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मनरेगा में काम की मांग घटी

Last Updated- December 15, 2022 | 4:02 AM IST

महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) में मई और जून महीने में काम की मांग में भारी तेजी के बाद जुलाई महीने में काम की मांग घटी है। इसकी वजह यह है कि खरीफ की बुआई में काम करने के लिए अस्थायी मजदूर खेतों में लौट आए हैं। हालांकि अभी भी मनरेगा में काम की मांग पिछले वर्षों की तुलना में बहुत ज्यादा है। इससे उन लोगों को रोजगार मुहैया कराने में इस योजना की भूमिका का पता चलता है, जो बड़े पैमाने पर विस्थापित हुए हैं।
मनरेगा की वेबसाइट से मिले शुरुआती आंकड़ों से पता चलता है कि 31 जुलाई तक करीब 3.15 करोड़ रिवारोंं ने इस योजना के तहत काम की मांग की है, जो जून महीने में की गई मांग की तुलना में करीब 28 प्रतिशत कम है।
लेकिन भले ही जुलाई महीने में काम की मांग में गिरावट आई है, उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक मनरेगा के तहत काम की मांग करने वाले कुल परिवारों की संख्या जुलाई 2019 की तुलना में जुलाई 2020 में करीब 71 प्रतिशत ज्यादा है। जुलाई 2019 में करीब 1.84 करोड़ परिवारों ने मनरेगा के तहत काम की मांग की थी जबकि जुलाई 2020 में यह आंकड़े बढ़कर 3.15 करोड़ पर पहुंच चुके हैं। इससे साफ पता चलता है कि कोविड-19 के कारण हुई देशबंदी के बाद इस योजना के तहत काम की मांग व्यापक रूप से बढ़ी है।
सामान्यतया मनरेगा के तहत काम की मांग जुलाई के बाद से बढ़ती है, जब ग्रामीण इलाकों में खरीफ की बुआई धीमी पड़ जाती है और अस्थायी श्रमिकों को खेत में काम नहीं मिलता, जहां पारिश्रमिक मनरेगा की तुलना में ज्यादा होता है। बेंगलूरु स्थित अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर राजेंद्रन नारायणन ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘मनरेगा के तहत काम की मांग सामान्यतया जुलाई, अगस्त और सितंबर में होती है।’

First Published - August 1, 2020 | 1:24 AM IST

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