किसी प्रवासी को कोई राशि चुकानी हो तो अदा करने वाले व्यक्ति को स्रोत पर ही कर की रकम काटनी होती है।
पर अगर उस प्रवासी की बाध्यता भारत में कर चुकाने की नहीं हो तो ऐसे में उसे दी जाने वाली रकम से किसी तरीके का कर नहीं काटा जा सकता है। ऐसे में अदा करने वाले के लिए यह जरूरी है कि वह खुद इस बात का मूल्यांकन करे कि जिस प्रवासी को उसे पैसे चुकाने है, उसके लिए भारत में कर चुकाना अनिवार्य है या नहीं।
हालांकि यह सुनने में जितना आसान लगता है इसे पता लगाना उतना ही मुश्किल है। यही वजह है कि विधायिका ने भारत में प्रवासियों के कर की जिम्मेवारियों के आकलन के लिए अलग से अथॉरिटी फॉर एडवांस रूलिंग्स (एएआर) नाम की न्यायिक इकाई गठित की है।
अब सवाल यह है कि प्रवासियों के कर की देनदारी निर्धारित करने के लिए एएआर का दरवाजा कौन खटखटा सकता है? क्या ऐसे आवेदन करने की जिम्मेवारी खुद प्रवासियों की है, या फिर उनकी जिन्हें ये पैसे चुकाने हैं।इस सवाल को लेकर विवाद हाल ही में मैकलॉयड इंडिया लिमिटेड (299 आईटीआर 79) के एक मामले में उठा।
मामला कुछ ऐसा था कि विदेशी कंपनी ने भारतीय कंपनी को कुछ शेयर बेचे थे। ऐसे में भारतीय कंपनी को विदेशी कंपनी को भुगतान करना था। पर भारतीय कंपनी को यह समझ में नहीं आ रहा था कि विदेशी कंपनी को किए जाने वाले भुगतान से कर की रकम काटी जानी है या नहीं।
इसे स्पष्ट करने के निए भारतीय कंपनी ने एएआर से संपर्क साधा। विभाग का मानना था कि अगर मसला विदेशी कंपनी की ओर से कर की अदायगी है तो ऐसे में आवेदन भी विदेशी कंपनी की ओर से ही पेश किया जाना चाहिए। इस मामले में जो आदेश दिया गया वह इस प्रकार था, ‘हमारे सामने कोई बाध्यता नहीं है।
धारा 245 एन के खंड बी के उपखंड 2 में यह प्रावधान है कि अगर किसी भारतीय कंपनी ने प्रवासी कंपनी के साथ कोई डील की है तो ऐसी स्थिति में मामले के लिए आवेदन भारतीय कंपनी को ही करना चाहिए।’ एएआर का यह निर्णय न सिर्फ सही दिखता है बल्कि, वास्तविक धरातल पर सटीक भी बैठता है। जब कि कर की कटौती की जिम्मेवारी भारतीय कंपनी की बनती है तो ऐसे में उचित भी यही है कि भारतीय कंपनी ही कर की अदायगी को लेकर स्थिति स्पष्ट करने के लिए एएआर के पास जाए।
एएआर ने इसी तरीके का एक फैसला एयरपोट्र्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (299 आईटीआर 102) के मामले में भी दिया है। इस केस में एयरपोट्र्स अथॉरिटी को अमेरिकी कंपनी को भुगतान करना था। वास्तव में इस मामले में अमेरिकी कंपनी पहले ही अपने भुगतान को लेकर एक मामला दर्ज कर चुकी थी, जिसकी सुनवाई पूरी नहीं हुई थी। ऐसे में अमेरिकी कंपनी ने एएआर के पास भारतीय कंपनी के आवेदन का दो मंचों पर विरोध किया।
उनका कहना था कि एयरपोट्र्स अथॉरिटी का हक नहीं बनता कि वह प्रवासी कंपनी के प्रवासी के मामले में एएआर के पास गुहार लगाए। दूसरा यह कि जब इस मामले में पहले से ही किसी अदालत में मुकदमा चल रहा है तो किसी दूसरी जगह पर अपील करने का कोई आधार ही नहीं बनता।एएआर ने मामले में फैसला सुनाया, ‘स्त्रोत पर कर काटने का यह मामला आयकर कानून की धारा 195(1) के अंतर्गत आता है।
अगर भारतीय कंपनी कर की स्थिति स्पष्ट नहीं कर पाती है और सरकार को भुगतान करने में असफल रहती है तो धारा 40(ए) और धारा 271 सी के प्रावधानों के तहत परिणाम प्रतिकूल रह सकते हैं। यही वजह है कि भारतीय कंपनी ने एएआर के पास मामला दर्ज किया है।’ वहीं दूसरी ओर इस सवाल पर कि जब किसी दूसरी अदालत में अमेरिकी कंपनी पहले से ही मामला दायर कर चुकी है, एएआर में आवेदन का क्या औचित्य है, अदालत का कहना था कि दोनों ही मामले एक दूसरे से जुदा हैं।