जनवरी महीने में थोड़ा गर्माहट बढ़ने के बाद भारतीय मौसम विभाग ने अनुमान जताया है कि फरवरी का महीना भी थोड़ा गर्म रह सकता है और देश के अधिकांश हिस्सों में इसका न्यूनतम और अधिकतम तापमान सामान्य से ऊपर रहने का अनुमान है।
उत्तर पश्चिमी भारत में अब शीतलहर वाले दिन खत्म हो रहे हैं और उम्मीद है कि फरवरी महीना ‘सामान्य से कम’ रह सकता है। विभाग ने कहा कि उत्तर-पश्चिमी भारत के मैदानी इलाके में सामान्य से कम बारिश के साथ-साथ सामान्य से अधिक तापमान का खेतों में खड़ी फसलों जैसे कि गेहूं आदि पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा जो फूल और दाना भरने के चरण में हैं। इसने चेतावनी देते हुए कहा है, ‘सरसों और चना जैसी फसलें भी समय से पहले पक सकती हैं।’
इसमें यह भी कहा गया कि सेब और अन्य समशीतोष्ण जलवायु के अनुकूल फलों जैसी बागवानी फसलों में गर्म तापमान के चलते समय से पहले ही कली खिलना और जल्दी फूल आना हो सकता है जिसके कारण पेड़ों पर फल कम लगेंगे और साथ ही फलों की गुणवत्ता पर असर पड़ेगा। आखिरकार यह सब कम उपज के तौर पर नजर भी आएगा। इस स्थिति से उबरने के लिए मौसम विभाग ने बीच-बीच में हल्की सिंचाई करने का सुझाव दिया है ताकि प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के साथ ही फसल वृद्धि बरकरार रखी जा सके। विपरीत मौसम के चलते गेहूं की फसल में कमी आने से सरकार की महंगाई की चुनौतियों से निपटने की रणनीति पर गंभीर असर पड़ेगा।
दिलचस्प बात यह है कि मौसम विभाग का फरवरी का पूर्वानुमान और फसलों पर संभावित प्रभाव की चेतावनी ऐसे दिन आई है जब संसद में पेश आर्थिक समीक्षा में देश की खेती में जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए सिंचाई में विस्तार करने और शोध में निवेश करने की बात पर तवज्जो दी गई है।
फरवरी के पूर्वानुमान में विभाग ने कहा कि उत्तर भारत सहित अन्य क्षेत्रों में सामान्य से कम बारिश होना ही इस महीने सामान्य से अधिक तापमान की मुख्य वजह हो सकती है। भारत में फरवरी महीने में कुल करीब 22.7 मिलीमीटर की बारिश होती है। जनवरी महीने में औसत बारिश सामान्य से 72 फीसदी कम थी जबकि औसत तापमान 1901 के बाद से तीसरा सबसे अधिक था।
विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने कहा कि फरवरी महीने में भारत के कुछ हिस्से सामान्य से अधिक न्यूनतम तापमान से अछूते रह सकते हैं इनमें उत्तर पश्चिम भारत और दक्षिण के पठारी क्षेत्र हो सकते हैं। वहीं अगर अधिकतम तापमान की बात करें तो यह पश्चिम मध्य भारत और भारत के दक्षिणी पठारी क्षेत्र हो सकते हैं।
महापात्र ने अलनीनो की बात पर कहा कि फिलहाल कमजोर ला नीना की स्थिति देखी जा रही है और आशंका है कि यह अप्रैल 2025 तक बना रहेगा जो इसके बाद तटस्थ स्थिति में बदल जाएगा।