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चार्टर्ड एकाउंटेंसी में रहना है आगे तो सालों पुराने दिशानिर्देशों को कहें अलविदा

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 5:05 PM IST

जिस रफ्तार से भारतीय चार्टर्ड एकाउंटेंट (सीए) संस्थान में विकास देखने को मिला है और यह विश्व में दूसरा सबसे बड़ा संस्थान बन कर उभरा है, उससे तेज गति से शायद ही किसी संस्थान ने विकास किया हो।


अब समय आ गया है कि जब देश के चार्टर्ड एकाउंटेंटों को पूरे विश्व में अपनी धाक जमानी चाहिए। वैयक्तिक स्तर पर देखा जाए तो भारत के सीए पेशेवरों ने दूसरे देश के एकाउंटिंग पेशेवरों को अपने प्रदर्शन से यह दिखा दिया है कि वे भी किसी से कम नहीं हैं।

जिस तेजी के साथ भारतीय सीए पेशेवरों ने अंतरराष्ट्रीय एकाउंटिंग मानदंडों को अपनाया है, शायद ही कोई दूसरा देश कर पाया हो। वैयक्तिक स्तर पर तो देश के एकाउंटिंग पेशवरों की अच्छी धाक है पर अब समय आ गया है कि एक संस्थान के तौर पर भी वे एकजुट होकर अपनी कार्यकुशलता दूसरे देशों के सामने साबित करें।

बाकी देश हमारे सीए की क्षमताओं को और बेहतर ढंग से समझ पाएं इसके लिए जरूरी है कि देश के पेशेवर मानकों की वैश्विक भाषा बोलने लगें। वे एकाउंटिंग का अभ्यास करते समय उन नियमों का ध्यान रखें जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित हो। एकाउंटिंग के प्रति उनका रवैया और परिदृश्य एक जैसा हो। एकाउंटिंग एक ऐसा पेशा है जहां अब भी सख्त नियामकों का अभाव है।

निगरानी के लिए अभी भी कठोर मानदंड नहीं बनाए गए हैं। ऐसे में स्वाभाविक है कि वैश्विक स्तर पर देश के पेशेवर जो मुकाम हासिल कर सकते हैं उनसे वे अब भी कहीं न कहीं पीछे हैं। भारतीय नियामकों के मन में अब भी कहीं न कहीं यह बात घर कर गई है कि कोई भी नियम और कानून चाहे वह अंतरराष्ट्रीय ही क्यों न हो, उसे देश में लागू किए जाने के पहले जरूरी है कि भारतीय परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए उनमें संशोधन किया जाए।

पर शायद ये नियामक इस बात को भूल गए हैं कि ऐसा करके कहीं न कहीं हम भारतीय एकाउंटिंग पेशेवरों को नुकसान ही पहुंचा रहे हैं। वैसे देश के सीए रेग्युलेशंस में समय समय पर संशोधन होते रहे हैं। भारत सरकार ने 2006 में सीए ऐक्ट में संशोधन कर सीए पेशेवरों को यह छूट दी थी कि वे दूसरे पेशे से जुड़े लोगों के साथ साझेदारियां निभा सकते हैं। इस संशोधन का स्वागत किया गया था। हालांकि विदेशों में तो काफी समय से ही यह छूट दी जाती रही है पर भारतीय सीए के लिए पहले यह प्रतिबंधित था।

इंस्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स (आईसीएआई) को इस बात की छूट दी गई थी कि वे उन श्रेणियों को तय करें जिनके पेशेवरों के साथ कोई सीए साझेदारी निभा सकता है। आईसीएआई ने उन पेशों का तो चयन कर लिया जिनके साथ सीए साझेदारियां निभा सकते थे, पर अंतरराष्ट्रीय मानकों का ध्यान रखते हुए यह निर्देश जारी नहीं किया गया कि ये पेशेवर उन्हीं संगठनों में काम करते हों जिनका गठन भारत सरकार की ओर से किया गया हो। आईसीएआई ने वकीलों, आर्किटेक्टों, इंजीनियरों, कॉस्ट एकाउंटेंट्स और कंपनी सचिवों के साथ सीए के साझेदारी को मान्यता दी थी।

