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भारत में कोराना महामारी के दौरान भी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission) ने हर तीसरे दिन पुलिस फायरिंग या एनकाउंटर में मौत का मामला दर्ज किया। हमलावरों ने 16 अप्रैल को संसद के पूर्व सदस्य अतीक अहमद की गोली मारकर हत्या कर दी, जिससे ‘गैर-न्यायिक हत्याओं’ पर बहस छिड़ गई। साल 2022 के राज्यसभा में मिले जवाब के वार्षिक डेटा के मुताबिक, 2018-19 के बीच एक साल में ही इस तरह के 179 मामले दर्ज किए गए।
विश्लेषण पुलिस फायरिंग या एनकाउंटर में हुई मौत पर आधारित है। हर दूसरे दिन इस तरह का एक मामला सामने आया है। कोरना महामारी से जुड़े प्रतिबंधों के बीच ‘गैर-न्यायिक हत्याओं’ की संख्या 2019 – 20 में घटकर 135 और 2020-21 में 113 हो गई। फिर भी हर तीसरे दिन एक मामला सामने आया। चार्ट 1 से पता चलता है कि साल 2021-22 में ‘गैर-न्यायिक हत्याओं’ के मामले फिर से बढ़ने लगे थे।
महामारी के दौरान इस तरह के मामलों के निपटारन में तेज गिरावट देखी गई। NHRC द्वारा साल 2017-18 में जितने मामले हल किए गए, उसकी तुलना में लंबित पड़े मामलों का अनुपात 86.4 फीसदी था। साल 2021-22 के आंकड़ों के अनुसार मामलों के निपटारन की दर 14.7 फीसदी थी।
मार्च 2022 के आंकड़ों के मुताबिक, रजिस्टर्ड केसों की तुलना में लंबित पड़े मामलों का अनुपात साल 2017-18 के 13.6 फीसदी से छलांग लगाते हुए 2021-22 में 85.3 फीसदी पर पहुंच गया। (देखें चार्ट 2) इस समय लंबित पड़े शिकायतों की संख्या 139 है। NHRC के मार्च 2023 के बुलेटिन के अनुसार, 317 मामले लंबित हैं।
राज्यसभा के जवाब के मुताबिक, NHRC ने कई मामलों में मुआवजा देने की सिफारिश की है। 1 अप्रैल 2016 से 10 मार्च 2022 की अवधि के दौरान पुलिस एनकाउंटर में मौत के 107 मामलों में, NHRC ने 7,16,50,000 रुपये के मुआवजे की सिफारिश की है।
ग्रेन्युलर डेटा बताते हैं कि कुछ जगहों पर महामारी शुरू होने के बाद दूसरों की तुलना में बड़ी बढ़ोत्तरी देखी गई है। असम में पुलिस फायरिंग और एनकाउंटर में मौत के मामले 2018-19 में सात से बढ़कर 2021-22 में 24 हो गए। 2018-19 में शून्य (0) से 2021-22 में जम्मू और कश्मीर में 39 मामले दर्ज किए गए। 2018-19 में उत्तर प्रदेश में 24 मौतें दर्ज की गई थीं। यह 2021-22 में घटकर नौ हो गया। (देखें चार्ट 3)