BS
नवीनतम वार्षिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के विश्लेषण से पता चलता है कि कर्नाटक में हर चार में से एक ही कामगार को नियमित वेतन मिलता है। यह भारत के राज्य औद्योगिक राज्यों में सबसे कम वेतन है। गुजरात के 31.6 फीसदी कामगारों को नियमित वेतन मिलता है। इसके बाद तमिलनाडु का स्थान है जहां 30.3 फीसदी कामगार नियमित वेतन पाते हैं वहीं महाराष्ट्र में 29.4 फीसदी कामगारों को ही नियमित मजदूरी मिल पाती है। हालांकि, कर्नाटक में महज 25.7 फीसदी कामगार ही नियमित वेतन पर काम कर रहे हैं।
PLFS के आंकड़ों से पता चलता है राष्ट्रीय स्तर पर यह दर 21.5 फीसदी है। रोजगार कर्नाटक चुनाव का अहम मुद्दा बन गया है। यहां 224 विधानसभा सीटों के लिए 10 मई को चुनाव होने हैं और 13 मई को इसके नतीजे घोषित आएंगे।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में दावा किया है कि उसने पिछले चार वर्षों में 55 लाख नौकरियों के मौके तैयार किए हैं और साल 2030 तक उसका लक्ष्य 75 लाख प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नौकरियों के मौके बनाने का है। कांग्रेस ने वादा किया है कि वह कर्नाटक के स्थानीय लोगों को सरकारी और निजी क्षेत्रों की नौकरियों में 80 फीसदी आरक्षण देगी।
कर्नाटक में केवल 26.8 फीसदी पुरुष कामगारों को ही नियमित वेतन मिलता है। जबकि, गुजरात में नियमित वेतन पाने वाले पुरुष कामगारों की संख्या 37.4 फीसदी है। तमिलनाडु में 33.6 फीसदी और महाराष्ट्र में 32.6 फीसदी पुरुष नियमित वेतन पाते हैं।
ग्रामीण इलाकों में नियमित वेतन पाने वाले कामगारों की संख्या महज 15.8 फीसदी है। जबकि गुजरात में यही आंकड़ा 23.5 फीसदी है। इसके बाद तमिलनाडु का स्थान है, जहां 22.1 फीसदी ग्रामीण पुरुषों को नियमित वेतन मिलता है और महाराष्ट्र के 16.3 फीसदी ग्रामीण पुरुष नियमित वेतन पर काम कर रहे हैं।
इसी तरह, शहरी इलाकों में आधे से भी कम यानी 47.6 फीसदी पुरुषों को ही नियमित वेतन मिलता है। जबकि गुजरात में नियमित वेतन पाने वाले 55.8 फीसदी पुरुष हैं। महाराष्ट्र और तमिलनाडु में क्रमशः 54.8 फीसदी और 47.8 फीसदी पुरुषों को नियमति वेतन मिलता है।
हालांकि, चार औद्योगिक राज्यों में से कर्नाटक की महिला कामगारों की स्थिति थोड़ी बेहतर है। यहां शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों की 23 महिलाएं नियमित वेतन पाती हैं। जबकि महाराष्ट्र में इससे थोड़ा कम 22.6 फीसदी और गुजरात में 17.2 फीसदी महिलाओं को नियमित वेतन मिलता है। सिर्फ तमिलनाडु इकलौता राज्य है जहां 24.5 फीसदी महिलाओं को नियमित वेतन मिलता है।
नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज (NIAS) के प्रोफेसर और डीन नरेंद्र पाणी कहते हैं कि कर्नाटक में निम्न स्तर का वेतन, रोजगार के मुख्य माध्यम के तौर पर राज्य में सूचना प्रौद्योगिकी (IT) विकास पर दिया जाने वाला जोर और विनिर्माण क्षेत्र की धीमी वृद्धि के कारण है।
Also Read: Karnataka Election घोषणापत्र: कांग्रेस, बीजेपी ने खोले अपने-अपने पत्ते
उन्होंने कहा, ‘आमतौर पर, औद्योगिक राज्यों में नियमित वेतनभोगी नौकरियों का अनुपात अधिक होता है लेकिन कर्नाटक में अधिकांश विकास बेंगलूरु तक ही सीमित है। IT क्षेत्र में अधिक कामगारों की जरूरत नहीं होती है और ज्यादातर काम अल्पकालिक अनुबंधों के माध्यम से किए जाते हैं, जिससे नियमित वेतन की कोई गुंजाइश नहीं बचती है। कर्नाटक में विनिर्माण की रफ्तार जोर नहीं पकड़ सकी है और कई लोग कस्बों और गांवों की असंगठित अर्थव्यवस्था में रोजगार पाते हैं।’
इसके अलावा, कर्नाटक में श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) भी चार राज्यों के कामकाजी आयु वर्ग (15-59 वर्ष की आयु) में सबसे कम है। यह एक साल पहले के 61.4 फीसदी से घटकर 2021-22 में 60.1 फीसदी हो गया। ग्रामीण इलाकों में यह 64.7 फीसदी से गिरकर 63.1 फीसदी हो गया जबकि शहरी इलाकों में 56.1 फीसदी गिरकर 55.1 फीसदी हो गया। महिला कामगारों की भागीदारी खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में (43.6 फीसदी से 40 फीसदी) इस गिरावट का मूल कारण है।