Dussehra 2023: बुराई का प्रतीक रावण यूं तो लंका का राजा था मगर सितंबर-अक्टूबर में उसका राज दिल्ली में होता है। पश्चिमी दिल्ली के टैगोर गार्डन और सुभाष नगर के बीच संकरा इलाका तातारपुर पड़ता है, जहां हर साल दशहरे से पहले रावण का दरबार सज जाता है और चारों ओर रावण, कुंभकर्ण तथा मेघनाद ही नजर आते हैं। तातारपुर रावण के पुतलों के लिए मशहूर है और उसे एशिया में इस तरह का सबसे बड़ा बाजार माना जाता है। तातारपुर में बने ये पुतले दिल्ली में ही नहीं उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और कई बार तो विदेश तक जाते हैं।
कोरोना महामारी और लॉकडाउन ने 2020 और 2021 में यहां के कारीगरों की रोजी-रोटी एक तरह से छीन ही ली थी मगर इस साल एक बार फिर 10 सिर और बड़ी-बड़ी मूछों वाला राणव तातारपुर गांव में खड़ा हो रहा है। कारीगर भी खुश हैं क्योंकि इस साल रावण 500 से 600 रुपये प्रति फुट के हिसाब से बिक रहा है। पिछले साल पुतला 400-450 रुपये प्रति फुट पर बिका था।
30 साल से रावण और उसके परिवार के पुतले बना रहे विनोद कुमार बताते हैं कि इस साल रावण की अच्छी मांग है। अब कोरोना का डर पूरी तरह खत्म हो गया है और ज्यादा से ज्यादा जगहों पर रामलीला तथा मेले हो रहे हैं। विनोद कहते हैं, ‘आम तौर पर हम दशहरे से महीना भर पहले ही काम शुरू करते थे मगर इस बार मांग इतनी ज्यादा है कि डेढ़ महीने पहले ही पुतले बनने शुरू हो गए। एक सीजन में हम 50 से 60 रावण तैयार करते थे मगर इस बार 70-80 पुतले तैयार हो रहे हैं। इनमें से 40 पुतलों के ठेके मिल चुके हैं। बाकी के ऑर्डर भी दो-तीन दिन में मिलने की उम्मीद है। कुल मिलाकर यह सीजन अच्छा जाएगा।’ बिज़नेस स्टैंडर्ड ने कई कारीगरों से बात की और सभी ने बिक्री अच्छी होने की उम्मीद जताई।
मझोला रावण सुपरहिट
तातारपुर में घूमेंगे तो आपको बड़ी-बड़ी भुजाएं, मुड़े हुए पैर, तंबू जैसे घाघरे, विशाल तलवारें और विचित्र मूंछों वाले छोटे-बड़े चमकीले कागज के चेहरे सड़क के किनारे दिख जाएंगे। उनमें कुछ रंगे होंगे और कुछ रंगने का इंतजार कर रहे हों। इन सभी से अलग-अलग आकार के रावण बनते हैं मगर बाजार में सबसे ज्यादा धूम मझोले कद के रावण की है। 10 साल से रावण बना रहे पुनीत बताते हैं कि इस साल सबसे ज्यादा मांग मझोले कद के रावण की ही है।
सोनीपत से हर साल तातारपुर आने वाले रावण का चेहरा बनाने के उस्ताद अभिषेक शेहरावत इसकी वजह दिल्ली-एनसीआर की हाउसिंग सोसाइटियों को बताते हैं। वह कहते हैं, ‘रावण के पुतलों के 60 से 70 फीसदी ऑर्डर दिल्ली के विभिन्न इलाकों से ही आते हैं और इनमें सोसाइटी या आरडब्ल्यूए के ऑर्डर अधिक होते हैं। इस सोसाइटियों में जगह की कमी है, इसलिए 20 से 25 फुट के मझोले रावण की मांग ज्यादा आती है। बड़े रावण (40-50 फुट) के ऑर्डर पड़ोसी राज्यों से ज्यादा आते हैं।’
