देशभर के 131 शहरों में वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए 2019 में लागू किया गया नैशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनकैप) बहुत अधिक कारगर साबित नहीं हुआ है। शहरों में प्रदूषण का स्तर लगातर बढ़ रहा है और इसे रोकने के लिए जारी धनराशि धूल फांक रही है। कई राज्यों ने इस राशि का इस्तेमाल नहीं किया और कुछ ने दूसरी परियोजनों पर खर्च कर डाली। यही वजह है कि एनकैप की सफलता को लेकर चिंता बढ़ गई है।
विभिन्न राज्यों के 18 शहरों में वर्ष 2023-24 (वित्त वर्ष 24) तक पीएम-10 (10 माइक्रोन या उससे कम व्यास वाले कण) को कम कर 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक लाने का लक्ष्य हासिल कर लिया गया है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि 30 शहरों में पीएम 10 का स्तर वर्ष 2017-18 (वित्त वर्ष 18) के मुकाबले काफी बढ़ा है। इसका मतलब हुआ कि इन शहरों में वायु गुणवत्ता पहले के मुकाबले अधिक खराब हुई है।
एनकैप ने 24 राज्यों में वर्ष 2025-26 तक प्रदूषण नियंत्रण संबंधी लक्ष्यों को प्राप्त न कर पाने वाले और 10 लाख से अधिक वाले शहरों में पीएम 10 का स्तर 40 प्रतिशत अथवा राष्ट्रीय मानक 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है, लेकिन पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़ों से खुलासा होता है कि केवल 18 शहरों ने ही पीएम 10 का स्तर कम करने के लक्ष्यों को हासिल किया है। इनमें भी 5 शहर ऐसे हैं, जहां वित्त वर्ष 2018 में पहले से ही पीएम 10 का स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से नीचे था।
प्रदूषण नियंत्रण के लक्ष्यों से पहले ही पिछड़ चुके शहर लगातार इसे काबू करने के लिए महत्त्वपूर्ण संसाधनों का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं, इससे प्रदूषण नियंत्रण के प्रयासों को धक्का लगा है। इस श्रेणी में आने वाले शहर एनकैप के तहत वर्ष 2019 से 2024 तक मिले 10,595 करोड़ रुपये में से केवल 6,922 करोड़ रुपये या 65.3 प्रतिशत रकम का ही इस्तेमाल कर पाए हैं।
नॉन अटेनमेंट सिटीज अथवा प्रदूषण नियंत्रण संबंधी लक्ष्यों को प्राप्त न कर पाने की श्रेणी में वे शहर आते हैं, जो पीएम10 या नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषक तत्वों के लिए तय राष्ट्रीय मानकों को पूरा करने में लगातार पांच साल तक पिछड़ गए हों। एनकैप के आंकड़ों के अनुसार 113 शहरों में पीएम 10 का पांच साल तक वार्षिक औसत लगातार 60 माइक्रोग्राम घन मीटर की सुरक्षित सीमा से ऊपर बना रहा है, लेकिन 23 शहरों ने इसे 40 प्रतिशत तक घटाने के लक्ष्य को हासिल कर लिया।
वायु प्रदूषण में 68 प्रतिशत तक गिरावट लाकर वाराणसी अग्रणी रहा है। यहां वर्ष 2018 में पीएम 10 का स्तर 230 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से घट कर वर्ष 204 में 73 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर आ गया। इसके उलट ओडिशा के आंगल में पीएम 10 के स्तर पमें 78 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिली। आंगल को एनकैप के तहत वर्ष 2019-20 से वित्त वर्ष 24 तक 2.32 करोड़ रुपये मिले थे, लेकिन इस अवधि में इस रकम में से केवल 1.17 करोड़ रुपये ही खर्च हो सके।
वित्त वर्ष 2020 और 2021-22 में इस शहर को मिली धनराशि का तो इस्तेमाल ही नहीं हो पाया और यहां पीएम 10 के स्तर में तेज वृद्धि देखने को मिली। वर्ष 2018 में यहां पीएम 10 का स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था जो 2024 में बढ़ कर 167 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर आ गया। दूसरी ओर वाराणसी को इस अवधि में 269.21 करोड़ रुपये का अनुदान मिला था, जिसमें से 129.39 करोड़ रुपये का उपयोग हुआ।
आवंटित धनराशि का पूरा उपयोग नहीं होना ही मुद्दा नहीं है, इस राधि के आवंटन में विसंगितयां भी बड़ी समस्या है। पर्यावरण मंत्रालय ने इसी साल मार्च में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) को बताया था कि वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए वर्ष 2019 में 19 शहरों को 1,644.4 करोड़ रुपये की धनराधि दी गई थी, लेकिन कई राज्यों ने इस राशि को सड़कें, फव्वारे और फुटबॉल मैदान जैसी दूसरी परियोजनाओं में खर्च कर दिया, जिनका प्रदूषण को काबू करने से कोई लेना-देना नहीं था। एनकैप के तहत वर्ष 2024-25 तक कुल 11,211.13 करोड़ रुपये आवंटित किए जा चुके हैं।
पिछले वर्ष नवंबर में एनजीटी ने वायु प्रदूषण वाले देश के 53 शहरों और कस्बों को चिह्नित किया था और संबंधित राज्यों से इस दिशा में सुधार के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया था। न्यायाधिकरण ने राज्यों से फंड के इस्तेमाल से संबंधित विस्तृत रिपोर्ट भी तलब की थी।
पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 2019 में तैयार एनकैप रणनीति दस्तावेज में प्रदूषण कम करने के लिए विभिन्न कदम उठाए जाने की वकालत की थी। इनमें पौधरोपण, मशीनों से सफाई कार्य, सड़कों पर पानी का छिड़काव, चरणबद्ध तरीके से पुराने कोयला आधारित ऊर्जा संयंत्रों को हरित ऊर्जा में परिवर्तित करने, यातायात दबाव वाले प्रमुख स्थलों पर फव्वारे लगाने, डीजल जेनरेटरों का इस्तेमाल होने से रोकने के लिए पर्याप्त बिजली आपूर्ति करने, उद्योगों में प्रदूषण संबंधी नियमों का सख्ती से पालन, ईवी को बढ़ावा देने और निर्माण एवं ध्वस्तीकरण के मलबा समेत कचरा प्रबंधन करने आदि शामिल हैं।