निजी स्वामित्व वाली विद्युत उत्पादन कंपनियों (जेनको) ने केंद्र से शुल्कों में राहत देने और पड़ोसी देशों को बिजली निर्यात पर प्रोत्साहन देने का अनुरोध किया है। चीन पर रणनीतिक बढ़त का हवाला देते हुए जेनको ने केंद्र से कहा है कि वह पड़ोसी देशों के साथ ऊर्जा विनिमय के जरिये उन्हें प्रभावित करने पर विचार करे।
निजी विद्युत उत्पादन कंपनियों के प्रतिनिधि संगठन एसोसिएशन ऑफ पावर प्रोड्यूसर्स (एपीपी) ने वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय को पत्र लिखकर भारत के बिजली निर्यात को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए छूट देने को कहा है।
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के सचिव और विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) को लिखे पत्र में कहा गया है, ‘हमारे विद्युत ग्रिड के बड़े आकार और पैमाने को देखते हुए तथ्य यह है कि हम दक्षिण एशियाई देशों के मध्य में स्थित हैं। हमारे पास अपने पड़ोसी देशों को किए जाने बिजली निर्यातों को काफी अधिक बढ़ाने के लिए उच्च संभावना है। इसकी बदौलत भारत इस क्षेत्र में अपनी रणनीतिक स्थिति को मजबूत कर सकता है और चीन के बढ़ते प्रभाव पर अंकुश लगा सकता है।’
2018 में केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने बिजली की सीमा पार आयात/निर्यात के लिए दिशानिर्देश जारी किया था। इसमें सीमा पार विद्युत व्यापार के लिए नीतिगत तंत्र बनाने की बात कही गई थी। दिशानिर्देशों में कोयला आधारित बिजली के निर्यात के लिए केवल आयातित कोयले या हाजिर ई-नीलामी या वाणिज्यिक खनन से प्राप्त कोयले के उपयोग की बात कही गई थी।
एपीपी ने अपने पत्र में कहा था कि बेस लोड बिजली के निर्यात की भारत की संभावना कोयले पर लगने वाले शुल्कों पर भारी कर लगाए जाने के कारण अप्रतिस्पर्धी बनी हुई है। एसोसिएशन ने अपने पत्र में कहा, ‘लगने वाले जीएसटी और जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर के साथ साथ (आयातित कोयले पर) सीमा शुल्क में छूट मिलने पर निर्यात किए जाने वाले बिजली की लागत में 0.50 अमेरिकी सेंट/किलोवाट घंटा की कमी करने की गुंजाइश बन सकती है। बिजली निर्यातों को और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए भारतीय पारेषण शुल्कों पर छूट देने की भी पेशकश की जा सकती है। भारतीय पारेषण शुल्कों में 50 फीसदी की छूट की पेशकश कर निर्यातों को करीब 0.19 अमेरिकी सेंट/किलोवाट घंटा के बराबर प्रतिस्पर्धी बनाया जा सकता है।’
इसमें आगे कहा गया है कि केंद्र की ओर से दी जाने वाले छूट की भरपाई जेनको द्वारा बिजली के निर्यात से अर्जित होने वाली विदेशी मुद्रा से की जा सकती है।
भारत की मौजूदा विद्युत उत्पादन क्षमता 375 गीगावॉट है जबकि अधिकतम मांग 184 गीगावॉट है जो क्षमता से करीब आधी है। इसके कारण यह अतिरिक्त क्षमता अप्रयुक्त रह जाती है। एपीपी ने कहा है इस अतिरिक्त क्षमता का उपयोग बिजली निर्यात के लिए किया जा सकता है।
भारत के अधिकांश पड़ोसी देशों का विद्युत क्षेत्र या तो काफी हद तक जल विद्युत पर निर्भर है या फिर महंगे ईंधन स्रोतों पर। पत्र में कहा गया है, ‘भारत के पड़ोसी देशों को विश्वसनीय और कम लागत वाली बेस लोड बिजली की आवश्यकता है जो पूरे समय के लिए हो और उस पर मौसमी प्रभाव नहीं पड़े। पड़ोसी देशों में विद्युत प्रणाली की अपर्याप्तता और अक्षमता से भारत को ताप विद्युत के निर्यात के लिए प्रचुर अवसर मिलता है जिससे इसे रणनीतिक और आर्थिक लाभ होंगे।’
