भारत और यूरोपीय संघ (ईयू) ने तेजी से बदलती भू-राजनीतिक स्थिति को देखते हुए विश्वसनीय प्रौद्योगिकी तथा सुरक्षा सुनिश्चित करने संबंधी चुनौतियों के समाधान के लिए आज व्यापार और प्रौद्योगिक परिषद गठित करने पर सहमति जताई। इस कदम से भारत और यूरोपीय संघ के बीच रणनीतिक रिश्ते और गहरे होंगे।
साझेदार देशों के साथ इस तरह के परिषद के गठन का निर्णय भारत के लिए पहला है और यूरोपीय संघ के लिए यह दूसरा मौका है। इससे पहले यूरोपीय संघ अमेरिका के साथ इस तरह का गठजोड़ कर चुका है।
दोनों पक्षों ने संयुक्त बयान में कहा, ‘दोनों पक्षों ने सहमति जताई कि तेजी से बदलते भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य के मद्देनजर रणनीतिक गठजोड़ को और प्रगाढ़ बनाने की जरूरत है। व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद राजनीतिक फैसलों के क्रियान्वयन के लिए एक आवश्यक प्रारूप प्रदान करेगा। यह तकनीकी काम में सहयोग करेगा तथा यूरोपीय और भारतीय अर्थव्यवस्थाओं की टिकाऊ प्रगति के लिए महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में क्रियान्वयन और प्रगति सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक स्तर पर रिपोर्ट करेगा।’ यह घोषणा यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लिएन की दो दिवसीय भारत की यात्रा के दौरान की गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष के बीच बैठक में इस तरह के परिषद गठित करने के समझौते पर सहमति बनी।
लिएन ने ट्वीट कर कहा, ‘ईयू-भारत साझेदारी की मजबूती इस दशक की शीर्ष प्राथमिकता है। हम व्यापार, प्रौद्योगिकी और सुरक्षा में सहयोग करेंगे। इसके लिए मैं नरेंद्र मोदी की सराहना करती हूं और हम ईयू-भारत व्यापार एवं प्रौद्योगिकी परिषद गठित करेंगे।’ दोनों नेताओं ने भारत और यूरोपीय संघ के बीच समग्र मुक्त व्यापार सौदे पर बातचीत बहाल करने की बात कही तथा निवेश करार पर वार्ता की प्रगति की समीक्षा भी की। यह बैठक ऐसे समय में हुई है जब पश्चिमी देश यूक्रेन पर हुए रूसी हमले की निंदा करने का दबाव भारत पर बनाने का प्रयास कर रहे हैं। मगर भारत का रुख इस मामले में अब तक तटस्थ रहा है।
बहुपक्षीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र से इतर लिएन ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्घ का परिणाम न केवल यूरोप के भविष्य का निर्धारण करेगा बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ-साथ बाकी दुनिया पर भी इसका असर पड़ेगा। यूक्रेन में रूस की आक्रामकता को यूरोप की सुरक्षा के लिए खतरे के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘दो साल तक कोविड महामारी की मार के बाद दुनिया भर के देशों को रूस के युद्घ के कारण अब खाद्यान्न, ईंधन और उर्वरकों की कीमतों में तेजी से जूझना पड़ रहा है।’