कक्षीय उड़ान संख्या ‘634’, ‘ड्रैगन’ में शयनकक्ष और गाजर का हलवा, मूंग दाल हलवा तथा आम रस जैसा देसी जायका जल्द ही इतिहास की पुस्तकों में 41 वर्षों बाद अंतरिक्ष में भारत की गौरवशाली वापसी के प्रतीक के रूप में अपनी विशेष जगह पा सकते हैं। धरती से लगभग 400 किलोमीटर ऊपर 8 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से परिक्रमा कर पृथ्वी का प्रतिदिन 16 बार चक्कर लगा रहे शुभांशु शुक्ला का अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) में जीवन किसी विज्ञान-कल्पना आधारित फिल्म से कम नहीं है। शुक्ला के 14-दिवसीय इस अभियान के पहले 7 दिन काफी व्यस्त रहे।
उड़ान के दौरान कार्यक्रम, वैज्ञानिक प्रयोग, आईएसएस एक्सपेडिशन 73 टीम के साथ भारतीय मिठाइयों पर हल्के-फुल्के संवाद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ऑनलाइन बातचीत के दौरान महसूस किया गया राष्ट्रीय गौरव का क्षण इन सात दिनों के विशेष समय थे। 25 जून को नैशनल एयरोनॉटिक्स ऐंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) के फ्लोरिडा स्थित कैनेडी स्पेस सेंटर से ऐतिहासिक उड़ान के बाद ड्रैगन अंतरिक्ष यान 26 जून को बिना किसी परेशानी के परिक्रमा करने वाली प्रयोगशाला से जुड़ गया।
अंतरिक्ष स्टेशन से जुड़ने से कुछ घंटे पहले अंतरिक्ष यात्रियों ने नए ड्रैगन अंतरिक्ष यान में ‘ग्रेस’ नामक एक कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें ‘शुक्ला’ ने यूरोप के ऊपर उड़ान भरते समय पृथ्वी के अविश्वसनीय दृश्यों के बारे में अपना अनुभव दुनिया के साथ साझा किया। अंतरिक्ष में प्रवेश यादगार था क्योंकि नासा के अभियान दल ने एक रंग-बिरंगे स्वागत समारोह का आयोजन किया जिसमें ऐक्सीअम-4 कमांडर पेगी व्हिटसन ने शुक्ला को अंतरिक्ष यात्री पिन (एक छोटा लैपल पिन) और कक्षीय उड़ान संख्या सौंपी। उन्हें अंतरिक्ष में उड़ान भरने की उपलब्धि के लिए एक सुनहरा पिन भी दिया गया।
दूसरी तरफ अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंचने वाले पहले भारतीय शुक्ला को कक्षीय उड़ान संख्या 634 मिली (जिसका अर्थ है कि वह अंतरिक्ष यान में पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाने वाले 634वें व्यक्ति थे)। पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा की संख्या 138 थी और कल्पना चावला की 366 थी।
अब ड्रैगन में सामान बाहर निकालने के साथ न के बराबर गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में रहने का सिलसिला शुरू हुआ। शुक्ला ने आईएसएस टीम के साथ गाजर का हलवा, मूंग दाल का हलवा और आम रस जैसी मिठाइयां साझा कीं। उन्होंने उस दिन का बाकी समय ड्रैगन में अपने शयनकक्ष में व्यवस्थित होने में बिताया
जबकि अन्य सदस्यों के लिए कोलंबस और जापानी मॉड्यूल जेईएम जैसे अलग-अलग स्थान तय थे।
शुक्ला की टीम के लिए स्टेशन पर तीसरा दिन अपना जीवन अनुकूल बनाने और एक्सपेडिशन 73 के लोगों के साथ घुलने-मिलने में निकल गया। शुक्ला ने हैंडओवर प्रोटोकॉल और आपातकालीन प्रक्रियाओं पर प्रशिक्षण पूरा किया। टीम ने ड्रैगन और अंतरिक्ष स्टेशन के बीच उच्च प्राथमिकता वाले सामान और आपातकालीन उपकरण भी स्थानांतरित किए जिनमें पेलोड, आवश्यक आपूर्ति और सुरक्षा उपकरण शामिल हैं। इसके बाद उन्होंने अनुसंधान अध्ययनों के लिए खुद को तैयार किया जिसमें भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित सात सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण प्रयोग शामिल थे। मिशन में कुल 60 प्रयोग किए जाएंगे।
शुक्ला ने चौथे दिन की शुरुआत लाइफ साइंसेज ग्लोवबॉक्स (एलएसजी) में मायोजेनेसिस प्रयोग पर काम करने के साथ की। इस अध्ययन का उद्देश्य अंतरिक्ष में कंकाल पेशी के क्षरण के पीछे जैविक कारणों की पहचान करना है। यह अंतरिक्ष यात्रियों के लिए एक बड़ी चुनौती होती है। इन तंत्रों की पहचान कर शोधकर्ताओं को लक्षित उपचार विकसित होने की उम्मीद है जिससे न केवल अंतरिक्ष यात्रियों की रक्षा हो सकती है बल्कि पृथ्वी पर मांसपेशी-क्षयकारी रोग पीड़ित लोगों की भी सहायता कर सकते हैं। शुक्ला ने इसके बाद पीएम मोदी के साथ बातचीत की। इस बातचीत ने राकेश शर्मा और तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के बीच ऐतिहासिक बातचीत की याद ताजा कर दी।
आईएसएस पर शुक्ला के पहुंचने के तीसरे दिन और इस अभियान के पांचवे दिन मॉड्यूल क्युपोला से कुछ फोटो लिए गए। शुक्ला ने अंतरिक्ष माइक्रोएल्गी प्रयोग पर ध्यान केंद्रित करते हुए नमूना बैग तैनात किया और शैवाल की किस्मों की तस्वीरें कैद कीं। ये छोटे जीव भविष्य में अंतरिक्ष अन्वेषण में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं जो लंबी अवधि के अभियानों के लिए एक स्थायी, पोषक तत्वों से भरपूर भोजन स्रोत प्रदान करते हैं। इसके बाद न्यूरो मोशन वीआर परियोजना पर काम शुरू हुआ जिसमें अंतरिक्ष यात्री वीआर हेडसेट पहनते हैं और ध्यान-आधारित कार्य करते हैं। जैव चिकित्सा प्रयोगों से लेकर उन्नत प्रौद्योगिकी के प्रदर्शन तक इस अभियान के सदस्य सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहे हैं।
छठे दिन (सोमवार) शुक्ला ने मायोजेनेसिस अध्ययन के लिए एलएसजी में कमान भी संभाली। कंकाल पेशी की शिथिलता के पीछे के आणविक मार्गों की पहचान कर यह शोध लंबी अवधि की अंतरिक्ष यात्रा के दौरान मांसपेशियों में सिकुड़न रोकने के लिए लक्षित उपचार में अहम भूमिका निभा सकता है।