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समान नागरिक संहिता से बाहर हों आदिवासी, UCC पर सुशील मोदी ने की ST कानून की वकालत

बैठक में भाजपा के सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा कि अनुसूचित जाति एवं पूर्वोत्तर राज्यों से संबंधित कानून इसके दायरे से बाहर हों

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अर्चिस मोहन   
Last Updated- July 03, 2023 | 11:09 PM IST

समान नागरिक संहिता (UCC) पर संसदीय समिति की सोमवार को बैठक हुई। इसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा कि अनुसूचित जाति एवं पूर्वोत्तर राज्यों से संबंधित कानून प्रस्तावित यूसीसी के दायरे से बाहर रखे जाएं। मोदी कार्मिक, लोक शिकायत, विधि एवं न्याय पर गठित संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष हैं। उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत कानूनों में सुधार की किसी समुदाय की विफलता को भेदभाव पूर्ण कानूनों में संशोधन नहीं करने का दीर्घकालिक आधार नहीं बनाया जाना चाहिए।

राज्यसभा के सदस्य एवं बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री मोदी ने कहा कि हिंदू समुदायों के एक बड़े खेमे के विरोध के बावजूद हिंदू संहिता विधेयक पारित हुआ था। उन्होंने कहा कि पुराने जमाने से चले आर रहे भेदभावपूर्ण कानूनों को खत्म करना समाज की जिम्मेदारी है।

मोदी ने समिति के अन्य सदस्यों से बहु-विवाह, तलाक एवं भरण-पोषण, गोद लेना और महिलाओं के संपत्ति से जुड़े अधिकारों आदि से संबंधित कानूनों पर चर्चा करने का आग्रह किया। माना जा रहा है कि इन मामलों पर समिति के सदस्यों पर आपसी सहमति बन सकती है। हिंदू अविभाजित परिवार जैसे विवादित विषयों पर चर्चा नहीं हो पाई।

हालांकि, 31 सदस्यीय समिति में डीएमके के पी विल्सन, कांग्रेस के विवेक तन्खा और मणिकम टैगोर ने कहा कि सरकार ने 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए यूसीसी का मुद्दा उठाया है।

तन्खा ने अलग से जारी अपने बयान में 21वें विधि आयोग के विचारों का हवाला दिया कि वर्तमान में यूसीसी लागू करने के बजाय भेदभावपूर्ण कानूनों को दूर करना आवश्यक है। यूसीसी की फिलहाल देश में जरूरत नहीं है। तन्खा ने कहा कि व्यक्तिगत कानूनों में विविधता कायम रहनी चाहिए मगर वे मौलिक अधिकारों के आड़े नहीं आना चाहिए। कांग्रेस सांसद ने कहा कि व्यक्तिगत कानून धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों को परिलक्षित करते हैं।

शिवसेना के संजय राउत ने कहा कि पश्चिम के कई लोकतांत्रिक देशों में समान नागरिक कानून हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को विभिन्न समुदायों एवं धर्मों की चिंताओं पर भी समान रूप से ध्यान देना चाहिए। उन्होंने यूसीसी पर चर्चा शुरू करने के समय पर भी सवाल उठाया। भाजपा के महेश जेठमलानी ने यूसीसी की जरूरत पर जोर दिया। भारत राष्ट्र समिति के सदस्यों ने यूसीसी का विरोध नहीं किया मगर उन्होंने इस विषय पर गंभीर चर्चा करने पर जोर दिया। बहुजन समाज पार्टी के सांसद ने भी यूसीसी की जरूरत के पक्ष में तर्क दिया।

सुशील मोदी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 371 के तहत आने वाले क्षेत्रों को किसी प्रस्तावित यूसीसी के दायसे से दूर रखा जाना चाहिए। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि प्रत्येक कानून में कोई न कोई अपवाद होता है। बैठक में इस बात पर भी ध्यान आकृष्ट किया गया कि पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों पर केंद्र के कानून उन राज्यों की विधायिका की सहमति के बिना लागू नहीं होते हैं। पूर्वोत्तर के समुदायों और भाजपा के सहयोगी राजनीतिक जैसे कोनराड संगमा भी इस क्षेत्र के कानूनों में किसी प्रकार के बदलाव का विरोध किया।

इस बैठक में विधि आयोग का प्रतिनिधित्व इसके सदस्य सचिव के बिस्वाल ने किया। उन्होंने कहा कि उसके द्वारा 13 जून को शुरू किए गए एक महीने लंबे विमर्श पर 19 लाख सुझाव आए हैं।

सदस्यों ने एक बार फिर विमर्श शुरू करने की प्रक्रिया का विरोध किया। सदस्यों का तर्क था कि जब 21 जून को विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी तो फिर नए सिरे से विमर्श करने की क्या जरूरत थी।

हालांकि, इस पर भी ध्यान दिया गया कि 21वें विधि आयोग ने रिपोर्ट नहीं सौंपी थी बल्कि उसने परिवार कानूनों पर अपना कार्यकाल समाप्त होने के अंतिम दिन विमर्श पत्र सौंपा था। सदस्यों ने कहा कि पांच वर्ष बीत जाने के बाद इस विषय पर दोबारा अध्ययन की जरूरत है।

First Published : July 3, 2023 | 10:34 PM IST