भारत का डिफेंस सेक्टर अब आत्मनिर्भरता की नई ऊंचाइयों को छू रहा है। सरकार के मुताबिक, अब देश के 65% रक्षा उपकरण घरेलू स्तर पर ही बनाए जा रहे हैं। जबकि पहले देश 65-70% रक्षा उपकरणों को आयात करता था। ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत देश का रक्षा उत्पादन अभूतपूर्व रफ्तार से बढ़ा है और वित्त वर्ष 2023-24 में यह पहली बार ₹1.27 लाख करोड़ के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। रक्षा मंत्रालय द्वारा शेयर की गई एक फैक्ट शीट में बताया गया कि भारत अब केवल अपनी ही जरूरतें पूरी नहीं कर रहा, बल्कि दूसरे देशों के लिए भी रक्षा उपकरण बना रहा है। फैक्ट शीट में बताया गया है कि भारत के विविध निर्यात साजो-सामान में बुलेटप्रूफ जैकेट, डोर्नियर (डीओ-228) विमान, चेतक हेलीकॉप्टर, तेज इंटरसेप्टर नौकाएं और हल्के टॉरपीडो शामिल हैं। मंत्रालय ने कहा, ‘‘सबसे दिलचस्प बात यह है कि अब ‘मेड इन बिहार’ जूते रूसी सेना की वर्दी का हिस्सा बन चुके हैं—यह केवल भारत की निर्माण क्षमताओं का प्रमाण नहीं, बल्कि वैश्विक मंच पर उसकी बढ़ती स्वीकार्यता का भी संकेत है।’’
फैक्ट शीट में कहा गया, ‘‘एक समय विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर रहने वाला देश अब स्वदेशी विनिर्माण में एक उभरती हुई शक्ति के रूप में खड़ा है, जो घरेलू क्षमताओं के माध्यम से अपनी सैन्य शक्ति को आकार दे रहा है। यह बदलाव आत्मनिर्भरता के लिए एक मजबूत प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह सुनिश्चित करता है कि भारत न केवल अपनी सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करे बल्कि एक मजबूत रक्षा उद्योग भी बनाए जो आर्थिक विकास में योगदान दे।’’ यह फैक्ट शीट 24 मार्च को जारी की गई जिसमें कहा गया है कि भारत ने 2029 तक रक्षा उत्पादन में 3 लाख करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा है, जो वैश्विक रक्षा विनिर्माण केंद्र के रूप में इसकी स्थिति को मजबूत करता है।
भारत की रक्षा उत्पादन क्षमता में आई जबरदस्त तेजी के पीछे ‘मेक इन इंडिया’ अभियान की भूमिका अहम रही है। अधिकारियों के अनुसार, इस पहल ने भारत को केवल एक उपभोक्ता नहीं, बल्कि एक निर्माता राष्ट्र के रूप में उभारा है। भारत ने धनुष तोप प्रणाली, एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम, मुख्य युद्धक टैंक अर्जुन, हल्के लड़ाकू विमान तेजस, अत्याधुनिक हल्के हेलीकॉप्टर, आकाश मिसाइल प्रणाली, हथियारों का पता लगाने वाली रडार सहित उन्नत सैन्य प्लेटफॉर्म का विकास निर्धारित किया है, साथ ही विध्वंसक, स्वदेशी विमानवाहक, पनडुब्बी और अपतटीय गश्ती पोतों जैसी नौसेना संपत्ति भी विकसित की है।
विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए सितंबर 2020 में रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को उदार बनाया गया था, जिससे स्वचालित मार्ग से 74% तक और सरकारी मार्ग से 74% से ज्यादा FDI की अनुमति मिली। अधिकारियों ने कहा कि अप्रैल 2000 से रक्षा उद्योगों में कुल FDI 5,516.16 करोड़ रुपये है।
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रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि ‘मेक इन इंडिया’ पहल को रणनीतिक नीतियों का समर्थन मिला है, जिससे इसकी रफ्तार तेज हुई है। इन नीतियों ने निजी कंपनियों की भागीदारी, नई तकनीकों के विकास और आधुनिक सैन्य उपकरणों के निर्माण को बढ़ावा दिया है। मंत्रालय के अनुसार, 2013-14 में 2.53 लाख करोड़ रुपये से 2025-26 में 6.81 लाख करोड़ रुपये तक रक्षा बजट में वृद्धि, देश के अपने सैन्य बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के दृढ़ संकल्प को रेखांकित करती है। इसने कहा कि आत्मनिर्भरता और आधुनिकीकरण के लिए यह प्रतिबद्धता हाल ही में सुरक्षा मामलों पर कैबिनेट समिति द्वारा उन्नत ‘टोड आर्टिलरी गन सिस्टम’ (एटीएजीएस) की खरीद के लिए दी गई मंजूरी में परिलक्षित होती है, जो सेना की मारक क्षमता को बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण कदम है।
मंत्रालय ने कहा कि देश में निर्मित आधुनिक युद्धपोतों, लड़ाकू विमानों, तोप प्रणाली और अत्याधुनिक हथियारों के साथ, भारत अब वैश्विक रक्षा विनिर्माण परिदृश्य में एक प्रमुख खिलाड़ी है। फैक्ट शीट के अनुसार, रक्षा उपकरणों का 65 फीसदी अब घरेलू स्तर पर निर्मित किया जाता है, जो पहले के 65-70 फीसदी आयात निर्भरता से एक महत्वपूर्ण बदलाव है। यह रक्षा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता को दर्शाता है।
(PTI के इनपुट के साथ)