उत्तर प्रदेश

‘मुस्कुराइए…’? लखनऊ की टैगलाइन को फीका करती सार्वजनिक परिवहन की मुश्किलें

मेट्रो राइडरशिप, बस फ्लीट और सुरक्षा सुधार शहर की तेजी से बढ़ती आबादी और फैलाव के साथ तालमेल नहीं बैठा पा रहे

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वीरेंद्र सिंह रावत   
Last Updated- September 29, 2025 | 8:00 PM IST

लखनऊ के बाहरी इलाके से रोजाना 15 किलोमीटर की दूरी तय कर अपने दफ़्तर पहुंचने वाले 42 वर्षीय लक्ष्मण शहर की भीड़भाड़ और सुस्त सार्वजनिक परिवहन से दूरी बनाते हैं। वह अपनी बाइक पर सफर करना पसंद करते हैं, भले ही इससे उनका मासिक यात्रा खर्च लगभग दोगुना हो गया हो।

उनका कहना है कि अतिरिक्त खर्च की तुलना में समय बचाना और भीड़भाड़ वाली, अव्यवस्थित और जामग्रस्त सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था से बचना कहीं ज्यादा सुविधाजनक है। लक्ष्मण अकेले नहीं हैं। 40 वर्षीय सुरेंद्र सिंह रोजाना 21 किलोमीटर की दूरी तय कर जानकीपुरम से गोमतीनगर जाते हैं और वे भी बाइक को सार्वजनिक परिवहन से अधिक पसंद करते हैं।

“मुस्कुराइए, आप लखनऊ में हैं!” — शहर की टैगलाइन तब बेमानी हो जाती है जब बात सार्वजनिक परिवहन की हो। लगभग 50 लाख आबादी वाले इस शहर में मेट्रो, बस, ऑटो, टेम्पो, ऐप-आधारित कैब/बाइक और ई-रिक्शा जैसे कई विकल्प होने के बावजूद सार्वजनिक परिवहन पिछड़ा हुआ है।

भीड़, जाम और एजेंसियों का टकराव

लखनऊ का सार्वजनिक परिवहन रोजाना भीड़भाड़, अतिक्रमण, संकरी सड़कों और मुख्य रूटों पर कम बस आवृत्ति से जूझ रहा है। शहर का बेतहाशा क्षैतिज फैलाव, बढ़ती आबादी, लगातार अतिक्रमण और कमजोर बस फ्लीट ने यात्रियों को व्यक्तिगत वाहनों की ओर धकेला है।

इस व्यवस्था की सबसे बड़ी चुनौती है जिम्मेदार एजेंसियों का टकराव। पुलिस, नगर निगम, परिवहन और शहरी विकास विभाग अक्सर एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डाल देते हैं और नतीजा भुगतना पड़ता है नागरिकों और पर्यटकों को।

सिटी बसें

लखनऊ सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विस लिमिटेड के पास 250 से अधिक बसें हैं — एसी और नॉन-एसी, लो-फ़्लोर और सामान्य वेरिएंट सहित। ये बसें जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (JNNURM) के तहत चलाई जाती हैं और प्रतिदिन लगभग 60,000 यात्री इनका लाभ उठाते हैं। करीब 1,600 ट्रिप में ये बसें 50,000 किलोमीटर की दूरी तय करती हैं।

लेकिन उपनगरों जैसे जानकीपुरम, जहाँ तक मेट्रो नहीं पहुँची है, अब भी उपेक्षित हैं। भीड़भाड़ वाली बसों के कारण लोग निजी वाहनों या ई-रिक्शा पर निर्भर हैं। ई-रिक्शा की संख्या हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ी है। अनुमान है कि शहर में लगभग 50,000 ई-रिक्शा चल रहे हैं। सस्ती और सुलभ होने के बावजूद इनकी अव्यवस्थित वृद्धि ने जाम और सुरक्षा जोखिम दोनों बढ़ा दिए हैं।

लखनऊ मेट्रो

सितंबर 2017 में वाणिज्यिक सेवाओं की शुरुआत के साथ लखनऊ मेट्रो ने शहर को चुनिंदा भारतीय महानगरों की श्रेणी में ला खड़ा किया। फिलहाल 22.8 किलोमीटर लंबे नेटवर्क में 21 स्टेशन हैं और रोजाना औसतन 85,000 यात्री यात्रा करते हैं।

