वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि हमें चुनावी बॉन्ड योजना से मिले अनुभवों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। वित्त मंत्री ने कहा कि पूरे तंत्र में पारदर्शिता लाने के लिए इस योजना से कई सबक लिए जा सकते हैं। ‘इंडिया टुडे कॉन्क्लेव’ कार्यक्रम में सीतारमण ने कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना एक ऐसी व्यवस्था में लाई गई जो सुदृढ़ नहीं थी और यह योजना ऐसे तंत्र से आई थी जिसमें कई खामियां थीं।
वित्त मंत्री ने कहा, ‘हमारा प्रयास यह होना चाहिए कि हम इस पूरे मामले से कुछ सीख सकें। मैं यह नहीं कह रही कि कोई नया कानून बनेगा मगर पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए हमें कुछ उपाय तो जरूर करने होंगे।’
उन्होंने कहा कि नुकसान में चलने वाली या मुखौटा कंपनियों को चुनावी बॉन्ड के जरिये चंदा नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा विषय है जिस पर विचार करने की जरूरत है।
सीतारमण ने कहा, ‘अगर कंपनियां चंदा देना चाहती हैं तो वे दें मगर मगर वे किस योजना या प्रावधान के तहत ऐसा करेंगी इस पर तो अवश्य विचार किया जाना चाहिए।’
वर्ष 2017 में वित्त अधिनियम के अंतर्गत कंपनी कानून की धारा 182 में संशोधन किया गया था। इस संशोधन के जरिये किसी कंपनी द्वारा दान दी जाने वाली रकम पर तय सीमा समाप्त कर दी गई थी। इसके साथ ही यह खुलासा करने की जरूरत भी नहीं रह गई थी कि किस राजनीतिक दल को चंदा दिया गया था। इस संशोधन से पहले किसी एक वित्त वर्ष में कोई कंपनी एक निश्चित रकम ही चंदा दे सकती थी और यह पिछले तीन वर्षों में संबंधित कंपनी के औसत शद्ध मुनाफे का 7.5 प्रतिशत के स्तर पर सुनिश्चित की गई थी।
उच्चतम न्यायालय ने चुनावी बॉन्ड मामले में दिए अपने आदेश में कहा था कि 2017 में कंपनी अधिनियम की धारा 182 में किया गया संशोधन संविधान सम्मत नहीं था। चुनावी बॉन्ड खरीदने वाली कंपनियों पर जांच एजेंसियों का शिकंजा कसने के विषय पर वित्त मंत्री ने कहा कि यह नहीं समझा जाना चाहिए कि जांच का सामना कर रही कंपनियों ने तब दान दिया जब उनके कारोबारी व्यवहार शक के दायरे में आ गए।
वित्त मंत्री ने कहा, ‘ इससे कोई फर्क नहीं पड़ा कि उन्होंने रकम दान में दी या नहीं। उनके खिलाफ जांच नहीं रोकी गई।’
सीतारमण ने कहा कि सुधार कार्यक्रम आगे बढ़ाने के लिए केंद्र, राज्यों, शहरी एवं ग्रामीण निकायों के बीच बेहतर समन्वय होना चाहिए। वित्त मंत्री ने कहा कि सुधार का फायदा समाज के ऊपर से लेकर निचले तबके सभी तक पहुंचना चाहिए।
आभासी मुद्राओं (क्रिप्टोकरेंसी) पर वित्त मंत्री ने कहा कि ये कभी मुद्राएं नहीं बन सकतीं और अब तक ये भारत में नियमन के दायरे में नहीं आई हैं।
उन्होंने कहा, ‘अगर एक देश किसी मुद्रा पर कानून बनाता है मगर दूसरा देश ऐसा नहीं करता है तो इससे रकम की हेराफेरी और अनुचित कार्यों के लिए ऐसी मुद्राओं का इस्तेमाल होने लगता है। इसे देखते हुए जी-20 बैठक में क्रिप्टोकरेंसी पर चर्चा कर हमने इस संबंध में एक ढांचा तैयार करने का प्रस्ताव दिया। हमारे प्रस्ताव को समर्थन मिला है और मुझे पूरी भरोसा है कि कोई व्यवस्था जल्द तैयार हो जाएगी।’