अनिश्चितता और कोविड-19 के मामले बढऩे की वजह से जून में समाप्त 3 महीनों के दौरान कंपनियों ने बहुत कम नई परियोजनाएं पेश कीं। मुंबई मुख्यालय वाले सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के आंकड़ों के मुताबिक जून तिमाही में नई परियोजनाओं की संख्या मार्च की तुलना में 13.4 प्रतिशत कम रहीं, जिसमेंं 1.54 लाख करोड़ रुपये आए।
पूरी हो चुकी परियोजनाओं का मूल्य भी घटकर 0.5 लाख करोड़ रुपये रह गया। हालांकि ये आंकड़े पिछले साल की समान तिमाही की तुलना में 70 से 95 प्रतिशत ज्यादा हैं, क्योंकि उस समय देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की गई थी। मार्च, 2020 के अंत में पूरी तरह देशबंदी हुई थी। ऐसे में जून, 2020 में नई परियोजनाएं घटकर 0.91 लाख करोड़ रुपये की रह गई थीं। उसके बाद सिर्फ0.26 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएं ही पूरी हुईं। आने वाली तिमाहियों में इसमें बढ़ोतरी हुई, क्योंकि उसके बाद अर्थव्यवस्था खुल गई थी। जून, 2021 तिमाही में कोरोना के मामले बढ़कर रोजाना 4 लाख से ऊपर पहुंच गए, उसके बाद विभिन्न राज्यों की सरकारों ने लॉकडाउन लगा दिया। केयर रेटिंग्स के प्रमुख मदन सबनवीस ने कहा कि नई परियोजनाओं में पूंजीगत व्यय का अनुमान पहले से ही लगाया जा रहा था, क्योंकि भविष्य को लेकर अनिश्चितता थी। कारोबारी ऐसे समय में निवेश करते हैं, जब भविष्य को लेकर कुछ स्पष्टता हो। उन्होंने कहा कि अब इसके बाद तुलनात्मक आधार पर स्थिति बेहतर हो सकती है। उन्होंने कहा, ‘अगली तिमाही इस तिमाही से बेहतर हो सकती है।’
आईडीएफसी असेट मैनेजमेंट कंपनी में अर्थशास्त्री-फंड मैनेजर श्रीजीत बालासुब्रमण्यन ने कहा, ‘केंद्र सराकर पूंजीगत व्यय पर जोर देने की कवायद कर रही है।’ उन्होंने कहा कि कुल मिलाकर सरकारी व्यय में राज्य सरकारों की हिस्सेदारी ज्यादा होती है। वित्तीय अनिश्चितता के कारण राज्यों के व्यय में कमी आई है।
पूंजीगत व्यय में अहम भूमिका निभाने वाली धारणाओं में निर्यात, पीएलआई (उत्पादन से जुड़ा प्रोत्साहन) योजना, रियल एस्टेट रिकवरी, डिलिवरेजिंग पर कंपनियों के फैसले और मॉनसून शामिल हैं। कुछ क्षेत्र जैसे ऑटोमोबाइल क्षेत्र चक्रीय वजहों से बेहतर काम कर रहे हैं। निजी पूंजीगत व्यय का मध्यावधि परिदृश्य जानने के लिए खपत में रिकवरी का इंतजार करना होगा।
अक्टूबर-दिसंबर, 2020 तिमाही के भारतीय रिजर्व बैंक के ऑर्डर बुक, इन्वेंट्री और पूंजी उपयोग सर्वे (ओबीआईसीयूएस) के मुताबिक जून, 2020 तिमाही में तेज गिरावट के बाद क्षमता उपयोग में सुधार हुआ है। कंपनियां उस समय नई उत्पादन क्षमता बनाती हैं जब उन्हें लगता है कि मांग उनकी मौजूदा उत्पादन क्षमता को पार कर जाएगा।