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जाति जनगणना का तीर छोड़ा नीतीश ने

Last Updated- December 11, 2022 | 6:32 PM IST

केंद्र सरकार के सामने एक नई चुनौती पेश होने जा रही है। इसकी वजह यह है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा बुधवार को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में सर्वसम्मति से जाति आधारित जनगणना का समर्थन किया गया है।
बैठक के बाद नीतीश ने संवाददाताओं से कहा कि बिहार जाति के आधार पर जनगणना करेगा और इस संबंध में एक प्रस्ताव मंत्रिमंडल को भेजा जाएगा।
समझा जा रहा है कि बिहार की तर्ज पर दूसरे राज्य भी जाति आधारित जनगणना शुरू कर सकते हैं जिससे जाति, सामाजिक समता और न्याय का एक ज्वलंत राजनीतिक विषय बन सकता है।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने जाति आधारित जनगणना के प्रस्ताव को समर्थन दिया है। महाराष्ट्र में आर्थिक रूप से समृद्ध समझे जाने वाले मराठा समुदाय ने कुछ वर्ष पहले  आरक्षण एवं अन्य लाभों के लिए आंदोलन किया था। इससे पूरे राज्य में सरगर्मी तेज हो गई थी। गुजरात में भी राजनीतिक दृष्टि से प्रभावशाली समझे जाने वाला पाटीदार समुदाय आरक्षण की मांग कर रहा है। राज्य में 2017-18 में इस विषय पर सियासत तेज हो गई थी। कर्नाटक और तेलंगाना में भी कुछ समुदायों के उभार के बाद जातिगत राजनीति एवं सियासत की बयार तेज हो गई है। कर्नाटक में पहले वोकलिंगा समुदाय का दबदबा था और अब लिंगायत वहां अपना प्रभाव बढ़ा रहे हैं। तेलंगाना में कापू समुदाय ने भी राजनीति का एक नया रंग दे दिया है।
पटना में आयोजित सर्वदलीय बैठक के बाद नीतीश ने संवाददाताओं से कहा, ‘बैठक में सर्वसम्मति से तय किया गया है कि एक निश्चित समय सीमा के भीतर जाति आधारित जनगणना की जाएगी। जल्द ही मं​त्रिमंडल में इस संबंध में निर्णय लिया जाएगा और सभी बातें सार्वजनिक पटल पर रख दी जाएंगी।’
जाति आधारित जनगणना की पहल के बाद बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ आ गया है। भारतीय जनता पार्टी पहले ऐसे संकेत दे चुकी थी कि वह जाति आधारित जनगणना के पक्ष में नहीं है। भारत में अखिरी बार जाति आधारित जनगणना 1930 में हुई थी। भाजपा का तर्क है कि वह इसलिए जाति आधारित जनगणना के पक्ष में नहीं है कि उसका मानना है कि इससे समाज में दरार आती है।
केंद्र सरकार ने केंद्रीय जनगणना में पिछड़ी जाति को एक स्तंभ के रूप में इंगित करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि आगामी जनगणना में ऐसा करना संभव नहीं होगा क्योंकि इसमें अब देरी हो चुकी है। केंद्र सरकार का यह भी कहना था कि ऐसा करना अनुपयुक्त भी होगा। सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण मंत्रालय ने 2021 में सर्वोच्च  न्यायालय में दाखिल एक शपथ पत्र में कहा था कि पहले भी कई मौकों पर जाति आधारित जनगणना के विषय पर बातचीत हुई है। हरेक बार हमारा मानना था कि  पिछड़े वर्गों की जातिगत जनगणना प्रशासनिक दृष्टि कोण से मुश्किल और पेचीदा है।
फिलहाल तो कोई भी राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना का विरोध करने की जहमत नहीं कर रहा है और न ही इसके खिलाफ स्वयं को दिखाना चाहता है। मगर इतना तो तय है कि बिहार की यह पहल देश की राजनीति में एक नया चलन शुरू कर सकती है। 

First Published - June 2, 2022 | 1:10 AM IST

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