टीका लगाने से पहले जांच जरूरी

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 14, 2022 | 11:01 PM IST

क्या आप कोविड-19 टीका लगवाना चाहते हैं? अगर आपका जवाब हां है तो आपको इसके लिए विशेष टीकाकरण केंद्र पर अपनी जांच करानी पड़ सकती है जहां कोविड-19 के टीके लगाए जाएंगे। सरकारी सूत्रों ने बताया कि टीका लगाने से पहले इन विशेष केंद्रों पर ऐंटीबॉडी के लिए जांच की जाएगी। अब जब एक बड़ी आबादी को कोविड-19 का टीका लगाने की बात चल रही है तो ऐसे में भारत काफी सोच-समझ कर यह कदम उठा सकता है।  जिन लोगों के शरीर में पहले ही सार्स-सीओवी2 वायरस के खिलाफ  ऐंटीबॉडी बन गई है उन्हें इस टीके के लिए उपयुक्त नहीं माना जाएगा। इस तरह के टीकाकरण के लिए इन विशेष केंद्रों पर रैपिड ऐंटीबॉडी जांच (आरएटी) की भी व्यवस्था होगी। जिन लोगों के शरीर में पहले से ही ऐंटीबॉडी होगी उन्हें यह टीका नहीं दिया जाएगा क्योंकि सरकार उन लोगों पर कीमती टीके बरबाद नहीं करना चाहती जिनके शरीर में पहले ही वायरस के खिलाफ  प्रतिरोधक क्षमता तैयार हो गई है। इसी वजह से जांच जरूरी होगी ताकि जिनके लिए कोविड-19 टीका आवश्यक हो उन्हें प्राथमिकता दी जा सके।
देश की 1.3 अरब की आबादी के लिए कोविड-19 टीकाकरण अभियान की बड़ी परियोजना पर काम कर रहे एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘महानगरों में सीरो की व्यापकता दर 20.30 प्रतिशत है। इसका मतलब यह है कि इन लोगों में पहले से ही वायरस के खिलाफ  ऐंटीबॉडी बन चुकी है। एक जिम्मेदार सरकार किसी ऐसे व्यक्ति को टीका क्यों लगाएगी जिनमें पहले से ही प्रतिरोधक क्षमता है? टीकाकरण किए जाने से पहले रैपिड ऐंटीबॉडी जांच के जरिये जांच कराना अधिक तार्किक है।’ उन्होंने कहा कि टीका देने की प्राथमिकता के लिए कई विकल्प हो सकते हैं और यह उनमें से एक हो सकता है।
हाल ही में देश की सबसे बड़े टीका निर्माता कंपनी के सीईओ अदार पूनावाला ने अपनी चिंताओं को जाहिर करते हुए ट्वीट किया था कि देश में हर किसी के लिए टीका खरीदने और वितरित करने के लिए अगले एक साल में सरकार को 80,000 करोड़ रुपये उपलब्ध कराने होंगे। एक अधिकारी कहते हैं, ‘आखिर पूरी आबादी को टीका लगाने की जरूरत क्यों होनी चाहिए?’ उन्होंने कहा कि 80,000 करोड़ रुपये की राशि तब लगेगी जब हर किसी को सीरम इंस्टीट्यूट टीके की दो खुराक दी जाएगी जिसकी लागत 3 डॉलर प्रति खुराक होती है। लेकिन ऐसा नहीं होगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि टीका लगाने से पहले ऐंटीबॉडी की जांच एक अच्छा विचार है। राजीव गांधी जैव प्रौद्योगिकी केंद्र के मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी ई श्रीकुमार ने कहा कि टीके की खुराक की शुरुआती उपलब्धता सीमित हो सकती है ऐसे में प्राथमिकता तय करना जरूरी होगा। उन्होंने कहा, ‘आखिरकार कोविड-19 टीका व्यापक टीकाकरण कार्यक्रम का एक हिस्सा बनना चाहिए। इससे न केवल सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता तैयार होगी बल्कि टीके की कीमतों में भी कमी आएगी। मांग निश्चित होने पर टीका निर्माता बड़ी मात्रा में टीका तैयार कर सकते हैं जिससे कीमतों में कमी आ सकती है।’
जब तक कम से कम 60-70 प्रतिशत आबादी को टीका नहीं लगाया जाता या फिर उनमें ऐंटीबॉडी तैयार नहीं होती है तब तक इस तरह की सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता तैयार होने की संभावना नहीं है। सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता तब तैयार होती है जब एक बड़ी आबादी बीमारी के खिलाफ  प्रतिरोधक क्षमता या ऐंटीबॉडी तैयार कर लेती है जिससे उन बाकी लोगों की रक्षा होती है जिनमें प्रतिरोधक क्षमता नहीं है। यह मूल रूप से बीमारी के प्रसार की शृंखला को तोड़ता है। सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता टीके के माध्यम से या प्राकृतिक संक्रमण के माध्यम से तैयार हो सकती है हालांकि संक्रमण से लोग बेहद प्रभावित होते हैं इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है।
 एक सूत्र ने बताया कि टीके के लिए कोल्ड चेन और टीका लगाने वालों की बढ़ती जरूरतों का आकलन करने के अलावा, केंद्र विभिन्न राज्यों से स्वास्थ्यकर्मियों, पहले से किसी बीमारी से ग्रस्त लोगों और 60 साल से अधिक आयु के लोगों से जुड़ा एक मानक प्रारूप तैयार करते हुए डेटा का मिलान करने की प्रक्रिया में है।
इस डेटाबेस से केंद्र सरकार को टीका देने के लिए प्राथमिकता तय करने में भी मदद मिलेगी। बर्नस्टीन के विश्लेषकों ने हाल ही में एक रिपोर्ट में बताया था कि भारत सरकार 68 करोड़ खुराक खरीद सकती है। इसके लिए सरकार को 1.9 अरब डॉलर खर्च करने होंगे। अगर सरकार पूरी आबादी को टीके लगाती है तब सरकार को 6 अरब डॉलर खर्च करने के लिए तैयार रहना होगा।

First Published : October 7, 2020 | 10:46 PM IST