कंपनियों की मांग पूरी करने के लिए दूरसंचार विभाग (डीओटी) ने अतिरिक्त स्पेक्ट्रम की तलाश शुरू कर दी है, जिसके बड़े हिस्से का इस्तेमाल 5जी सेवाएं शुरू करने के लिए होगा।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘हमने 5जी सेवाओं के लिए 3,300 मेगाहट्र्ज बैंड से लेकर 3,600 मेगाहट्र्ज बैंक का आवंटन किया है। पूरी दूनिया में 5जी सेवाओं के लिए 3,300 मेगाहट्र्ज से 4,200 मेगाहट्र्ज बैंड स्पेक्ट्रम का आवंटन हुआ है। भाारत के पास बहुत ज्यादा बैंडविड्थ नहीं है, ऐसे में हम अतिरिक्त 150 मेगाहट्र्ज पर विचार कर रहे हैं।’
इस समय 5जी सेवाओं के लिए उपलब्ध स्पेक्ट्रम 175 मेगाहट्र्ज है, जिसमे प्रति कंपनी 50 मेगाहट्र्ज की सीमा लगी हुई है। इसका मतलब यहहै कि 4 में से एक कंपनी को संभवत: 50 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम नहीं मिल पाएगा। रिलायंस जियो, भारती एयरटेल और वीआई ने हाल ही में सरकार को पत्र लिखकर 5जी सेवाएं शुरू करने के लिए कम से कम 80 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम की मांग की है। टेलीकॉम कंपनियों का मानना है कि अगर 80 मेगाहट्र्ज से कम कुछ भी मिलता है तो उससे 5जी सेवाओं का वास्तविक लाभ मिलने में मदद नहीं मिल पाएगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि आदर्श रूप में बाधारहित 5जी सेवाओं के संचालन के लिए बैंडविड्थ 100 मेगाहट्र्ज होना चाहिए। बहरहाल दूरसंचार कंपनियां 80 मेगाहट्र्ज पर भी बेहतर गुणवत्ता की सेवाएं मुहैया करा सकती हैं, लेकिन अगर इससे कम कुछ भी मिलता है तो 5जी का इच्छित मकसद हल नहीं होगा।
उपरोक्त उल्लिखित अधिकारी ने कहा, ‘यह सुनिश्चित करने के लिए कि हर कंपनी को कम से कम 80 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम मिले, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को अपने हिस्से के एयरवेव्स में से 100 मेगाहट्र्ज साझा करना होगा और साथ ही रक्षा मंत्रालय को 50 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम पर सहमत होना होगा, जिसने 100 मेगाहट्र्ज की मांग की है। इससे 5जी सेवाएं मुहैया कराने के लिए 325 मेगाहट्र्ज एयरवेव्स नीलामी के लिए उपलब्ध हो जाएंगी।’
दूरसंचार विभाग को इस मसले पर इसरो या रक्षा मंत्रालय से किसी तरह से बातचीत शुरू करना बाकी है।
5जी सेवाओं पर चर्चा शुरू होने के समय से ही दूरसंचार कंपनियों के बीच स्पेक्ट्रम की मात्रा एक मसला बनी हुई है। इस मसले का अब तक समाधान नहीं हो पाया है क्योंकि सरकार को अभी 5जी स्पेक्ट्रम की पेशकश के मूल्य, कंपनियों को बोली के माध्यम से दिए जाने वाले स्पेक्ट्रम की मात्रा और इस वित्त वर्ष में 5जी नीलामी की जाए या नहीं, सहित तीन मसलों पर अपना रुख तय करना बाकी है।
इसके पहले कई मौकों पर दूरसंचार उद्योग ने दावा किया कि भारत में स्पेक्ट्रम के दाम अंतरराष्ट्रीय मूल्य की तुलना में चार गुना ज्यादा है।
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने अगस्त 2018 में अपनी सिफारिशों में 5जी सेवाओं के लिए के लिए रेडियोवेब्स की नीलामी की अपनी पहले की सिफारिशें रोक ली थीं, जिनकी शुरुआती कीमत 5.7 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा थी। नियामक ने कहा कि 3,300 से 3,600 मेगाहट्र्ज बैंड 5जी सेवाओं के लिए प्राथमिक बैंड रहने की उम्मीद है, जिसकी नीलामी एकल बैंड के रूप में 20 मेगाहट्र्ज के ब्लॉक में 492 करोड़ रुपये प्रति मेगाहट्ज के हिसाब से की जा सकती है।
ज्यादा मूल्य के 700 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम के लिए, जो 4जी एलटीई नेटवर्कों के लिए कुशल माना जाता है और इसकी ढांचागत पहुंच बेहतर होती है, ट्राई ने प्रति मेगाहट्र्ज 6,568 करोड़ रुपये कम आधार मूल्य रखा है, जो 2016 की नीलामी के 11,485 करोड़ रुपये की तुलना में 43 प्रतिशत कम भाव है। ऐसा माना जा रहा है कि केंद्र सरकार चालू वित्त वर्ष में स्पेक्ट्रम की एक और दौर की नीलामी कर सकती है।