डोनाल्ड ट्रंप के साथ सर्जियो गोर
उन्हें व्यापार या आर्थिक प्रबंधन का कोई अनुभव नहीं है। उनका प्रकाशन कारोबार भी चुनिंदा पाठकों तक ही सीमित था। उनकी भू-राजनीति में भी दिलचस्पी नहीं है और न ही उन्हें दक्षिण एशिया या भारत की कोई विशेष समझ है। यह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि भारत में अमेरिका के नए राजदूत सर्जियो गोरोकोव्सकी या सर्जियो गोर हैं। तो आखिर गोर में ऐसी क्या खूबी है जिस वजह से उन्हें भारत में अमेरिका का नया राजदूत नियुक्त किया गया है? वह राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के भरोसेमंद हैं। ट्रंप उनकी बातों को खास तवज्जो देते हैं। ट्रंप का करीबी होने के कारण भारत के लिहाज से उनका भी महत्त्व भी बढ़ जाता है। गोर भारत के लिए चुनौती और अवसर दोनों साबित हो सकते हैं।
अमेरिका में उपराष्ट्रपति जेडी वैंस से लेकर विदेश मंत्री मार्को रूबियो, एफबीआई निदेशक काश पटेल और अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट सभी ने गोर को भारत में राजदूत नियुक्त होने पर सार्वजनिक रूप से बधाई दी। इसकी भी एक वजह है। गोर ही वह व्यक्ति हैं जिन्होंने वैंस से लेकर बेसेंट तक सभी की नियुक्तियों से पहले उनकी पृष्ठभूमि एवं पिछली गतिविधियों की पड़ताल की थी। गोर की तरफ से हरी झंडी मिलने के बाद ही ट्रंप ने इन लोगों को अपने प्रशासन का हिस्सा बनाया। अमेरिकी राष्ट्रपति भवन व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति कार्मिक कार्यालय के निदेशक के रूप में गोर पर अनुसंधान, पृष्ठभूमि की जांच, सुरक्षा मंजूरी और संभावित संघीय नियुक्तियों के संबंध में सुझाव देने की जिम्मेदारी थी। वह ही तय करते थे कि किन्हें नियुक्त किया जाना चाहिए और किन्हें नहीं।
ट्रंप का पहला कार्यकाल अधिकारियों के फेरबदल, उनकी नियुक्ति एवं बर्खास्तगी के लिए अधिक चर्चा में रहा। उनके पूर्व कार्यवाहक चीफ ऑफ स्टाफ मिक मुलवेनी ने 2020 में सीएनएन से कहा था, ‘मैं जिस एक बात के लिए राष्ट्रपति ट्रंप की आलोचना करूंगा, वह यह है कि उन्होंने सक्षम लोगों को नहीं रखा।’ मुलवेनी का यह बयान काफी वजनदार था। उन्होंने कहा,‘उन्हें सरकार चलाने का कोई अनुभव नहीं था और वह नहीं जानते थे कि एक ऐसी टीम कैसे बनाई जाए जो उनके साथ अच्छी तरह काम कर सके।’ यह बात साफ हो गई थी कि ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में महत्त्वपूर्ण पदों पर लोगों को नियुक्त करने में जो गलतियां की थीं, वह उन्हें दोहराना नहीं चाहते थे। गोर लोगों की नियुक्तियां करने से पहले उनकी पृष्ठभूमि की गहन जांच-पड़ताल करते थे। इस कारण से नए ट्रंप प्रशासन में सभी लोग उनसे डरने लगे और इससे उनका रुतबा भी बढ़ता गया। गोर ने कम से कम जिन 4000 लोगों को केंद्रीय ( संघीय) नौकरियों के लिए नियुक्त किया था, वे ‘मागा’ रिपब्लिकन पार्टी (पारंपरिक रिपब्लिकन के विपरीत) और व्यक्तिगत रूप से उनके प्रति अपनी वफादारी रखते हैं।
