कहीं खाने के ही न पड़ जाएं लाले

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 9:20 PM IST

पिछले आठ हफ्तों से भड़क रही महंगाई की आग में घी खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों ने डाला है।


दाल-चावल हो या फल-सब्जी-दूध, हर चीज की कीमत पिछले एक साल में नई ऊंचाइयों को छूने लगी हैं। खाद्य तेल की कीमतों में इस दौरान 40 फीसदी का इजाफा हुआ तो घबराई सरकार ने इस पर लगाम के लिए कड़े उपाय किए।


क्या हैं इसके मूल कारण


विशेषज्ञों की राय में खेती में पैदावार की धीमी रफ्तार और कृषि क्षेत्र की बदहाली इसका प्रमुख कारण है। पैदावार की बदहाली की हालत यह है कि अनाज की भारत में पैदावार प्रति व्यक्ति के पैमाने पर कमोबेश 1970 के स्तर पर ही है।


तकरीबन 60 फीसदी लोगों की आजीविका कृषि होने के बावजूद पिछले पांच सालों में देश के कृषि क्षेत्र में महज 2.6 फीसदी ही विकास हुआ है। भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले पांच सालों में 8.5 फीसदी की रफ्तार से विकास कर रही है।


विकास की यह रफ्तार चुनिंदा क्षेत्रों तक ही सीमित है। कृषि की अनदेखी, जो अभी तक किसानों की आत्महत्या के रूप में झलक रही थी, अब गंभीर अनाज संकट की ओर ले जा रही है।


क्या है सरकार का तर्क


सरकार मौजूदा खाद्य संकट के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार और कई देशों में चल रहे खाद्यान्न संकट को जिम्मेदार ठहरा रही है। उसका यह भी कहना है कि किसानों की कर्ज माफी के लिए दिए गए ऐतिहासिक 60 हजार करोड़ रु. के पैकेज से स्थिति सुधरेगी। जबकि सच तो यह है कि इसके लिए तमाम ठोस कदम उठाने होंगे।

First Published : April 12, 2008 | 1:28 AM IST