उपभोक्ता आधारित उत्सर्जन के स्थान पर उत्पादन आधारित उत्सर्जन बढ़ने के कारण भारत का कार्बन उत्सर्जन बीते 10 वर्षों में बढ़ा। आवर वर्ल्ड इन डाटा ने आंकडों का विश्लेषण करके बताया कि भारत का उत्पादन आधारित कार्बन उत्सर्जन 2009 में 1.6 अरब टन था जो 2009 में 63 फीसदी बढ़कर 2.6 अरब टन हो गया।
हालांकि इस आलोच्य अवधि में उपभोक्ता आधारित उत्सर्जन 1.5 अरब टन से 61.7 फीसद बढ़कर 2.5 अरब टन हो गया। इससे पता चलता है कि भारत में अन्य देशों के लिए उत्पादन बनाने के लिए कार्बन का उत्सर्जन बढ़ा। लिहाजा घरेलू स्तर पर जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए पूंजी के बदले अनिवार्य रूप से प्रदूषण का आयात हुआ।
संयुक्त राष्ट्र के प्रदूषण नियंत्रित करने के सोमवार को किए गए आह्वान के कारण भारत में इस तरह प्रदूषण बढ़ना ध्यान खिंचता है। जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल ने जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए वैश्विक उत्सर्जन में कटौती की मांग की है। इसी क्रम में यूरोपियन यूनियन ने प्रदूषण करने वाले उत्पादों पर मंगलवार को कार्बन शुल्क थोप दिया है।
उधर विकसित देशों में उपभोक्ता आधारित उत्सर्जन अधिक है। इसका अर्थ यह है कि वे घरेलू उत्पाद उत्सर्जन के आयात या निर्यात के प्रतिशत के संदर्भ में अपने उत्पादित सामान से अधिक सामान का उपभोग करते हैं। यह यूके में 41 फीसदी, जर्मनी में 19.2 फीसदी और जापान में 13 फीसदी है।
हालांकि भारत में यह नकारात्मक 6.1 फीसदी है। यह इंगित करता है कि उत्पादन उत्सर्जन से कम भारत में खपत है। इसी तरह के नकारात्मक आंकडे चीन (नकारात्मक 7.3 फीसदी) और रूस (नकारात्मक 18.5 फीसदी है)। रूस के आंकड़े बताते हैं कि वे ऊर्जा से जुड़े उत्पादों का अधिक निर्यात करता है।