Representational Image
केंद्र सरकार 1,500 करोड़ रुपये (169 मिलियन डॉलर) से ज्यादा के परमाणु हादसे के मुआवजे के लिए न्यूक्लियर लाइबिलिटी फंड (Nuclear Liability Fund) बनाने की तैयारी बना रही है। यह फंड प्लांट ऑपरेटरों की तय सीमा से ऊपर के मुआवजे को कवर करेगा। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, इस कदम का मकसद ग्लोबल सप्लायर कंपनियों और प्राइवेट फर्मों की रिस्क-शेयरिंग से जुड़ी चिंताओं को दूर करना है। यह पहल परमाणु उद्योग में लंबे समय से अटके निजी और विदेशी निवेश को खोलने का रास्ता बना सकती है।
नए परमाणु ऊर्जा विधेयक के अंतर्गत प्रस्तावित यह वैधानिक फंड मौजूदा एड-हॉक भुगतान प्रणाली की जगह लेगा और ऑपरेटर की तय सीमा से ऊपर सरकार की मुआवजा देने की क्षमता को मजबूत करेगा।
भारत का लक्ष्य 2047 तक अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को 12 गुना बढ़ाने का है। इसके लिए मोदी सरकार नियमों में ढील दे रही है ताकि दशकों पुरानी सरकारी एकाधिकार व्यवस्था खत्म हो और निजी भागीदारी के साथ-साथ विदेशी टेक्नोलॉजी सप्लायर कंपनियों को आकर्षित किया जा सके।
सूत्रों के अनुसार, टाटा पावर, अदाणी पावर और रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसे बड़े कॉर्पोरेट समूह निवेश की तैयारी कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार नया कानून तैयार करने के अंतिम चरण में है और इसे संसद के शीतकालीन सत्र (दिसंबर) में पेश किया जाएगा।
इस विधेयक का मकसद परमाणु ऊर्जा उत्पादन और यूरेनियम खनन जैसे क्षेत्रों में निजी कंपनियों को लाना है, जहां विदेशी कंपनियां न्यूक्लियर पावर प्लांट्स में माइनारिटी हिस्सेदारी ले सकेंगी।
नए कानून में सप्लायर्स पर असीमित जिम्मेदारी (Unlimited Liability) का प्रावधान हटाने की भी तैयारी है। इसके तहत फंड एक स्पष्ट कानूनी तंत्र देगा, जिससे ऑपरेटर की तय सीमा से ज्यादा मुआवजा दिया जा सकेगा।
अभी भारत परमाणु हादसों से बीमा कवरेज के लिए 2015 में बनाए गए न्यूक्लियर इंश्योरेंस पूल पर निर्भर है, जो कानून का हिस्सा नहीं है। हालांकि इसका मकसद ऑपरेटर और सप्लायर दोनों की जिम्मेदारी को कवर करना था, लेकिन यह फ्रांस और अमेरिका जैसे देशों की विदेशी कंपनियों की सावधानियों को दूर करने में नाकाम रहा।
नया विधेयक आने के बाद 1962 का परमाणु ऊर्जा अधिनियम और 2010 का न्यूक्लियर डैमेज सिविल लाइबिलिटी एक्ट खत्म हो जाएंगे।