कोरोनावायरस महामारी से करीब एक साल तक जूझने के बाद अब देश में संक्रमण के मामले में गिरावट का रुझान देखा जा रहा है और ऐसी उम्मीद दिख रही है कि महामारी अपने आखिरी चरण में हो सकती है। महामारी विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह रुझान जारी रहा है तो मुमकिन है कि देश में संक्रमण की दूसरी लहर देखने को न मिले जैसा कि पश्चिम के कई देशों में हो रहा है और उन्हें दोबारा संक्रमण के मामलों से जूझना पड़ रहा है।
पिछले साल देश में सितंबर महीने के मध्य में संक्रमण के मामले बढ़कर 90,000 प्रति दिन हो गए लेकिन 26 जनवरी तक यह तादाद घटकर 9,000 तक आ गई। पिछले दो हफ्ते में संक्रमण के मामले रोजाना 15,000-12,000 के दायरे में रहे। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद में सेंटर फॉर एडवांस रिसर्च इन वॉयरोलॉजी के पूर्व प्रमुख जैकब जॉन का कहना है, ‘भारत की तरह किसी भी दूसरे देश में यह पैटर्न नहीं देखा गया है। विभिन्न देशों में अलग-अलग कारक काम कर रहे हैं। संक्रमण के मामले अब शीर्ष स्तर से नीचे की तरफ जाते दिख रहे हैं।’ महामारी विशेषज्ञों ने इस बात की ओर इशारा किया है कि अगर कोई दूसरी लहर नहीं है तो इसका मतलब यह है कि संक्रमितों की तादाद असंक्रमित लोगों के मुकाबले बढ़ गई है। जॉन का कहना है, ‘इस बात को साबित करने का कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं है कि विषाणु के खिलाफ भारतीयों की प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा है। इसका अर्थ यह है कि हमें संक्रमितों की तादाद का अंदाजा नहीं है। हमें इस बात का अंदाजा नहीं कि देश में वास्तव कितनी संख्या रही है।’
आंकड़े में गिरावट के रुझान दिख रहे हैं और सीरो सर्वेक्षण के आंकड़े दर्शाते हैं कि आबादी का एक बड़ा हिस्सा पहले से ही संक्रमित हो चुका है। बड़ी तादाद में संक्रमितों की पहचान भी नहीं की जा सकी है और ज्यादातर लोगों में कोरोनावायरस के लक्षण कम या बिल्कुल भी नहीं दिखे। इसी वजह से कम या हल्के लक्षण वाले कई मामलों की जांच भी नहीं की जा सकी और न ही ऐसे लोगों को कोई स्वास्थ्य सेवा दी गई। मिसाल के तौर पर दिल्ली में सीरो सर्वेक्षण के दौरान यह अंदाजा हुआ कि जिन 50 फीसदी लोगों का सर्वेक्षण हुआ उनमें कोविड-19 के खिलाफ पहले से ही ऐंटीबॉडी तैयार हो चुकी है। मिशिगन यूनिवर्सिटी के पहले के सीरो सर्वेक्षण के एक विश्लेषण के मुताबिक महानगरों में बीमारी से जुड़ी सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता बन रही है और करीब 98 फीसदी मामले की जांच ही नहीं हुई है। मिशिगन यूनिवर्सिटी के महामारी विज्ञान विभाग की प्रोफेसर भ्रमर मुखर्जी का कहना है, ‘नवंबर में जब त्योहारी सीजन शुरू हुआ तब से ही मैं हमेशा सतर्कता बरत रही थी लेकिन मेरे साथ-साथ कई लोगों को हैरानी हुई कि देश में संक्रमण की दूसरी लहर देखने को नहीं मिली। भारत के ग्रामीण इलाके मेरे लिए रहस्य की तरह ही है लेकिन मेरा मानना है कि जनसंख्या का कम घनत्व, बाहर रहने वाली जीवनशैली और एक-दूसरे से प्रतिरोधक क्षमता बनने की वजह से संक्रमण का प्रसार कम हुआ और संक्रमितों की तादाद भी घट रही है।’
हालांकि कई विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि विशेषतौर पर बड़े शहरों से इतर आबादी के एक बड़े हिस्से में विषाणुओं के संक्रमण को लेकर खतरा बना हुआ है। इसकी वजह से संक्रमण की दूसरी लहर देखी जा सकती है। अशोक यूनिवर्सिटी के बायोफिजिक्स और कंप्यूटेशनल बायोलॉजी के प्रोफेसर गौतम मेनन का कहना है, ‘अभी इस बात का अंदाजा नहीं मिल पा रहा है कि क्या हमारी आबादी के एक बड़े हिस्से में पहले से ही कुछ स्तर पर प्रतिरोधक क्षमता बन चुकी है जो संभवत: दूसरे कोरोनावायरस के संपर्क में आने की वजह से हो सकता है। हालांकि यह अस्पष्ट है कि संक्रमितों की तादाद में लगातार कमी क्या इसी पहलू को दर्शा रही है।’
