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Chinese Cranes: क्या चीन भारत के बंदरगाहों पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है? सुरक्षा विशेषज्ञ चिंतित

अमेरिका द्वारा की गई हाल की जांच से खुलासा हुआ है कि ZPMC इन क्रेनों का इस्तेमाल जासूसी करने या बंदरगाहों को नुकसान पहुंचाने के लिए कर सकता है।

Published by
भास्वर कुमार   
समरीन वानी   
Last Updated- April 30, 2024 | 11:15 PM IST

कई भारतीय बंदरगाहों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई जा रही है। इन बंदरगाहों पर कंटेनरों को जहाजों पर चढ़ाने और उतारने वाले क्रेन ज्यादातर चीनी कंपनी ZPMC (Shanghai Zhenhua Heavy Industries Company) के बनाए हुए हैं। ZPMC पर चीन सरकार का नियंत्रण है।

अमेरिका द्वारा की गई हाल की जांच से खुलासा हुआ है कि ZPMC इन क्रेनों का इस्तेमाल जासूसी करने या बंदरगाहों को नुकसान पहुंचाने के लिए कर सकता है। ZPMC ने इन आरोपों को खारिज किया है लेकिन जांच अभी जारी है। यह देखना बाकी है कि ZPMC के एकाधिकार से भारत के बंदरगाहों को वाकई कितना खतरा है।

अमेरिका को लगता है कि चीन के हैकर्स उसके बंदरगाहों पर हमला कर सकते हैं, इस वजह से वे चीन पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं। फरवरी 2023 में, अमेरिकी राष्ट्रपति ने बंदरगाहों की साइबर सुरक्षा बढ़ाने और अगले 5 सालों में बंदरगाहों के बुनियादी ढांचे को सुधारने के लिए एक कार्यकारी आदेश जारी किया। इस सुधार में अमेरिका में ही क्रेन बनाने पर भी ध्यान दिया जाएगा।

असल चिंता ये है कि चीनी कंपनी ZPMC का भारत सहित दुनिया भर के बंदरगाहों के महत्वपूर्ण उपकरणों पर दबदबा है। अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर 75-80% और भारत में भी इतना ही बाजार ZPMC का है। 2020 तक भारत के कई बंदरगाहों पर, जिनमें जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह भी शामिल है, ZPMC की 250 से ज्यादा क्रेनें लगी हुई हैं। इसी वजह से अमेरिका और भारत दोनों ही चीन पर निर्भरता कम करने की कोशिश कर रहे हैं।

भारत सरकार ने 2020 में राष्ट्रीय सुरक्षा के चलते चीन समेत उन देशों से सरकारी खरीद पर रोक लगा दी थी जिनसे भारत की जमीनी सीमा लगती है। इस आदेश के तहत चीन की कंपनियों को सरकारी टेंडर हासिल करने के लिए कड़े रजिस्ट्रेशन और मंजूरी की प्रक्रिया से गुजरना होता है। मगर ये पाबंदी पूरी तरह कारगर नहीं हुई है।

ZPMC की वेबसाइट के विश्लेषण से पता चलता है कि जुलाई 2020 के बाद भी उन्होंने भारत के बंदरगाहों के लिए कम से कम 29 क्रेन भेजी हैं। इनमें से 11 अडानी समूह के विदेशी बंदरगाह परियोजना के लिए थीं। गौर करने वाली बात ये है कि ये पाबंदी सिर्फ सरकारी खरीद पर लागू होती है, निजी कंपनियां अभी भी चीन से सामान खरीद सकती हैं। तो कुल मिलाकर, ZPMC अभी भी भारत में खासकर निजी क्षेत्र की परियोजनाओं में काम कर रही है।

2020 में सरकार द्वारा चीन से सरकारी खरीद पर रोक लगाने के बावजूद, ZPMC भारत में क्रेन भेजना जारी रखे हुए है। इसकी बिक्री खासकर निजी क्षेत्र और सरकारी उपक्रमों से जुड़े गेटवे टर्मिनल्स इंडिया (GTI) में बढ़ रही है।

