ष में यह 660 अरब डॉलर हो जाएगी।

वाणिज्य मंत्रालय ने कहा कि अगर अगर यह निर्यात 234 अरब डॉलर का रहा, तो राज्य के द्वारा कर में 18,500 करोड़ रुपये की छूट का प्रावधान होगा और इसी छूट के तहत अगर यह निर्यात 660 अरब डॉलर का रहा, तो यह राशि बढ़कर 52,390 करोड रुपये हो जाएगा।

चाय, कॉफी, आदि उत्पादों की निर्यात क्षमता का पूरा ब्योरा देते हुए वाणिज्य मंत्रालय ने कहा कि आज के प्रतिस्पर्धी विश्व में प्लांटेशन के मालिक लागत को सोंखने में असमर्थ हैं और इसलिए हाउसिंग, पीने का पानी, बिजली, विद्यालय और दूसरी सामाजिक इकाइयों में लगे श्रम को फायदा दे देते हैं।

राज्य सरकार समाज से जुड़ी इन गतिविधियों में भी अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ते हुए कर या शुल्क का प्रावधान करती है और कहती है कि प्लांटेशन तरीके से वे इन चीजों का निर्माण नहीं कर सकते हैं।  न तो राज्य सरकारें हाउसिंग का इंतजाम कर सकती है और न ही पीन के पानी की व्यवस्था कर सकते हैं।

इसके लिए न तो राज्य सरकार ठेका का सहारा लेती है और न ही प्लांटेशन तकनीक का इस्तेमाल करती है। उक्त बातें वाणिज्य मंत्रालय ने अपने प्रतिनिधित्व में आयोग से प्रेषित की।

वाणिज्य मंत्रालय ने कहा कि बहुत सारे राज्य अपने यहां निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। वे सिर्फ इस बात के  कारण अपने यहां निर्यात को बढ़ावा नहीं दे रही है, क्योंकि इससे उसे करों की अधिकाधिक गुंजाइश नहीं दिखती है।

जाहिर सी बात है कि बहुत सारी निर्यातक क्लस्टर करों का भुगतान नहीं करती है। मंत्रालय इस बात की योजना बना रहा है कि एएसआईडीई स्कीम के तहत ग्यारहवीं योजना में 3600 करोड़ रुपये खर्च किए जाए ताकि राज्यों में निर्यातों को लेकर बेहतर बुनियादी ढ़ांचा विकसित किया जा सके।

इस तरह के कोष का निर्माण करने के पीछे मंत्रालय का लक्ष्य राज्यों के बीच निर्यात से जुड़ी बुनियादी ढ़ांचा के विकास में मौजूद गहरी खाई को पाटना है। मंत्रालय ने कहा कि वित्त आयोग को इस मामले में 20,000 करोड रुपये से अधिक की राशि आवंटित करनी चाहिए।



 

First Published : August 24, 2008 | 11:52 PM IST