देश के कुछ हिस्से में सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता बनी हो या नहीं लेकिन वायरस से होने वाले संक्रमण पर नियंत्रण करने के लिए पर्याप्त तादाद में लोगों का टीकाकरण कराना एक बड़ा अभियान होगा। देश में दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान 16 जनवरी को शुरू किया गया और इसकी शुरुआत स्वास्थ्यकर्मियों को टीका लगाने से की गई। वैज्ञानिकों का कहना है कि टीके की दूसरी खुराक लेने के दो हफ्ते के बाद प्रतिरोधक क्षमता बननी शुरू होती है और इसे पहली खुराक के चार हफ्ते के अंतर पर दिया जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि मार्च की शुरुआत में जिन्हें टीका दिया गया उनमें ऐंटीबॉडी बन जाएगी।
इजरायल के मैकाबी हेल्थ सर्विसेज के एक ताजा अध्ययन के मुताबिक टीकाकरण और नए संक्रमण के मामले में कमी के बीच एक संबंध दिख रहा है और अब अस्पताल में भर्ती कराने वालों की तादाद में कमी आएगी। विशेषज्ञों का कहना है कि टीके की वजह से बनने वाली प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा बेहतर होगी और यह लंबे समय तक लक्षण वाली बीमारी से सुरक्षा दे पाएगी। यहां तक की कोविड-19 से संक्रमित हो चुके लोगों को भी टीका देने की सलाह दी जाती है। मुखर्जी का कहना है, ‘हम देश में संक्रमण की किसी दूसरी लहर को पार करने में सक्षम हो सकते हैं अगर देश में टीकाकरण की रफ्तार में तेजी लाई जाए और सक्रिय संक्रमण की तादाद में कमी के साथ ही टीके को लेकर स्वीकार्यता बढ़े।’
उनका कहना है, ‘जब मैं भारत में था तब मैंने पाया कि शहरों से बाहर सामान्य स्थिति है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए हमें शहरों में सामान्य स्थिति बहाल करने की जरूरत है ताकि लोग भी खुद को सुरक्षित महसूस करें।’ देश में कोविड-19 बीमारी पर काबू करने के लिए टीकाकरण दीर्घावधि का एकमात्र उपाय साबित हो सकता है और भारत जैसे बड़े देश में टीकाकरण की रफ्तार बढ़ाने की जरूरत है। मेनन का कहना है, ‘टीकाकरण की मौजूदा दर को देखते हुए ये तादाद भी बड़ी दिखती है और आबादी के एक बड़े हिस्से का टीकाकरण करने में अभी कई महीने लगेंगे। तब तक मास्क पहनने की अनिवार्यता के साथ बड़ी संख्या में कहीं एकत्र होने आदि पर प्रतिबंध जारी रहेगा।’
हालांकि इस बात को लेकर संदेह बरकरार है कि देश में टीकाकरण से महामारी के रुझान में बदलाव दिखेगा या नहीं। जॉन ने कहा, ‘स्वास्थ्यकर्मियों को संक्रमितों के संपर्क में ज्यादा रहना पड़ता है। ऐसे में केवल उनके टीकाकरण से देश में व्यापक पैमाने पर कोई अंतर नहीं दिखेगा।’ विषाणु और टीकाकरण को एक तरफ रखकर विषाणु की नई किस्म पर विचार किया जाए तो यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए चिंता का विषय है। ब्रिटेन में वायरस की नई किस्म बी.1.1.7 से संक्रमित लोगों और पुराने कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों के बीच मृत्यु दर की तुलना करने से मृत्यु दर में बढ़ोतरी का अंदाजा मिलता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पुराने वायरस के मुकाबले वायरस की नई किस्म से संक्रमित लोगों के मरने की संभावना 30-40 फीसदी है।
भारत की नजर वायरस की नई किस्म पर भी है और इसको लेकर शोध कार्य बढ़ाए जा रहे हैं। टीके वायरस की नई किस्म पर प्रभावी होंगे या नहीं इसको लेकर अध्ययन जारी है जो ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका में पाए गए हैं।
मुखर्जी का कहना है, ‘हमें सतर्क रहने और वायरस की नई ििकस्मों से जुड़े शोध में संतुलन बनाने की जरूरत है। हम अब इस लड़ाई को जीतने के करीब पहुंच चुके हैं, ऐसे में हमें कदम बढ़ाने की जरूरत है।’