प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
दक्षिणी दिल्ली के राजौरी गार्डन मेट्रो स्टेशन से उतरकर जब आप मेट्रो पिलर के साथ पैदल चलते हुए टैगोर गार्डन मेट्रो स्टेशन की ओर बढ़ेंगे तो आपको सड़क किनारे रावण के छोटे-बड़े पुतले ही पुतले नजर आएंगे। यह इलाका तितारपुर है और दिल्ली ही नहीं पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में रावण के पुतलों का सबसे बड़ा अड्डा है। यहां बने पुतले एनसीआर के साथ दूसरे राज्यों में भी जाते हैं। कई बार तो रावण तितारपुर में तैयार होकर विदेश भी पहुंच जाता है। इस साल भी यहां के कारोबारियों को विदेश से पुतलों के कुछ ऑर्डर मिले हैं।
इस बार तितारपुर में माहौल कुछ अलग है। कारोबारी न तो खुश हैं और न ही दुखी। पुतलों के ऑर्डर तो खूब आ रहे हैं मगर उन्हें वे पूरा नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि इस बार पुतले बनाए ही कम गए हैं। दिल्ली समेत देश भर में इस साल भारी बारिश होने की वजह से कारोबारियों को पुतले कम बिकने का खटका था, इसलिए उन्हें बनाया ही नहीं गया। महंगाई की वजह से बढ़ती लागत ने भी पुतले महंगे कर दिए और कम पुतले बनाए गए।
पवन रावण वाला के नरेश बिड़लान ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि रावण के पुतले बनाने का काम जुलाई से ही शुरू हो जाता है। अलग जगह नहीं होने की वजह से उन्हें खुले में बनाते हैं और सड़क किनारे ही रख देते हैं। इस साल लगातार बारिश होने के कारण पुतले देर से और कम बनाए गए। बिहार और उत्तर प्रदेश से आने वाले कारीगर भी बारिश की वजह से पुतले बनाने के लिए देर से बुलाए गए। पिछले साल नरेश ने 30 से ज्यादा पुतले बनाए थे मगर इस साल 25 ही बने हैं।
कारीगरों ने बारिश से रावण को बचाने के लिए अलग से इंतजाम भी किया, जिसने लागत और भी बढ़ा दी। विजेंद्र रावण वाला के नाम से करीब चार दशक से पुतले बना रहे विजेंद्र कुमार ने कहा कि बारिश ने इस साल कागज को भी नुकसान पहुंचाया। पहले तो उन्होंने ज्यादा पुतले बनाने की बात सोची थी मगर बारिश से नुकसान के डर और पंजाब में बाढ़ देखकर पिछले साल की तरह 50 पुतले ही बनाए। विजेंद्र के ज्यादातर पुतले पंजाब ही जाते हैं।
महेंद्र रावण वाला के महेंद्र कुमार ने बिक्री कम रहने के डर से रावण के बड़े आकार के 20 पुतले ही बनाए। रखने की जगह नहीं होने के कारण माइकल रावण वाला के माइकल इक्का ने भी 25 पुतले ही बनाए, जबकि पिछले साल 40 बनाए थे।
दिक्कत तब हो गई, जब कारीगरों के पास ऑर्डर भरपूर आ गए, जिसमें बिहार और महाराष्ट्र से भी ऑर्डर शामिल हैं। पहले बने सभी पुतले बुक हो चुके हैं और दशहरा सिर पर है, इसलिए नए ऑर्डर लेकर पुतले बना नहीं सकते। ज्यादातर कारीगर नए ऑर्डर को मना कर रहे हैं मगर संजय कुमार जैसे कारीगर खुश हैं क्योंकि उन्होंने पिछले साल से तीन गुना ज्यादा पुतले बना दिए थे और अब दोनों हाथ से ऑर्डर बटोर रहे हैं।
लागत बढ़ने से इस साल रावण महंगा भी हो गया है। पुतला बनाने वाले संजय ने बताया कि रावण के पुतले बनाने में इस्तेमाल होने वाले बांस, कागज, तार महंगे हो गए हैं। पिछले साल 20 बांस का गट्ठर 800 से 1,000 रुपये में आया था, जो इस बार 1,200 से 1,400 रुपये में मिल रहा है। पुतले बनाने में इस्तेमाल हो रहा तार 70-80 रुपये के बजाय 90-100 रुपये में मिल रहा है। कागज भी महंगा हुआ है।
विजेंद्र ने बताया कि 40 फुट का जो रावण पिछले साल 12,000 से 14,000 रुपये में बन रहा था अब 16,000 से 18,000 रुपये में बन रहा है। मजबूरी में उसे 22,000 से 25,000 रुपये में बेचना पड़ रहा है। इक्का का रावण 600 से 800 रुपये प्रति फुट तक जा रहा है, जो पिछले साल 500-600 रुपये फुट था। कारोबारी बताते हैं कि पुतले की कोई तय कीमत नहीं होती और मोलभाव से दाम तय होता है। कभी एक पुतले के 8-10 हजार रुपये मिल जाते हैं और कभी 3-4 हजार रुपये में संतोष करना पड़ता है।
दिल्ली-एनसीआर के साथ तितारपुर के रावण हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र भी जाते हैं। संजय कुमार ने बताया कि उनके पास हरियाणा के सोनीपत से रावण के पुतलों के ऑर्डर आए हैं। नरेश ने कहा कि उनको इस बार महाराष्ट्र के नासिक से पुतले का ऑर्डर मिला है। बिहार के मोतिहारी से भी ऑर्डर आया है। विजेंद्र को हर साल पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से पुतलों के ऑर्डर मिलते हैं, जो इस साल भी आए हैं।
तितारपुर में बनने वाले रावण के पुतलों के खरीदार देश में ही नहीं हैं, विदेश में भी उन्हें चाहने वाले मौजूद हैं। महेंद्र रावण वाला के महेंद्र कुमार ने बताया कि इस साल उन्हें कनाडा और अमेरिका से रावण के पुतलों के ऑर्डर मिले हैं मगर ढाई फुट के छोटे पुतलों के ही ऑर्डर हैं। विदेंद्र ने बताया कि उनके भतीजे को ऑस्ट्रेलिया से रावण के पुतले का ऑर्डर मिला था, जो 25 फुट का था।