उदाहरण के तौर पर APM टर्मिनल्स मुंबई, जो GTI के नाम से रजिस्टर्ड है, को जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट से 30 साल का लाइसेंस मिला है। ये दरअसल डेनिश शिपिंग कंपनी A.P. Moller-Maersk और सरकारी कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (CONCOR) का संयुक्त उद्यम है। गौर करने वाली बात ये है कि GTI को सरकार से कोई पैसा नहीं मिलता, फिर भी ये खासकर ZPMC क्रेन के साथ ही काम करने के लिए बनाया गया है।

2020 के बाद से भेजी गई ZPMC क्रेनों की संख्या में भी विसंगतियां हैं। ZPMC की भारतीय सहायक कंपनी की वेबसाइट पर तो कोई जानकारी नहीं मिलती, लेकिन सोशल मीडिया पर मिली जानकारी के अनुसार फरवरी 2021 से अगस्त 2023 के बीच भारत में 45 ZPMC क्रेन उतारी गई हैं।

इनमें से 20 APM टर्मिनल मुंबई और 20 अडानी समूह के अलग-अलग बंदरगाहों पर गईं। बाकी क्रेन GTI मुंबई, विशाखापत्तनम, चेन्नई और कोचीन में भेजी गई हैं। कुल मिलाकर, ये आंकड़े बताते हैं कि सरकारी पाबंदी के बावजूद ZPMC खासकर निजी क्षेत्र और GTI के सहयोग से भारत में अपनी पकड़ मजबूत बनाए हुए है।

भारतीय बंदरगाहों पर ZPMC क्रेनों का काफी इस्तेमाल होता है, खासकर 2014 के बाद से। हालांकि, हाल ही में इनकी सुरक्षा को लेकर चिंता जताई गई है। बावजूद इसके, कई बंदरगाह संचालक अभी भी यूरोपीय और अमेरिकी कंपनियों के क्रेनों को न चुनकर ZPMC क्रेन को ही तरजीह देते हैं।

ऐसा इसलिए है क्योंकि ZPMC क्रेन कम समय में काम पूरा कर देते हैं, उनके पुर्जे आसानी से मिल जाते हैं, रख-रखाव सरल होता है और सबसे अहम, उनकी लागत भी कम होती है (लगभग 25% तक कम)।

रिपोर्ट के मुताबिक, राज्यसभा में ZPMC क्रेनों को लेकर तीन अहम सवाल उठाए गए। पहला ये कि क्या सरकार को बंदरगाह उपकरणों पर ZPMC के दबदबे की जानकारी है। दूसरा ये कि क्या इन क्रेनों में निगरानी सेंसर हो सकते हैं और अगर हैं तो सरकार ने क्या कदम उठाए हैं। आखिरी सवाल ये था कि स्वदेशी क्रेन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए क्या किया जा रहा है।

सरकार के जवाब के मुताबिक, बंदरगाह अब निजी कंपनियों के हाथों में जा रहे हैं जो खुद ही नियमों के दायरे में रहकर क्रेन खरीदती हैं। ZPMC क्रेनों में किसी भी तरह के निगरानी सेंसर मिलने की कोई रिपोर्ट नहीं आई है। साथ ही, “मेक इन इंडिया” पहल के तहत बंदरगाह और जहाजरानी क्षेत्र में भी स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है।

दूसरी तरफ, अमेरिका में ZPMC को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। वहां की कांग्रेस की जांच में पाया गया कि कई ZPMC क्रेनों में ऐसे संचार उपकरण लगे हैं जिनका कोई स्पष्ट मकसद नहीं है और उन्हें बिना किसी रिकॉर्ड के लगाया गया था। इन उपकरणों के जरिए डेटा चोरी या जासूसी की आशंका जताई जा रही है।

अमेरिकी बंदरगाहों की सुरक्षा को लेकर खतरे की घंटी बज उठी है। 200 से ज्यादा चीनी निर्मित क्रेन, जो इन बंदरगाहों और आसपास के इलाकों में काम करती हैं, जांच के दायरे में हैं। अमेरिकी तटरक्षक का मानना है कि इन क्रेन को दूर से कंट्रोल किया जा सकता है, जिससे हैकर बंदरगाहों से महत्वपूर्ण जानकारी चुरा सकते हैं या उनके काम में दखल दे सकते हैं। इसी वजह से तटरक्षक इन क्रेन चलाने वाली कंपनियों के लिए नए साइबर सुरक्षा नियम बनाने जा रहा है।

First Published : April 30, 2024 | 11:06 PM IST