ईलॉन मस्क ने एक बार गोर को ‘सांप’ तक कह डाला था। हुआ यह कि राष्ट्रपति ट्रंप ने नासा के प्रशासक की नियुक्ति के विषय पर मस्क की सलाह दरकिनार करते हुए गोर का सुझाव मान लिया। यह बात मस्क को खटक गई। व्यवसायी और उद्यमी जेरेड इसाकमैन को नासा का प्रशासक बनाए जाने का प्रस्ताव आया था। मगर नियुक्ति से पूर्व ऐन मौके पर ट्रंप ने अपना मन बदल लिया। ट्रंप ने कहा, ‘मैं जेरेड इसाकमैन को नासा प्रशासक के रूप में नामित करने का प्रस्ताव वापस ले रहा हूं।’ तो क्या इसाकमैन के पूर्व के संबंधों ने उन्हें नासा प्रशासक बनने से रोक दिया? गोर को पता चला कि इसाकमैन ने डेमोक्रेटिक पार्टी के लोगों को राजनीतिक योगदान दिया था। गोर ने इसकी सूचना राष्ट्रपति को दे दी। बेशक, मस्क के साथ इसाकमैन की निकटता और संभावित भविष्य में हितों के टकराव भी कारण रहे होंगे।
आखिर गोर सत्ता के गलियारों में इतने महत्त्वपूर्ण मुकाम पर कैसे पहुंचे? 2008 में गोर की उम्र 20 वर्ष से कुछ अधिक रही होगी जब वह राष्ट्रपति बनने के सीनेटर जॉन मैक्केन के अभियान के साथ सक्रियता से जुड़ गए। वह स्टीव किंग जैसे रिपब्लिकन के प्रवक्ता बने, जो ट्रंप के शुरुआती समर्थकों में से एक थे और आव्रजन और राष्ट्रीय सुरक्षा पर मजबूत विचार रखते थे। गोर मिशेल बाचमैन के भी करीब रहे। बाचमैन के बारे में कई लोगों का मानना है कि वह वास्तव में ट्रंप की ‘मागा’ राजनीति के अग्रदूत और स्रोत थे। बाद में गोर रैंड पॉल के साथ जुड़ गए। रैंड एक नेत्र रोग विशेषज्ञ, केंटकी से सीनेटर एवं ट्रंप के समर्थक थे। गोर उनके संचार निदेशक बने। उन्होंने पॉल के धन जुटाने के अभियान ‘रैंडपीएसी’ का संचालन किया और बाद में ‘राइट फॉर अमेरिका’ के बोर्ड सदस्य बन गए। ‘राइट फॉर अमेरिका’ ने ट्रंप अभियान के लिए 7 करोड़ अमरीकी डालर से अधिक रकम जुटाई।
वर्ष 2020 में गोर ‘ट्रंप विक्ट्री फाइनैंस कमेटी’ के प्रमुख (चीफ ऑफ स्टाफ) बन गए। उन्होंने राजनीतिक अभियानों के लिए धन जुटाने की अपनी काबिलियत का भरपूर लाभ उठाया। तकरीबन उसी समय उन्होंने ट्रंप की पुस्तकें प्रकाशित करने की जिम्मेदारी ले ली। ‘द आर्ट ऑफ द डील’ अमेरिकी राष्ट्रपति की सोच की व्यापक समझ प्रदान करता है।
अमेरिका में भारत-अमेरिका संबंधों पर बारीकी से नजर रखने वाले अधिकांश भारतीयों का मानना है कि गोर की नियुक्ति का मतलब है कि वीजा आव्रजन और अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों पर अब नए सिरे से ध्यान दिया जाएगा। उन्हें यह भी लग रहा है कि वर्तमान में दोनों देशों के बीच मतभेद का कारण बने व्यापार से जुड़े विषयों को एक अलग दृष्टिकोण से देखना होगा। गोर को यह बात भी अच्छी तरह समझानी होगी कि भारत के लिए जीएमओ इतना संवेदनशील मुद्दा क्यों है। नई दिल्ली को भी इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या धनाढ्य डेयरी सहकारी समितियों को सब्सिडी एवं संरक्षण देकर भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों को दांव पर लगाया जा सकता है? मूल बात यह है कि भारत को सर्जियो गोर के साथ पूर्व के सभी अमेरिकी राजदूतों से अलग तरीके से व्यवहार करना होगा। वह न केवल दक्षिण एशिया ब्यूरो के पहले विशेष दूत हैं बल्कि भारत में राजदूत भी हैं। वह इस क्षेत्र को अलग नजरिये से देखेंगे, संभवतः भारत के साथ अन्य देशों के संबंधों को टटोलेंगे।