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क्या अमेरिका से तेल खरीदने पर भारत की मुश्किलें बढ़ सकती हैं?

पहले कार्यकाल में ट्रंप के सत्ता संभालने के एक साल बाद 2018 में भारत ने बड़ी पहल की थी जिससे अमेरिका से कच्चे तेल का आयात पांच गुना बढ़ गया था।

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एस दिनकर   
Last Updated- February 23, 2025 | 10:13 PM IST

अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अमेरिका के साथ भारत के 35 अरब डॉलर के व्यापार अ​धिशेष को कम करने के लिए ऊर्जा की खरीद बढ़ाने का आग्रह किया था। ट्रंप ने यह मांग अपने पहले कार्यकाल में भी की थी। 

पहले कार्यकाल में ट्रंप के सत्ता संभालने के एक साल बाद 2018 में भारत ने बड़ी पहल की थी जिससे अमेरिका से कच्चे तेल का आयात पांच गुना बढ़ गया था और 2021 में जब उन्होंने सत्ता छोड़ी तो यह 4,15,000 बैरल प्रति दिन के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया था। सवाल उठता है कि क्या हम ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भी अमेरिका से तेल और तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) की खरीद में बड़ी वृद्धि की उम्मीद कर सकते हैं? उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि इसका जवाब शायद नहीं है। आज के हालात में भारत के लिए अमेरिका से कच्चा तेल खरीदना मु​श्किल है, क्योंकि 2021 में अमेरिका से जितना तेल खरीदा जाता था अब उससे करीब आधा तेल ही लिया जा रहा है।  एलएनजी की खरीद थोड़ी बढ़ सकती है मगर उतना भी नहीं जिससे व्यापार अ​धिशेष की भरपाई हो जाए।

उद्योग के विशेषज्ञों ने कहा कि बदलती भू-राजनीति, रूस जैसे नए आपूर्तिकर्ता और भारतीय रिफाइनरियों के जटिल ढांचे के कारण सरकारी तेल कंपनियों के लिए रूसी निर्यात बेंचमार्क यूराल या खाड़ी तेल ग्रेड की जगह अमेरिकी तेल को खरीदना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। एलएनजी इस व्यवहार्य हो सकता है। पिछले वित्त वर्ष में भारत ने करीब 14 फीसदी एलएनजी अमेरिका से आयात की थी मगर एलएनजी खरीद अनुबंधों को पूरा करने में लगने वाला समय और लंबी दूरी से अमे​रिका का मकसद पूरा नहीं होगा।

सरकारी रिफाइनरियों के शीर्ष अ​धिकारियों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि अभी तक सरकार की ओर से अमेरिका से कच्चा तेल मंगाने के लिए कोई राजनीतिक दबाव या आदेश नहीं है। सरकार चाहती है कि व्यापार वाणिज्यिक समझदारी से किया जाना चाहिए।

एक सरकरी तेल कंपनी के चेयरमैन ने कहा कि अमेरिका में कच्चे तेल की खरीद ‘अवसर व्यापार’ होगी। व्यापारी हाजिर शर्तों पर आपूर्ति के आधार पर भाव तय करते हैं और यदि कीमत आकर्षक होगी तो भारतीय रिफाइनर ऑर्डर देंगे।

मुंबई में तेल उद्योग के कंसल्टेंट आर रामचंद्रन ने कहा, ‘लंबी दूरी के कारण अमेरिकी कच्चा तेल भारत के लिए नियमित आधार पर आर्थिक रूप से आकर्षक नहीं है क्योंकि खाड़ी देशों की तुलना में अमेरिका से तेल की ढुलाई में ज्यादा खर्च आता है।’

ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान रूस से सस्ता तेल नहीं मिल रहा था मगर अभी भारत वहां से सस्ता तेल खरीद रहा है। ऐसे में अमेरिका से तेल आयात करना और भी मु​श्किल होगा। पिछले साल रूस के तेल पर छूट औसतन 3 से 4 डॉलर प्रति बैरल थी। 

भारतीय आयात के आंकड़ों के अनुसार नवंबर में रूस के कच्चे तेल की औसत कीमत 75 डॉलर प्रति बैरल से कम थी, जबकि अमेरिकी कच्चे तेल की औसत कीमत 83 डॉलर प्रति बैरल थी।

भारत के आयात आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले वित्त वर्ष में अमेरिका ने भारत को 6.4 अरब डॉलर का कच्चा तेल और प्राकृतिक गैस निर्यात किए थे जो अमेरिका-भारत व्यापार घाटे का लगभग 18 फीसदी था। 

First Published : February 23, 2025 | 10:13 PM IST