वैश्विक महामारी कोविड-19 के बाद से जीवन प्रत्याशा में गिरावट देखी गई है और सामाजिक रूप से वंचित लोगों को सर्वाधिक परेशानियों का सामना करना पड़ा है। शुक्रवार को साइंस एडवांसेज में प्रकाशित ‘साल 2020 में भारत में वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौरान बड़ी एवं असमान जीवन प्रत्याशा में गिरावट’ शोधपत्र के मुताबिक, भारत के साल 2019 और 2020 के बीच जीवन प्रत्याशा में 2.6 वर्षों की गिरावट आई है, जो विकसित देशों से काफी अधिक है।
आशिष गुप्ता, पायल हाथी, मुराद बनजी, प्रांकुर गुप्ता, ऋद्धि कश्यप, विपुल पैकरा, कनिका शर्मा, अनमोल सोमांची, निक्किल सुदर्शनन और संगीता व्यास द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया है कि पुरुषों (2.1 वर्ष) की तुलना में महिलाओं की जीवन प्रत्याशा में (3.1 वर्ष) गिरावट अधिक थी।
अध्ययन में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019 से 21 एनएफएचएस-5) के आंकड़ों और14 राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के परिवारों का विश्लेषण किया गया है। गुप्ता ने बताया कि एनएफएचएस सर्वे दो चरणों में पूरा किया गया था और अध्ययन में दूसरे चरण के आंकड़ों (खासकर साल 2021 में परिवारों से हुई बातचीत) को शामिल किया गया। उन्होंने कहा, ‘एनएफएचएस में परिवारों से साल 2017 के बाद से उनके किसी सदस्य की मौत के बारे में जानकारी ली गई, जिससे साल 2019-2020 की मृत्यु दर का अनुमान लगाया गया।’
पत्र में उल्लेख किया गया है कि जीवन प्रत्याशा में गिरावट युवाओं और 50 से 60 वर्ष वाले लोगों में अधिक थी। अध्ययन में कहा गया है, ‘भले ही बुजुर्गों की मृत्यु दर काफी अधिक थी मगर कम उम्र में मरने वालों की संख्या अधिक होने से जीवन प्रत्याशा में गिरावट आई है।’
शून्य से 19 वर्ष और 60 से 79 वर्ष की महिलाओं की मृत्यु दर अधिक होने से उनकी जीवन प्रत्याशा में गिरावट दर्ज की गई। पुरुषों के लिए यह 40 से 59 वर्ष समूह में था। विकसित देशों में जीवन प्रत्याशा में गिरावट मुख्य तौर पर 60 वर्ष से अधिक उम्र और खासकर 80 साल से अधिक के बुजुर्गों की मृत्यु दर अधिक होने की वजह से थी।
लिंगों पर असमान प्रभाव के तरह ही कुछ सामाजिक समूहों ने भी अधिक नुकसान का सामना किया। मुसलमानों की जीवन प्रत्याशा सबसे ज्यादा गिरी। यह साल 2019 के 68.8 वर्ष से कम होकर साल 2020 में 63.4 वर्ष हो गई, जो कि 5.4 वर्ष की गिरावट है। अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जातियों में यह गिरावट क्रमशः 4.1 वर्ष और 2.7 वर्ष रही।
संगीता व्यास ने कहा, ‘चूंकि हम अलग-अलग कारणों से होने वाली मौतों के बीच अंतर नहीं कर सकते हैं इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि सामाजिक समूहों में यह असमानता कोविड के प्रत्यक्ष प्रभाव, लॉकडाउन से जुड़ी परेशानियों के अप्रत्यक्ष प्रभावों अथवा किन्ही और कारणों से है। इनके बीच अंतर करने के लिए और अधिक शोध करने की जरूरत होगी।’
अन्य पिछड़ी जातियों और हिंदुओं में ‘उच्च जातियों’ की जीवन प्रत्याशा में गिरावट 1.3 वर्ष की है। मुसलमानों में पुरुषों की जीवन प्रत्याशा में 4.6 वर्ष की गिरावट आई जबकि महिलाओं के लिए गिरावट बढ़कर 6.6 वर्ष रही। इसी तरह अनुसूचित जाति की महिलाओं की जीवन प्रत्याशा में गिरावट 4.6 वर्ष की रही, तो पुरुषों के लिए यह सिर्फ 1.1 वर्ष रही।
मगर अनुसूचित जनजातियों के पुरुषों के 5.4 वर्ष की जीवन प्रत्याशी में गिरावट के मुकाबले महिलाओं की जीवन प्रत्याशा में गिरावट 2.7 वर्ष ही रही। अन्य पिछड़ी जातियों और हिंदुओं के उच्च जातियों में महिलाओं की जीवन प्रत्याशा में गिरावट 1.9 वर्ष रही। यह अति पिछड़ी जातियों पुरुषों के लिए 0.7 वर्ष और सवर्ण पुरुषों के लिए 0.9 वर्ष रही।