अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने कहा कि अब तक ऐसा कोई संकेत नहीं है कि कोविड-19 की तीसरी लहर से बच्चे अधिक प्रभावित होंगे। उन्होंने सोमवार को कहा कि इस महामारी की पहली और दूसरी लहर से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार बच्चों में इस वायरस का कोई गंभीर असर नहीं दिखा है। गुलेरिया ने कहा, ‘कुछ लोगों का यह कहना है कि चूंकि, पहली और दूसरी लहर में बच्चे अधिक प्रभावित नहीं हुए हैं इसलिए तीसरी लहर में वे अधिक संख्या में सकं्रमण की चपेट में आएंगे। हालांकि इस अनुमान के पक्ष में अब तक कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं कराया गया है।’ उन्होंने कहा कि वायरस एसीई रिसेप्टरों के जरिये मानव शरीर में प्रवेश करते हैं और वयस्कों की तुलना में बच्चों में ये अपेक्षाकृत कम होते हैं। गुलेरिया ने कहा, ‘वैसे आगे किसी तरह की लहर रोकने या इससे निपटने के लिए हमें प्रयास जारी रखना चाहिए। पिछले अनुभवों से सबक लेते हुए हम भविष्य में कोविड-19 वायरस की लहर से निपट सकते हैं। हमें वायरस का संक्रमण कम से कम करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि दोबारा यह महामारी न फैले।’
एम्स के प्रमुख ने यह भी कहा कि कोविड संक्रमित मरीजों की संख्या तेजी से बढऩे के बीच इस संक्रमण से उबरने के बाद होने वाली स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के लिए नए स्वास्थ्य केंद्र बनाने होंगे। उन्होंने कहा कि अब इस बात को लेकर लोगों में बेहतर समझ है कि संक्रमण मुक्त होने के बाद 8 से 12 हफ्तों तक कुछ परेशानियां रहती हैं और लक्षण इससे अधिक समय तक रहते हैं तो जोखिम पैदा हो सकता है।
गुलेरिया ने कहा कि इस महामारी से युवा अधिक प्रभावित नहीं हुए हैं, लेकिन कुछ दूसरे नुकसान जरूर हुए हैं। उन्होंने कहा, ‘लगभग सभी लोगों के कोई न कोई परिचित इस महामारी की चपेट में आए हैं या अपनी जान गंवाई है। यह महामारी अपेक्षाकृत युवा लोगों के लिए खतरा नहीं है लेकिन उन्हें कई तरह के दूसरे नुकसान उठाने पड़े हैं।’
कोविड-19 संक्रमण से उबरने के बाद भी कुछ लोगों में श्वास, खांसी, चिंता, थकान आदि जैसे लक्षण दिखते हैं। गुलेरिया ने कहा कि कोविड-19 से शरीर में सूजन होने की वजह से कई लोगों में ये लक्षण मौजूद रहते हैं। मानसिक उलझन के लक्षण भी कुछ लोगों में देखे जाते हैं जिससे बाद अवसाद का खतरा भी पैदा हो जाता है। गुलेरिया ने कहा, ‘इन मामलों के लिए संबंधित व्यक्ति के शारीरिक सहित मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल जरूर हो जाती है।’ फफूंद (फंंगस) से होने वाले संक्रमण पर गुलेरिया ने कहा कि कोविड-19 के बाद फफूंद से संक्रमित होने के मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन यह कोई संक्रामक बीमारी नहीं है। उन्होंने कहा कि म्यूकरमाइकोसिस का जिक्र करते वक्त काले फफूंद की बात न करें तो बेहतर होगा क्योंकि इससे भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है।
उन्होंने कहा, ‘जिन लोगों में यह संक्रमण देखा गया है उनमें 90 से 95 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिन्हें मधुमेह है या स्टेरॉयड ले रहे हैं। उन लोगों में यह संक्रमण काफी कम दिखता है जिन्हें मधुमेह नहीं है या स्टेरॉयड नहीं ले रहे हैं।’ गुलेरिया ने यह भी कहा कि ऑक्सीजन से उपचार से इस संक्रमण का कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि कई लोग अपने घर पर ही ठीक हो रहे हैं और ऑक्सीजन भी नहीं ले रहे हैं लेकिन उनमें म्यूकरमाइकोसिस देखा जा रहा है।
वहीं अब 18 से 44 वर्ष की उम्र के लोग टीका केंद्रों पर सीधे जाकर पंजीयन कराने के बाद टीकाकरण के लिए समय ले सकते हैं। यह सेवा फिलहाल सरकारी कोविड-19 टीका केंद्रों पर मिलेगी।
बी.1.617 वायरस का आम परिवर्तित स्वरूप
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन ने सोमवार को कहा कि सबसे पहले भारत में पाया गया कोरोनावायरस का बी.1.617 स्वरूप अब तक का सबसे आम परिवर्तित स्वरूप है। यह जानकारी जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए भेजे गए नमूनों में से 20 फीसदी से अधिक में इसके मिलने से सामने आई।
कोविड-19 पर मंत्री समूह की 27वीं उच्चस्तरीय बैठक में वर्धन ने कहा कि 25,739 नमूनों की सीक्वेंसिंग की गई और 5,261 नमूनों में बी.1.617 स्वरूप पाया गया। उन्होंने कहा कि राज्यों से आग्रह किया गया है कि वे बेहतर विश्लेषण के लिए नियमित नमूने भेजें। बी.1.617 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चिंता की वजह बताया है। यह स्वरूप अत्यधिक संक्रामक है और ऐंटीबॉडीज के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता से युक्त है। हालांकि एक अध्ययन के मुताबिक टीका लगवा चुके लोगों में यह कम गंभीर लक्षण उत्पन्न करता है। बी.1.617 स्वरूप सबसे पहले 2020 के अंत में महाराष्ट्र में चिह्नित किया गया था और अब यह भारत के सभी हिस्सों के साथ-साथ दुनिया के 40 देशों में फैल चुका है।