इंजीनियरों के लिए ऑटोमेशन एक बेहतर करियर विकल्प बन कर उभर सकता है।
इस बात का अंदाजा ऑटोमेशन इंडस्ट्री एसोसिएशन (एआईए) को है और यही कारण है कि उसने कॉलेजों में ऑटोमेशन के पाठयक्रम को सुधारने की योजना बनाई है।
कुछ समय पहले एसोसिएशन ने प्रोडक्शन इंजीनियरिंग, ऊर्जा संरक्षण और मशीन तथा मानव सुरक्षा के छात्रों को प्रशिक्षण देने के लिए एक लघु अवधि का कार्यक्रम तैयार किया था।
यह कार्यक्रम इंडस्ट्रियल रोबोटिक्स और ऑटोमेशन को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था। इस कार्यक्रम को तैयार करने में भारतीय प्रबंधन संस्थान, मद्रास (आईआईटी-एम) के इंजीनियरिंग विभाग की भी सहायता ली गई थी।
एआईए के निदेशक अपुन वाधवा ने बताया, ‘आईआईटी या फिर जो भी दूसरे संस्थान इच्छुक हों, हमारे पास उनके लिए एक पूरे सेमेस्टर के पाठयक्रम का प्रस्ताव है।
एआईए ने इसके लिए प्रबंधन स्कूलों से बात करनी भी शुरू कर दी है। भविष्य के प्रबंधकों के पास उत्पाद संयंत्रों, बुनियादी परियोजनाओं और वैश्विक जुड़ाव वाले उद्यमों का प्रबंधन करने का भी गुण होना होगा।’
वाधवा ने बताया कि करीब 6 लाख इंजीनियरिंग स्नातकों में से केवल 25 फीसदी इस उद्योग में कदम रखने को इच्छुक दिखते हैं और कुछ ऐसे प्रयास किए जाने चाहिए कि इस क्षेत्र के प्रति ज्यादा से ज्यादा छात्र आकर्षित हों।
हाल ही में एक संगोष्ठी के आयोजन के लिए एआईए ने गाजियाबाद और नोएडा मैनेजमेंट एसोसिएशनों के साथ गठजोड़ किया था।
यह संगोष्ठी ए के गर्ग कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में आयोजित की गई थी। जहां दुनिया भर में ऑटोमेशन उद्योग 6 से 8 फीसदी की दर से विकास कर रहा है, वहीं भारत और चीन जैसे देशों में यह 30 फीसदी से भी अधिक दर से विकास कर रहा है।
पंचवर्षीय अनुमानों को देखकर लगता है कि इस उद्योग में विकास की बेहतर संभावनाएं हैं और यहां कई तकनीकी स्नातकों की जरूरत पड़ेगी। इन स्नातकों की फौज पॉलिटेक्निक और इंजीनियरिंग कॉलेजों दोनों से ही तैयार करनी पड़ेंगी। फिलहाल इस उद्योग में करीब 50,000 पेशेवर कार्यरत हैं।
वाधवा बताते हैं, ‘अगले तीन साल में मांग कम से कम दोगुनी होगी। विज्ञान और आईटी के ऐसे स्नातक जिन्हें मशीनों के साथ लगाव है उनके लिए अपने करियर को संवारने का यह उद्योग एक अच्छा विकल्प होगा।’
केपीएमजी में भागीदार और पीपुल ऐंड चेंज सॉल्युशंस के प्रमुख गणेश शेरमन बताते हैं कि, ‘तमाम क्षेत्रों से बेहतर उत्पादन और प्रदर्शन की मांग होने से ऑटोमेशन कंपनियों के लिए जरूरी है कि वे आरऐंडडी पर अधिक से अधिक ध्यान दें।
वर्ष 2006 में ऑटोमेशन क्षेत्र 5,000 करोड रुपये का था और इसमें 20 फीसदी की दर से बढ़ोतरी हो रही थी पर आज इस उद्योग में 30 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी हो रही है।’
इस उद्योग में कार्यरत इंजीनियरों को विभिन्न कंपनियां अलग अलग वेतन दे रही हैं। जहां भारतीय कंपनियां पेशेवरों को 3 से 6 लाख के बीच कॉस्ट टू कंपनी (सीटीसी) की पेशकश करती हैं तो वहीं अंतरराष्ट्रीय कंपनियों की ओर से 4 से लेकर 10 लाख के बीच का ऑफर मिलता है।