पास में ही काम कर रहे कारीगर बबलू ने बताया कि इस बार बच्चों के लिए खास तौर पर छोटे आकार के स्टाइलिश रावण भी बनाए गए हैं। इन छोटे रावणों की मांग भी पहले से ज्यादा है। इनकी कीमत भी कम होती है और बच्चों को ये बहुत पसंद आते हैं।
एक समय था जब पटाखों की आवाज के साथ रावण के चिथड़े उड़ते देख बच्चे रोमांचित हो जाते थे मगर अब यह आनंद दिल्लीवासियों से छिन गया है। प्रदूषण पर काबू रखने के लिए इस साल भी राजधानी में पटाखों की खरीद और बिक्री पर पूरी तरह प्रतिबंध है। पर्यावरण के अनुकूल ग्रीन पटाखे मिल रहे हैं मगर प्रतिबंध का असर रावण की बिक्री पर पड़ा है।
रावण को सजाने वाले पेंटर राजा बताते है कि पटाखों पर रोक से लोगों में रावण दहन का उत्साह कम हो गया है। इससे पुतले बनाने की लागत पर तो कोई फर्क नहीं पड़ा है क्योंकि पहले भी पटाखों का खर्च ग्राहक अपनी जेब से देते थे। कारीगर उन्हें पुतलों में लगा भर देते थे। इस लिहाज से पुतले तैयार करने में पहले से कम मेहनत लग रही है मगर बिक्री पर सीधा असर पड़ा है। एक अन्य कारीगर सुमित कहते हैं कि ग्राहक रावण में ग्रीन पटाखे नहीं लगवा रहे है। पिछले कुछ सालों से प्रतिबंध के कारण रावण की बिक्री 15 से 20 फीसदी घट गई है।
तातारपुर में कारीगरों के चेहरे अच्छी मांग से खिल जरूर गए हैं मगर मुनाफा घटने की टीस भी चेहरे पर साफ नजर आ रही है। करीब 40 साल से रावण बना रहे विजेंद्र कुमार कहते हैं कि रावण को तैयार करने में लगने वाले कच्चे माल (बांस, आटा, पेपर और पेंट आदि) के दाम पिछले 1 साल में ही करीब दोगुने हो गए हैं। इससे रावण बनाने की लागत भी बढ़ गई है मगर पुतले की कीमत में नाम मात्र का इजाफा हुआ था। पिछले साल 400 से 450 रुपये फुट बिकने वाला पुतला इस बार 500 से 600 रुपये फुट पर मिल रहा है।
कारीगर जसवंत सिंह कहते है कि रंगीन पेपर और आटे की कीमत बढ़ने से ही रावण बनाने की लागत लगभग 30 फीसदी तक बढ़ गई है। एक पुतले पर औसतन 1000 से 1500 रुपये का फायदा होता था। मगर ग्राहक ज्यादा कीमत देने को तैयार ही नहीं है। ऐसा ही रहा तो मुनाफा 500-600 रुपये ही रह जाएगा।
राजधानी में मौसम का मिजाज बदलने लगा है। सुबह और शाम को दिल्ली ठंड महसूस करने लगी है। साथ ही बारिश का भी खटका लगा हुआ है। कारीगरों की एक आंख आसमान पर ही टिकी है माने पूरा तातारपुर गांव इंद्रदेव से प्रार्थना कर रहा हो कि कुछ दिन बारिश न करें। दशहरे तक थोड़ी देर भी बारिश हो गई तो कारीगरों की सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा और मुनाफा तो दूर लागत तक नहीं निकलेगी। मौसम विभाग ने अगले 6 दिनों तक दिल्ली में मौसम साफ रहने और तापमान 28 से 31 डिग्री रहने के आसार तो बताए हैं मगर कुदरत किसके वश में है।