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सुप्रीम कोर्ट का पराली जलाने पर कड़ा रुख, किसानों पर चुनिंदा मुकदमा चलाने का सुझाव दिया

शीर्ष अदालत ने मंगलवार को सुझाव देते हुए कि पराली जलाने में शामिल किसानों पर आपराधिक मुकदमा चलाने से सही संदेश जाएगा और अन्य किसान इस कृत्य से परहेज करेंगे।

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भाविनी मिश्रा   
Last Updated- September 17, 2025 | 11:18 PM IST

राजधानी दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में अक्टूबर-नवंबर के दौरान वायु प्रदूषण का बड़ा कारण बनने वाले धान की पराली के धुएं पर उच्चतम न्यायालय ने सख्त रुख अपनाया है। शीर्ष अदालत ने मंगलवार को सुझाव देते हुए कि पराली जलाने में शामिल किसानों पर आपराधिक मुकदमा चलाने से सही संदेश जाएगा और अन्य किसान इस कृत्य से परहेज करेंगे।

उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन के पीठ ने जोर देते हुए कहा कि पराली जलाने की प्रथा सर्दियों के दौरान दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता को खतरनाक स्तर पर ले जाने का प्रमुख कारण बनती है। सुनवाई के दौरान पीठ ने यह सवाल भी पूछा कि क्या फसल अवशेष जलाने को अपराध घोषित करने के प्रावधान हैं।

केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने पीठ को बताया कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) अधिनियम उन अधिकारियों के खिलाफ दंड का प्रावधान करता है जो मानदंडों को लागू करने में विफल रहते हैं, लेकिन पर्यावरण संरक्षण अधिनियम व्यक्तिगत रूप से किसानों पर दायित्व नहीं बढ़ाता है। यह सुनकर सीजेआई ने कहा कि केवल अधिकारियों पर मुकदमा चलाना पर्याप्त नहीं होगा।

उन्होंने कहा, ‘इतने सारे गांवों की निगरानी करना केवल एक अधिकारी के लिए मुश्किल है। यदि कुछ कृषक कानून का उल्लंघन करते हुए पाए जाते हैं, तो कम से कम कुछ को सलाखों के पीछे भेज दिया जाना चाहिए। इससे सही संदेश जाएगा।’ उन्होंने केंद्र सरकार से पराली जलाने वाले किसानों तक दंडात्मक प्रावधानों का विस्तार करने पर विचार करने का आग्रह किया।

इसके जवाब में ऐश्वर्या भाटी ने पीठ को बताया कि सामाजिक संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय नीति के रूप में पहले कुछ मामले वापस ले लिए गए थे। लेकिन सीजेआई ने चेतावनी देते हुए कहा कि इस तरह व्यापक छूट देना उचित नहीं है। उन्होंने कहा, ‘किसानों का हमारे दिलों में विशेष स्थान है। उनके प्रयास के कारण ही हम रोटी खाते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पर्यावरण के मामले में उन्हें किसी तरह की छूट दी जाए या वे जिम्मेदारी से बच जाएं।’

उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार सभी पक्षों के साथ मिल-बैठकर इस मुद्दे का हल नहीं निकाल पाती है तो अदालत परमादेश जारी कर सकती है। किसी व्यक्ति को सार्वजनिक या वैधानिक कर्तव्य का सख्ती से पालन करने को कहना परमादेश कहलाता है। पीठ ने उन रिपोर्टों का भी उल्लेख किया, जो यह दर्शाती हैं कि फसल अवशेषों को बायोफ्यूल के रूप में पुन: उपयोग किया जा सकता है, जिससे जलाने की आवश्यकता कम हो जाती है।

पंजाब सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने छोटे किसानों को अपराधी बनाने का विरोध करते हुए तर्क दिया कि इससे उन पर आश्रित परिवारों को बड़ा नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि इस मामले में राज्य ‘रेड एंट्री’ प्रणाली का उपयोग करता है। इसके तहत पराली जलाने से बाज नहीं आने वाले डिफॉल्ट किसानों को अपना अनाज बाजारों और ऑनलाइन पोर्टलों पर बेचने से वंचित कर दिया जाता है। यह जेल की शर्तों से अधिक प्रभावी कदम है।

मेहरा ने अदालत के समक्ष तर्क दिया, ‘अधिकांश किसान गरीब हैं और यदि आप एक हेक्टेयर भूमि वाले किसान को जेल भेज देते हैं, तो उस पर आश्रित कम से कम पांच लोग प्रभावित होते हैं। सीजेआई ने स्पष्ट किया कि अदालत बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी की सिफारिश नहीं कर रही है, बल्कि निवारक के रूप में कार्य करने के लिए चुनिंदा अभियोजन की सिफारिश कर रही है।

पराली जलाने का चलन पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली के किसानों में प्रचलित है। वे अगली फसल की बोआई के लिए अपने खेतों को जल्दी साफ करने के लिए ऐसा करते हैं। अपराजिता सिंह ने पीठ को यह भी बताया कि धान की फसल देर से कटने के कारण किसानों के पास अगली रबी की फसलों की तैयारी के लिए कम वक्त बचता है, इसलिए उन्हें पराली जलानी पड़ती है, ताकि खेत जल्दी खाली हो जाएं।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में रिक्त पद भरने का निर्देश

एजेंसी के अनुसार उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब जैसे हितधारक राज्यों, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को तीन महीने के भीतर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में रिक्त पदों को भरने का निर्देश भी दिया। नियामक निकायों की ओर से अदालत में उपस्थित अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने ताजा स्थिति रिपोर्ट रिकॉर्ड पर रखने के लिए समय मांगा। पिछले साल पीठ ने इस मुद्दे पर पंजाब और हरियाणा के मुख्य सचिवों को तलब किया था।

First Published : September 17, 2025 | 11:18 PM IST