परिणाम यह होगा कि अगर कोई भारतीय सीए विदेशों में विभिन्न क्षेत्रों में सेवाएं देना चाहता हो और किसी अंतरराष्ट्रीय ठेके के लिए आवेदन देना चाहता हो और इसके लिए वह उन देशों के पेशेवरों के साथ समझौता करत हो तो यह गैरकानूनी रहेगा। इसकी वजह है कि आईसीएआई ने नियम बनाते वक्त स्पष्ट नियमों का उल्लेख नहीं किया है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की ओर से वित्तीय सहायता प्राप्त वैश्विक ठेकों (जैसे एशियाई विकास बैंक और विश्व बैंक) के साथ यह शर्त जुड़ी होती है कि वे कुछ संख्या में घरेलू कंसल्टेंट्स के साथ साझेदारी कर सकते हैं।

ऑडिटर्स जो नियामक सेवाएं देते हैं उनकी गुणवत्ता अच्छी है या नहीं यह एक वैश्विक चिंता का विषय है। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ एकाउंटेंट्स (आईसीएआई भी इसका एक सदस्य है) ने नियामकों से जो अपेक्षाएं हैं उनका उल्लेख करते हुए स्टेटमेंट ऑफ क्वालिटी कंट्रोल 1 (आईएसक्यूसी) जारी किया है। आईसीएआई ने इसे भी भारत के हिसाब से बदलते हुए देशी सीए पेशेवरों के लिए इस स्टेटमेंट का भारतीय रूपांतरण पेश किया है। यह जानना काफी रुचिकर होगा कि किन क्षेत्रों में बदलाव किया गया है।

आईएसक्यूसी के अनुसार विशेषज्ञों का एक दल इस बात का मूल्यांकन करेगा कि किसी फर्म में एकाउंटिंग मानदंडों की जांच गुणवत्तापूर्ण है या नहीं। वहीं दूसरी ओर भारतीय मानकों के अनुसार इस मूल्यांकन के लिए भारतीय संस्थान का एक सदस्य ही काफी है। आईसीक्यूसी में इस बात का उल्लेख किया गया है कि अगर क्वालिटी कंट्रोल में किसी संस्थान की विशेषज्ञता हो तो किसी दूसरे संस्थान के लिए भी उसी के प्रतिनिधि क्वालिटी कंट्रोल का काम कर सकते हैं, जबकि आईसीएआई कहता है कि किसी संस्थान के खुद के सदस्य की गुणवत्ता का मूल्यांकन कर सकते हैं।

चलिए एक छोटे से उदाहरण का जिक्र करते हैं जहां एक विदेशी जीएएपी को वित्तीय स्टेटमेंट के रुपांतरण का काम सौंपा गया हो तो आईसीएआई के मुताबिक रुपांतरण का काम ठीक तरीके से हो रहा है या नहीं इसकी जांच किसी भारतीय संस्थान का सदस्य ही कर सकता है। इस पेशे में इस तरीके के कामों में खासी बढ़ोतरी देखी जा रही है और जब गुणवत्ता की बात हो तो गैर वित्तीय विशेषज्ञों पर भरोसा करना बहुत आसान नहीं होता है। सरकार ने विभिन्न शाखाओं में साझेदारियों को लेकर जो शर्तें रखी थीं यह उसके ठीक उलट स्थिति है।

समय आ गया है कि लंबे समय से चली आ रही नियमावलियों में कुछ बदलाव किया जाए और इस पेशे के प्रति उदारता दिखाई जाए। क्या इस बात में कोई सच्चाई हो सकती है कि भारत का सूचना तकनीक क्षेत्र इतना विकास कर पाया है क्योंकि इस क्षेत्र में कोई रेग्युलेटर नहीं था? और क्या इसके पीछे एक बड़ी वजह यह थी कि सूचना तकनीक के बारे में अधिकारियों को भी इतनी अधिक समझ नहीं थी कि वह इस बारे में शोर कर सकें कि भारत को ध्यान में रखकर कानून तैयार किए जाएं? क्या एकाउंटिंग पेशेवरों को इनसे सीख लेनी चाहिए?

First Published : August 18, 2008 | 3:15 AM IST