कंपनियों द्वारा उत्पादन में इजाफा किए जाने और नई प्रौद्योगिकी के सामने आने से कोविड-19 जांच किट की लागत में काफी कमी आ चुकी है। अप्रैल में इसके दाम करीब 1,200 रुपये थे और अब तकरीबन 200 रुपये हैं। हालांकि प्रयोगशालाओं के लिए इस किट की लागत और उपभोक्ताओं द्वारा चुकाए जाने वाले जांच के दामों के बीच का अंतर इसी अनुपात में कम नहीं हुआ है।
केवल दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ही कोविड के लिए आरटी-पीसीआर जांच की कीमत 1,600 से 2,400 रुपये के बीच है। अधिकांश राज्य सरकारें कोविड की जांच के लिए वसूले जाने वाले शुल्क की अधिकतम सीमा तय कर चुकी हैं।
इस बीच कोविड जांच किटों का विनिर्माण करने वाली कंपनियों ने बड़े स्तर पर उत्पादन के जरिये काफी कम लागत का स्तर हासिल कर लिया है। उदाहरण के लिए जेनेस2मी अब सरकार को 400 रुपये में आरटी-पीसीआर जांच किटों की आपूर्ति कर रही है।
फ्रांस स्थित जांच अनुसंधान करने वाली कंपनी जेनेस्टोर ने हाल ही में एक आरटी-पीसीआर जांच किट की शुरुआत की है जो आरटी-पीसीआर की जांच का सबसे महंगा अवयव होता है। इसकी कीमत 200 रुपये है। मई में यह 800 से 1,200 रुपये केबीच उपलब्ध थी। जेनेस्टोर के वैश्विक मुख्य कार्याधिकारी और अनुसंधान एवं विकास प्रमुख अनुभव अनुषा का कहना है कि हम अपनी विनिर्माण प्रक्रिया में रिवर्स इंटीग्रेशन के माध्यम से लागत कम कर पाए थे। एंजाइम से लेकर प्राइमर तक, सब कुछ हमारे संयंत्र में बनाया गया था। विशेषज्ञों ने कहा कि कोविड जांच की कीमत कम करके आधी की जा सकती है, क्योंकि कंपनियां उत्पादन की मात्रा बढ़ा रही हैं और अपने मार्जिन को कम कर रही हैं। करीब 100 कंपनियों को आरटी-पीसीआर जांच किट का विनिर्माण करने के लिए भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की मंजूरी मिल चुकी है, जबकि अप्रैल में केवल दर्जन भर को ही मंजूरी मिली थी। तब भारत को जांच किटों का आयात करना पड़ा था।
अप्रैल में जांच की जो लागत थी, उसे जांच किटों ने आधा कर दिया है। अब इनकी लागत लगभग 16 प्रतिशत है। विशेषज्ञों को लगता है कि प्रयोगशालाओं की पूरी लागत को ध्यान में रखने के बावजूद यह अंतर काफी ज्यादा है। भारत में कई प्रयोगशालाओं ने स्वचालित आरएनए एक्सट्रैक्शन मशीनों में बड़ी मात्रा में निवेश किया है जो आरटी-पीसीआर जांच का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होती हैं। इतना ही नहीं, बल्कि कोविड की जांच से संबंधित अतिरिक्त लागत के कारण भी दाम अधिक बने हुए हैं।
दिल्ली स्थित प्रयोगशाला के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम प्रकाशित न करने का अनुरोध करते हुए कहा कि कोविड-19 की जांच के लिए आणविक में पीएचडी वाले व्यक्तियों के अलावा डेटा प्रविष्टि के लिए भी अधिक लोगों को नियुक्त करना पड़ा है। प्रत्येक राज्य एक अलग प्रारूप का अनुसरण करता है जिसका अर्थ है यह कि हमें डेटा प्रविष्टि वाली मजबूत टीम की आवश्यकता है। इन सबसे लागत में इजाफा होता है।
जहां एक ओर प्रयोगशालाएं इस बात से सहमत हैं कि जांच की पहुंच और उसके सामथ्र्य में सुधार की आवश्यकता है, वहीं दूसरी ओर उनका मानना है कि अगर जांच से उन्हें घाटा होता है, तो यह टिकाऊ नहीं रहेगा।
डांग लैब्स के मुख्य कार्याधिकारी अर्जुन डांग ने कहा कि हम जो कीमत वसूलते हैं, उसके लिए हम एक निश्चित गुणवत्ता प्रदान करते हैं। हम बाइक पर कोविड-19 के नमूने एकत्र नहीं करते हैं। इसके बजाय हमारे पास अपने तकनीशियनों के लिए पीपीई (पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट) उपकरण वाली और चिकित्सा संबंधी जैविक कचरे के लिए सुरक्षित डब्बे से लैस तापमान का विश्लेषण करने वाली वातानुकूलित कार है। हम स्वचालित आरएनए एक्सट्रैक्शन और प्रसंस्करण के लिए उपलब्ध उपकरणों के शीर्ष मानक का उपयोग करते है।
जून में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों में कोविड की जांच के दामों में अंतर पर ध्यान देते हुए सरकार से अधिकतम सीमा तय करने के लिए कहा था। गृह मंत्रालय ने कोविड-19 की जांच के लिए अधिकतम कीमत संशोधित करके 2,400 रुपये कर दी थी जो पहले 4,500 रुपये के ऊंचे स्तर पर थी।
जांच करने वाली प्रयोगशालाओं ने कहा कि सरकार द्वारा की गई कीमतों में कटौती से किट के दामों में कमी आई है। एसआरएल डायग्नोस्टिक्स के मुख्य कार्याधिकारी आनंद के कहते हैं कि हमें यह बात समझने की भी जरूरत है कि संबंधित लागत भी होती है जिसे संशोधिक कीमतों में शामिल नहीं किया जाता है। जैसे नमूना एकत्रित करना, वायरल ट्रांसपोर्ट मीडिया, लॉजिस्टिक्स, चिकित्सा संबंधी जैविक कचरे की व्यवस्था, कर्मचारी रखना, उपकरण और बुनियादी ढांचे से संबंधित पूंजी व्यय। हालांकि उद्योग के कई लोगों का यह मानना है कि जांच की कम लागत कारोबार की बहाली में मदद करने का सबसे आसान और तेज तरीका हो सकती है। अनुषा का कहना है कि हमें अर्थव्यवस्था खोलने के लिए टीके का इंतजार नहीं करना है। कारोबार अपने कार्यालय खोलने के लिए प्रयोगशालाओं के साथ गठजोड़ कर सकते हैं और अपने कर्मचारियों की बार-बार जांच करा सकते हैं।
केवल उत्पादन और विनिर्माण से ही नहीं, बल्कि प्रौद्योगिकी से भी लागत में कमी आएगी। उदाहरण के लिए वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और टाटा द्वारा नवीनतम फेलूदा जांच पर केवल 500 रुपये की लागत आने का दावा किया गया है। कंपनियां बड़े स्तर पर मामलों की पुष्टि करने के लिए भारत में लार जांच की योजना भी बना रही हैं। विनिर्माताओं का कहना है कि उन्हें जांच किट निर्यात करने की अनुमति दी जानी चाहिए, क्योंकि भारत में उपलब्धता मांग से अधिक हो गई है।
