दवा बनाने में काम आने वाले एक्टिव फार्मास्युटिकल इनग्रीडिएंट्स (एपीआई) और इंटरमीडिएट के लिए भारत की चीन से आयात पर निर्भरता कम होने में अभी कुछ समय लग जाएगा मगर आयात में वृद्धि की रफ्तार अभी से कम होने लगी है। बल्क ड्रग यानी एपीआई के लिए उत्पादन पर आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना ने देश में कुछ प्रमुख एपीआई का उत्पादन बढ़ा दिया है मगर उद्योग के जानकार मानते हैं कि जमीनी फर्क दिखने में अभी 5-7 साल लग सकते हैं।
फार्मास्युटिकल निर्यात संवर्द्धन परिषद (फार्मेक्सिल) से मिले आंकड़ों के मुताबिक भारत ने 2022-23 में चीन से 3.18 अरब डॉलर के एपीआई और इंटरमीडिएट आयात किए, जो उससे पिछले साल के मुकाबले 1.74 फीसदी अधिक रहे। 2021-22 में भारत ने चीन से 3.12 अरब डॉलर के एपीआई और इंटरमीडिएट मंगाए थे, जो 2020-21 के मुकाबले 19.5 फीसदी ज्यादा थे। इस तरह आयात तो हो रहा है मगर उसमें इजाफे की दर बहुत कम हो गई है।
दूसरी ओर दुनिया भर से भारत का बल्क ड्रग और इंटरमीडिएट्स का आयात 4.54 फीसदी घटकर 4.5 अरब डॉलर ही रह गया। इससे पिछले वित्त वर्ष में आयात करीब 23 फीसदी बढ़कर 4.7 अरब डॉलर हो गया था। फार्मेक्सिल के महानिदेशक उदय भास्कर ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘पीएलआई योजना के कारण बल्क ड्रग्स की उत्पादन क्षमता बढ़ने का वास्तविक असर कुछ साल बाद दिखेगा।’
देश की शीर्ष दवा कंपनियों के संगठन इंडियन फार्मास्युटिकल अलायंस (आईपीए) के महासचिव सुदर्शन जैन ने कहा, ‘भारत ने चीन से एपीआई और केएसएम आयात पर निर्भरता कम करने और देश के भीतर ही उत्पादन बढ़ाने के लिए एकजुट प्रयास शुरू किए हैं। योजना के परिणाम दिखने शुरू हो गए हैं मगर समूची निर्भरता कम करने में अभी 5-7 साल लग जाएंगे। स्वास्थ्य सेवा सुरक्षा तभी मजबूत हो सकती है, जब आपूर्ति के मामले में विविधता हो।’
मगर देसी फार्मा उद्योग का कहना है कि कुछ खास उत्पादों के आयात में ही कमी आ रही है। छोटी और मझोली दवा कंपनियों की नुमाइंदगी करने वाले इंडियन ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (आईडीएमए) के अध्यक्ष विरंची शाह ने कहा कि पीएलआई योजना आने से पहले केवल एक कारखाने में पैरा अमीनो फिनॉल (पैरासिटामॉल बनाने में इस्तेमाल) बन रहा था। उन्होंने कहा, ‘कोविड महामारी के समय जमकर इस्तेमाल हुए इस जरूरी ड्रग के लिए हम चीन पर बहुत निर्भर थे। मगर अब कम से कम तीन-चार कारखानों में पैरा अमीनो फिनॉल बन रहा है।’
उद्योग सूत्र बताते हैं कि भारत में उत्पादन बढ़ता देखकर चीन ने प्रमुख सामग्री, बल्क ड्रग और अन्य रसायनों की कीमतें भी बदल दी हैं। भास्कर ने कहा, ‘इसलिए जब प्रमुख उत्पादों के लिए हमारे पास उत्पादन क्षमता काफी बढ़ जाएगी तो भारतीय दवा कंपनियां धीरे-धीरे चीन का सहारा लेना कम कर देंगी।’
उद्योग में असरे से काम कर रहे एक व्यक्ति ने बताया कि चीन ने यह काम बहुत पहले शुरू कर दिया था। उन्होंने कहा, ‘उन्होंने 30-40 साल पहले ही अपने रसायन उद्योग को बिजली, जमीन और दूसरी सब्सिडी के सहारे प्रोत्साहन दिया था। पिछले 30 साल में हम उस पर बहुत निर्भर होते गए और हमने अपनी पीएलआई योजना 2021 में शुरू की। इसलिए अभी इसमें समय लग जाएगा।’ उद्योग से जुड़े कुछ लोगों ने कहा कि उत्पादन की बुनियाद देश में ही तैयार हो जाने के बाद केंद्र शुल्क के जरिये आयात में रोड़ा पैदा कर सकता है, जिससे फॉर्म्यूलेशन बनाने वाली कंपनियां भी देसी कंपनियों से ही माल खरीदने लगेंगी।
इस साल फरवरी तक प्रमुख एपीआई बनाने वाली करीब 22 परियोजनाएं पीएलआई योजना के दायरे में आ चुकी थीं। इनके पास 33,000 टन से भी ज्यादा उत्पादन की क्षमता तैयार है।
ये कंपनियां पैरा अमीनो फिनॉल, एटरवैस्टाटिन (कोलेस्ट्रॉल की दवा) और सल्फाडायजीन, लेवोफ्लोक्सैसिन, नॉरफ्लोक्सैसिन और ऑफ्लॉक्सैसिन जैसे आम एंटीबायोटिक एपीआई, विटामिन एपीआई, वल्सार्टन जैसी रक्तचाप घटाने वाली आम दवाएं और लोपिनाविर (एचआईवी रोगियों के लिए) जैसी एंटीवायरल दवाएं बनाने वाले प्रमुख बल्क ड्रगों का उत्पादन कर रही हैं। मेघमणि एलएलपी और साधना नाइट्रो केम जैसी कंपनियों ने पैरासिटामॉल का एपीआई पैरा अमीनो फिनॉल बनाने के लिए 13,500 टन और 12,000 टन क्षमता वाले कारखाने लगा दिए हैं। हेटरो ने चार एपीआई बनाने का कारखाना लगाया है।
फार्मास्युटिकल्स विभाग ने बल्क ड्रग के लिए 6,940 करोड़ रुपये की पीएलआई योजना शुरू की। इस योजना के तहत पहले साल में 20 फीसदी, पांचवें साल में 15 फीसदी और छठे साल में 5 फीसदी प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इसके पीछे मकसद चीन से आयात घटाना ही है।
फरवरी में रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने एक बयान में कहा था कि 34 अधिसूचित बल्क ड्रग्स के लिए 51 परियोजनाएं चुनी गई हैं। योजना के छह सालों में 4,138 करोड़ रुपये के निवेश का वादा किया गया है, जिसमें 2,019 करोड़ रुपये का निवेश हो भी चुका है। बाकी बची रकम आने वाले साल में जारी हो जाएगी।