बीएस बातचीत
रॉकफेलर फाउंडेशन 1950 से नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की स्थापना के समय से उनका हिस्सा रहा है और यह अब भी स्वास्थ्य, लैंगिक और ऊर्जा के क्षेत्र में काम कर रहा है। अब यह अपना ध्यान खाद्य, कृषि और डेटा आर्किटेक्चर जैसे नए क्षेत्रों की तरफ मोड़ रहा है। फाउंडेशन ने पिछले 25 वर्ष में भारत में अनुदानों, फेलोशिप और कार्यक्रमों में करीब 15 करोड़ डॉलर का निवेश किया है और यह महामारी के दौरान लगातार जांच और टीके की उपलब्धता पर अपना काम जारी रखने पर विचार कर रहा है। रॉकफेलर फाउंडेशन में कार्यक्रम रणनीति की कार्यकारी उपाध्यक्ष और कर्मचारी प्रमुख इलिजाबेथ यी ने विनय उमरजी के साथ बातचीत में भारत में अपने पहले दौरे में फाउंडेशन के प्रयासों के बारे में बताया। पेश हैं मुख्य अंश:
महिलाओं की भूमिका के संदर्भ में दुनिया भर की तुलना में भारत की क्या स्थिति है?
मैं बुनियादी ढांचे के संदर्भ में केवल ऊर्जा पर फाउंडेशन का काम ही नहीं देख रही हूं बल्कि क्लांइट से बातचीत भी कर रही हूं और देख रही हूं कि कैसे इनमें 95 फीसदी महिलाएं हैं। सबसे अधिक ताज्जुब सामाजिक कार्य में स्नातकोत्तर एक महिला को जूलरी की दुकान चलाते देखकर हुआ जिसके पीछे उसके भाई और पिता हैं। ये महिलाएं अपने अवसर का लाभ आगे बढ़कर उठा रही हैं और अपने परिवारों के लिए पैसे कमा रही हैं। फाउंडेशन के कार्यक्रमों के जरिये एक प्रकाश बल्ब और एक चार्जिंग स्टेशन मिलने से इनकी आमदनी में 20 से 30 फीसदी का इजाफा हुआ है। हमने खाद्य और परंपरागत कपड़ों के क्षेत्र में काम करने वाली उन महिलाओं से भी मुलाकात की जो फैशन तैयार करने के लिए तकनीक का इस्तेमाल कर रही हैं। इन्हें भारत के बाहर बहुत बड़े पैमाने पर स्वीकार किया जा रहा है। यह देखना काफी दिलचस्प था कि भारत में महिलाएं किस प्रकार से अपने दायित्वों में अग्रिम मोर्चों पर डटी हैं।
लैंगिक समानता के लिए कौन सी चुनौती केवल भारत में नजर आती है?
भारत में महिला उद्यमी और नेत्री हैं और निश्चित तौर पर लड़कियों के लिए शैक्षणिक परिणामों में सुधार हो रहा है। लेकिन इसके बावजूद मुझे लगता है कि बातचीत और प्रश्नों के जवाब देने में कुछ अतर्निहित पूर्वग्रह हैं। मैं नेतृत्व के पदों में महिलाओं पर फोकस करने के काम को लेकर उत्साहित हूं और महिला वकीलों तथा राजनेताओं को देश का नेतृत्व करने के लिए अपनी आवाज, एजेंडों और अवसरों को ऊपर उठाने में मदद कर रही हूं। ऐसा ही कुछ हमें अमेरिका में भी बढ़ चढ़ करने की जरूरत है।
फाउंडेशन ने महामारी के दौरान जांच की कीमत में कमी लाने के लिए काम किया। भारत में महामारी के पूर्व से लेकर महामारी के बाद तक उसके काम में किस प्रकार से बदलाव आए हैं?
पहले हमारा काम कोविड से संबंधित नहीं था। लेकिन यह बहुत कुछ डेटा आर्किटेक्चर तैयार करने और यह सुनिश्चित करने पर केंद्रित था कि सटीक सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल सभी के लिए उपलब्ध हो और सभी तक इसकी पहुंच हो। कोविड आने के साथ महामारी ने वास्तव में उस धुरी को जरूरी बना दिया और हमने जांच में सुधार करने और उसके परिणामों के साथ साथ भौतिक और आर्थिक पहुंच पर बहुत अधिक ध्यान देना शुरू कर दिया। हमने जीनोमिक निगरानी और उस क्षमता तक पहुंचने पर ध्यान केंद्रित किया जो मौजूद तो था लेकिन उस पैमाने पर नहीं जहां कोई यह पता लगा सके कि विभिन्न वायरस की विभिन्न किस्में कहां पर हैं।
अन्य क्षेत्र जहां पर हम ध्यान दे रहे हैं वह है भोजन। इसके तहत पोषण संबंधी परिणामों, कृषि उपजों को सुनिश्चित करते हुए और छोटे किसानों को सक्षम बनाकर अधिक पोषक भोजन तक सभी की पहुंच सुनिश्चित करना है। यह काम अभी केवल क्षितिज पर है लेकिन विभिन्न कारणों से हम इसको लेकर बहुत अधिक भावुक महसूस करते हैं। यह कुछ हद तक स्वास्थ्य और गैर संचारी रोगों में वृद्घि से जुड़ा है। यूक्रेन की घटना को देखते हुए इसका महत्त्व और बढ़ जाता है। अन्यथा, हमें और गहरे कुपोषण संकट का सामना करना होगा।
फाउंडेशन महामारी के बाद स्वास्थ्य और सामाजिक क्षेत्र में किस प्रकार से नवाचार को बढ़ावा दे रहा है?
हमने हाल ही में शिक्षा जगत से जुड़े लोगों, सरकारी अधिकारियों और निजी क्षेत्र से बातचीत कर अवसरों को समझने की कोशिश की है। हम तकनीकी हस्तांतरण के बारे में सोच रहे हैं। हम डेटा साझा करने पर भी मंथन कर रहे हैं।