रक्षा मंत्रालय सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों की उत्पादन एजेंसियों के लिए ‘प्रोत्साहन और दंड’ की नीति अपना सकता है ताकि स्वदेशीकरण के प्रयासों में गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित किया जा सके। रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह ने नई दिल्ली में शनिवार को बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा अपनी मासिक पत्रिका ‘ब्लूप्रिंट’ के विमोचन पर आयोजित एक कार्यक्रम में यह बात कही। एके भट्टाचार्य के साथ बातचीत में सिंह ने यह भी कहा कि रक्षा उत्पादन विभाग तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए महत्त्वपूर्ण खनिजों और धातुओं का राष्ट्रीय भंडार बनाने पर विचार कर रहा है।
रक्षा और भू-राजनीति पर केंद्रित अनूठी पत्रिका ‘ब्लूप्रिंट’ का विमोचन करने के बाद सिंह ने रक्षा क्षेत्र में सुधारों के खाके की झलक पेश की। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष वी नारायणन ने अंतरिक्ष के प्रति देश के नजरिये को समझाया। इस कार्यक्रम में निजी क्षेत्र ने भी अपनी बात रखी। भारत फोर्ज की रक्षा इकाई कल्याणी स्ट्रैटजिक सिस्टम्स के चेयरमैन राजिंदर सिंह भाटिया ने इस पर चर्चा की कि सुधारों से उद्योग को कितना लाभ हुआ।
सिंह ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के बारे में कहा कि सरकार इस पर जोर दे रही है मगर सही मायने में स्वदेशीकरण तभी सार्थक होगा जब डिजाइन और बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) देश में ही हों। उन्होंने कहा कि पिछले साल पूंजीगत खरीद का 88 फीसदी ठेका भारतीय फर्मों को मिला था जो पहले निर्धारित लक्ष्यों से अधिक है। उन्होंने यह भी कहा कि रक्षा खरीद प्रक्रिया 2020 के तहत सुधारों ने मंजूरी प्रक्रिया को सरल बना दिया है।
सिंह ने कहा, ‘भारत की रक्षा आवश्यकताओं में योगदान करते समय हमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों को हाइब्रिड दोहरे उपयोग वाली पाइपलाइन के रूप में देखना होगा।’
बातचीत स्वदेशीकरण के इर्द-गिर्द घूमती रही। सिंह ने गुणवत्ता नियंत्रण की आवश्यकता को रेखांकित करने के लिए ‘प्रोत्साहन और दंड’ वाली बात कही।
रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह ने कहा, ‘जब हम खराब विनिर्माण प्रथाओं को दूर करते हैं तो हमें उन लोगों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है जिनकी विनिर्माण गुणवत्ता हमारी आवश्यकताओं को पूरा करती है।’ रक्षा सचिव ने हाल के दिनों में वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बाधा के कारण दुर्लभ पृथ्वी खनिजों की कमी का भी जिक्र किया। सिंह ने दुर्लभ पृथ्वी खनिज सहित एक समग्र ‘संसाधन सुरक्षा’ बनाने का आग्रह किया और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) में संभावित सुधारों को भी खुली बातचीत में प्रमुखता से शामिल किया।
नवाचार पर उन्होंने कहा कि भारत में अगर कुछ मुफ्त में दिया जाता है तो उसकी शायद ही कभी सराहना की जाती है। उन्होंने कहा कि डीआरडीओ नाममात्र की रॉयल्टी लेता है और प्रयोगशालाओं तथा परीक्षण सुविधाओं तक व्यापक पहुंच प्रदान करता है। रक्षा से लेकर अंतरिक्ष विज्ञान तक सुधार और स्वदेशीकरण एक समान सूत्र बने रहे। सतरूपा भट्टाचार्य के साथ इसरो के नारायणन की व्यापक बातचीत संचार, आपदा प्रबंधन और निगरानी के लिए उपग्रहों के रणनीतिक महत्त्व के साथ शुरू हुई।
समापन सत्र के दौरान एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि मई में भारत और पाकिस्तान के साथ चार दिवसीय संघर्ष में इसरो ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
नारायणन ने कहा, ‘हमारी जिम्मेदारी है कि हम भारत के हर नागरिक की सुरक्षा और संरक्षा सुनिश्चित करें।’जनवरी में कार्यभार संभालने वाले इसरो प्रमुख ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों जैसे चंद्रयान और मंगलयान मिशन के प्रमुख कीर्तिमान को याद किया और 2035 तक 52 टन का स्पेस स्टेशन (पूरी तरह से स्वदेशी) बनाने की योजना के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि 2040 तक चंद्रमा पर उतरने (मानव अंतरिक्ष यान) की भी योजना है।
उन्होंने कहा, ‘ बहुत से लोगों ने चंद्रमा का अध्ययन किया है लेकिन भारत अमेरिका के साथ चंद्रमा पर पानी के अणुओं को खोजने वाला पहला देश है।’
नारायणन ने कहा, ‘आज जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं तो मुझे वास्तव में उन देशों को धन्यवाद देना होगा जिन्होंने हमें तकनीक से वंचित कर दिया क्योंकि इस वजह से भारतीयों ने तीन क्रायोजेनिक प्रणोदन प्रणालियों का विकास किया है।’ उनके वक्तव्य से पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। सोसाइटी ऑफ इंडियन डिफेंस मैन्युफैक्चरर्स के प्रेसिडेंट भाटिया ने कहा कि भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम का नाटकीय रूप से विस्तार होना अच्छा है। भाटिया ने भास्वर कुमार के साथ एक चर्चा में कहा, ‘आइए रक्षा, एरोस्पेस और टेक्नॉलजी में 100,000 स्टार्टअप का लक्ष्य रखें।’
उन्होंने कहा कि देश की इंजीनियरिंग प्रतिभा का और दोहन किया जाना चाहिए। किसी राष्ट्र में रक्षा क्षमता का निर्माण एक की तरह मैराथन है, यह आनन-फानन में नहीं हो सकता।’टेक्नॉलजी के साथ तालमेल रखने के लिए तेजी से खरीद की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि यदि कोई उत्पाद दो से पांच वर्षों के बीच विकसित किया जा सकता है तो उसका अधिग्रहण चक्र लंबा नहीं होना चाहिए। अन्यथा सशस्त्र बलों द्वारा पुराने उपकरण खरीदे जाएंगे।