भारत

प्रोत्साहन के बावजूद मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में नहीं आ रही तेजी, क्षेत्रीय क्लस्टर पर जोर जरूरी: सुमन बेरी

विनिर्माण क्षेत्र को सक्षम बनाने के लिए एकसमान राष्ट्रीय दृ​ष्टिकोण के बजाय स्थानीय प्रतिस्पर्धा के फायदों पर केंद्रित क्षेत्रीय क्लस्टरों को बढ़ावा देना चाहिए

Published by
हिमांशी भारद्वाज   
Last Updated- October 29, 2025 | 10:54 PM IST

नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी ने आज कहा कि समावेशी विकास के मामले में भारत के मजबूत रिकॉर्ड के बावजूद विनिर्माण क्षेत्र में अभी भी जोरदार तेजी नहीं आ रही है। औद्योगिक विकास अध्ययन संस्थान (आईएसआईडी) द्वारा भारत के औद्योगिक परिवर्तन पर आयोजित एक कार्यक्रम में बेरी ने कहा कि भारत ने बुनियादी ढांचे, नियामकीय सुधार और डिजिटल तथा लॉजिस्टिक नेटवर्क में उल्लेखनीय प्रगति की है। इसने खुद को दुनिया के सबसे गतिशील निवेश गंतव्य में से एक के रूप में स्थापित किया है लेकिन विनिर्माण क्षेत्र को अभी भी अपनी पूरी क्षमता का प्रदर्शन करना बाकी है।

बेरी ने विनिर्माण क्षेत्र को भविष्य में सफल बनाने के लिए एकसमान राष्ट्रीय दृ​ष्टिकोण के बजाय स्थानीय प्रतिस्पर्धात्मक लाभों पर केंद्रित क्षेत्रीय क्लस्टरों को बढ़ावा देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, ‘क्लस्टर और राज्य तथा क्षेत्रीय स्तरों पर प्रतिस्पर्धी औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना महत्त्वपूर्ण है। भारत की औद्योगिक सफलता दिल्ली में नहीं बल्कि हमारे राज्यों और जिलों में हासिल होगी।’

इसके अलावा उन्होंने घरेलू मूल्य श्रृंखला को व्यापक बनाने, आयात निर्भरता को कम करने और ग्रीन हाइड्रोजन, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, सेमीकंडक्टर जैसे उभरते क्षेत्रों में निवेश करने का आह्वान किया।

भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में विनिर्माण की लगातार कम होती हिस्सेदारी के लिए वृहद आ​र्थिक व्याख्या करते हुए बेरी ने सुझाव दिया कि विस्तारित राजकोषीय क्षेत्र और वास्तविक विनिमय दर का दबाव अन्य क्षेत्रों की तुलना में विनिर्माण में प्रतिस्पर्धा को कम कर सकते हैं।

विनिर्माण क्षेत्र की भूमिका पर नीतिगत बहस को स्वीकार करते हुए बेरी ने आगाह किया कि देश को अपने उद्देश्यों के बारे में स्पष्ट होना चाहिए और हस्तक्षेपों की लागतों के प्रति सचेत रहना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘हमें सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करना चाहिए कि हम विनिर्माण को सहारा क्यों देना चाहते हैं। इसके साथ ​ही उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाओं और सब्सिडी जैसे उपायों की लागत-प्रभावशीलता का आकलन करना चाहिए।’

बेरी ने तर्क दिया कि भारत में संरचनात्मक परिवर्तन के लिए ‘पारंपरिक लुई मॉडल से आगे’ देखने की आवश्यकता हो सकती है क्योंकि ज्यादा कृषि उत्पादकता और ग्रामीण महिला श्रमबल की बढ़ती भागीदारी संभावित रूप से भविष्य के विकास को बढ़ावा दे सकती है। उन्होंने कहा, ‘ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को श्रमबल में शामिल करने और सभी प्रकार के श्रम की समग्र उत्पादकता बढ़ने से उस तरह की वृद्धि होगी जैसा कि चीन में पहले देखा गया है।’

लुईस मॉडल यह बताता है कि कृषि क्षेत्र से औद्योगिक क्षेत्र की ओर अधिशेष श्रम के जाने से अर्थव्यवस्थाएं कैसे बढ़ती हैं, जहां मजदूरी अधिक होती है और उत्पादकता ज्यादा होती है।

चर्चा को आगे बढ़ाते हुए नीति आयोग के कार्यक्रम निदेशक (उद्योग) इश्तियाक अहमद ने सुसंगत, एकीकृत विनिर्माण रणनीति के अभाव तथा नीति के धीमा क्रियान्वयन और केंद्र, राज्यों एवं निजी क्षेत्र के बीच कमजोर समन्वय को प्रमुख बाधा बताया। उन्होंने कहा, ‘विनिर्माण क्षेत्र की समस्याओं के समाधान के लिए व्यापक कार्रवाई की आवश्यकता है। इसका कोई एक समाधान नहीं है। इसके लिए केंद्र, राज्य और निजी क्षेत्र की ओर से एक एकीकृत रणनीति की आवश्यकता है।’

First Published : October 29, 2025 | 10:47 PM IST