लेकिन मेट्रो की संस्कृति अभी शहर में पूरी तरह विकसित नहीं हुई है। वजहें हैं स्टेशनों तक पर्याप्त फीडर सेवाओं की कमी और अपेक्षाकृत महंगे किराए की धारणा। कॉलेज छात्र और हवाईअड्डा/रेलवे यात्री मेट्रो का ज्यादा उपयोग करते हैं, जबकि दफ्तर जाने वाले कम।

12 अगस्त को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 11.16 किलोमीटर लंबे एक और कॉरिडोर को मंजूरी दी। लखनऊ की मेयर सुषमा खरखवाल ने कहा कि रक्षा मंत्री और स्थानीय सांसद राजनाथ सिंह ने यह नई लाइन शहर को ट्रैफिक से राहत दिलाने के लिए दी है।

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सुधारों की योजनाएं

लखनऊ नगर निगम और जिला प्रशासन ने सड़क जाम से निपटने के लिए कई सुधार सुझाए हैं। इनमें फुटपाथ पर ठेलों और खोमचों को मुख्य बाधा बताया गया है। वहीं, अनियंत्रित ई-रिक्शा अब भी दुर्घटनाओं और भीड़ की बड़ी वजह बने हुए हैं।

यातायात सुधार के लिए प्रस्ताव है कि प्रमुख राजमार्गों — हरदोई रोड, सीतापुर रोड, रायबरेली रोड, अयोध्या रोड और सुल्तानपुर रोड — पर नए बस टर्मिनल बनाए जाएँ। इनसे शहर के भीतर बसें यात्रियों को उतारकर जाम कम कर सकेंगी। इसके अलावा, शहर में लगभग 5,000 ऑटो और करीब 2,000 ऐप-आधारित कैब व बाइक (ओला, उबर आदि) चल रही हैं, जो अपेक्षाकृत संपन्न यात्रियों को सेवा देती हैं।

सुरक्षा पर चिंता

यात्रियों की सुरक्षा हमेशा चिंता का विषय रही है। कई वाहनों के पास फिटनेस सर्टिफिकेट तक नहीं हैं। अब सभी ऑटो और ई-रिक्शा को क्यूआर कोड से पंजीकृत करना अनिवार्य किया जा रहा है, ताकि यात्री — विशेषकर महिलाएं — वाहन और चालक की जानकारी तुरंत सत्यापित कर सकें।

इसके अलावा, परिवहन से जुड़ी जानकारी (वाहन पंजीकरण, ड्राइविंग लाइसेंस आदि) उपलब्ध कराने के लिए एक व्हाट्सऐप चैटबॉट तैयार किया जा रहा है।

रक्षाबंधन जैसे मौकों पर राज्य सरकार महिलाओं को सरकारी बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा देती है। इस वर्ष 8 से 10 अगस्त तक यह सुविधा लागू रही और पूरे प्रदेश में लगभग 70 लाख यात्रियों ने इसका लाभ उठाया।

ट्रैफिक प्रबंधन में AI

उत्तर प्रदेश सरकार अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)-आधारित प्रणाली लागू करने जा रही है, जिससे सड़क दुर्घटनाओं को कम किया जा सके और प्रवर्तन दक्षता बढ़े। परिवहन आयुक्त बृजेश नारायण सिंह के अनुसार, यह देश का पहला AI-संचालित सड़क सुरक्षा प्रयोग होगा।

पायलट प्रोजेक्ट राज्य-स्वामित्व वाली आईटीआई लिमिटेड और वैश्विक टेक कंपनी mLogica के सहयोग से शून्य लागत पर लागू होगा। 2025-26 के लिए परिवहन विभाग को डेटा-आधारित मॉडल पर चलाने हेतु लगभग 10 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।

हाल ही में लखनऊ के सरोजिनीनगर विधायक राजेश्वर सिंह ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक प्रस्ताव दिया है, जिसमें AI-आधारित इंटेलिजेंट ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम (AI-ITMS) लागू करने की मांग की गई। इसमें बताया गया कि शहर में 28 लाख से अधिक पंजीकृत वाहन, सालाना 10,000 करोड़ रुपये का उत्पादकता नुकसान और उत्सर्जन में 33 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है।

प्रस्ताव के मुताबिक, AI-आधारित ट्रैफिक सिस्टम यात्रा समय में 25 फीसदी की कटौती, ईंधन खपत में 20 फीसदी की कमी और एंबुलेंस रिस्पॉन्स टाइम में 40 फीसदी सुधार ला सकता है।

First Published : September 29, 2025 | 8:00 PM IST